चिराग पासवान के CM बनने पर चाचा पारस का ‘बड़ा दिल’

कभी 'खून' मानने से किया था इंकार, अब पशुपति पारस बोले- चिराग मुख्यमंत्री बनेंगे तो सबसे ज्यादा खुशी मुझे होगी

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
  • कट्टर विरोधी का पलटा रुख: चिराग पासवान के धुर विरोधी माने जाने वाले चाचा पशुपति कुमार पारस ने उनके मुख्यमंत्री बनने पर खुशी जाहिर की।
  • पारिवारिक रिश्ते की स्वीकार्यता: पहले ‘खून’ मानने से इंकार करने वाले पारस ने चिराग को ‘परिवार का सदस्य’ और ‘भतीजा’ बताया।
  • राजनीतिक कयासबाजी तेज: विरोधी गठबंधन में रहते हुए दिए गए इस बयान से चाचा-भतीजे के बीच सुलह की अटकलें तेज हो गईं हैं।

समग्र समाचार सेवा
हाजीपुर/पटना, 4 अक्तूबर 2025: बिहार की राजनीति में ‘चाचा-भतीजे’ की कड़वाहट जगजाहिर रही है। लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में विभाजन के बाद चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच दुश्मनी इस कदर बढ़ गई थी कि पारस ने सार्वजनिक तौर पर चिराग को अपना खून मानने से भी इनकार कर दिया था। लेकिन, अब पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने बिहार की राजनीति में नया तूफान ला दिया है।

हाजीपुर में एक श्राद्ध कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे पशुपति पारस ने मीडिया से बातचीत के दौरान चिराग पासवान के मुख्यमंत्री बनने की संभावना पर पूछे गए सवाल पर हैरान करने वाली प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “अच्छी बात है बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं तो। सबसे ज्यादा खुशी मुझे होगी, हमारे परिवार के सदस्य हैं हमारे भतीजे भी हैं…।”

बदले सुर: ‘खून’ से ‘परिवार का सदस्य’ तक का सफर

पशुपति पारस का यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हालिया लोकसभा चुनाव के दौरान और उससे पहले दोनों नेताओं के बीच हाजीपुर सीट पर दावेदारी को लेकर तल्खी अपने चरम पर थी। उस समय पशुपति पारस चिराग के खिलाफ काफी तीखे बयान दे रहे थे। लेकिन, आज उन्होंने न सिर्फ चिराग को “भतीजा” और “परिवार का सदस्य” माना, बल्कि उनके मुख्यमंत्री बनने पर सबसे ज्यादा खुशी जाहिर करने की बात भी कही।

हालांकि, पशुपति पारस ने अपने बयान में एक लोकतांत्रिक सावधानी भी बरती। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह बिहार की जनता ही तय करेगी, क्योंकि जनता के हाथ में सुप्रीम पावर है। उन्होंने आगे जोड़ा, “बिहार की जनता शिक्षण के पक्ष में वोट देगी।… हमारे एक मत से तो कुछ होने वाला नहीं है।” इस टिप्पणी के बावजूद, एक कट्टर विरोधी द्वारा चिराग के लिए इस तरह की सकारात्मक प्रतिक्रिया देना, बिहार के बदलते राजनीतिक समीकरण की ओर इशारा करता है।

क्या चाचा-भतीजे के बीच हो गया ‘गुप्त समझौता’?

पशुपति पारस का यह ‘दिल बदलने’ वाला बयान कई राजनीतिक कयासों को जन्म दे रहा है।

सुलह की अटकलें: सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या चाचा-भतीजे के बीच पर्दे के पीछे कोई समझौता हो चुका है? लोकसभा चुनाव के बाद से ही, जब पशुपति पारस को एनडीए में सीट नहीं मिली थी और चिराग पासवान का कद बढ़ा था, तभी से दोनों गुटों में नरमी के संकेत मिल रहे थे।

महागठबंधन से दूरी: यह बयान ऐसे समय आया है जब पशुपति पारस की पार्टी, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, महागठबंधन (इंडिया गठबंधन) का हिस्सा है। विरोधी खेमे में होते हुए भी चिराग के लिए इतना ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ दिखाना, इस बात की ओर इशारा करता है कि पारस शायद महागठबंधन में खुद को सहज महसूस नहीं कर रहे हैं, या विधानसभा चुनाव से पहले वह राजनीतिक विकल्प खुले रखना चाहते हैं।

पारिवारिक विरासत का दबाव: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि रामविलास पासवान की विरासत को लेकर परिवार पर राजनीतिक एकजुटता बनाने का दबाव रहा है। चिराग की हालिया राजनीतिक सफलता ने पारस को अपना रुख बदलने पर मजबूर किया है, ताकि वह खुद को पूरी तरह से अलग-थलग न महसूस करें।

यह स्पष्ट है कि जहां चिराग पासवान के जीजा अरुण भारती पहले ही चिराग को मुख्यमंत्री बनाने को लेकर बयान दे चुके हैं, वहीं अब विरोधी चाचा पशुपति पारस का यह भावुक और समर्थन भरा बयान बिहार की जातिगत और पारिवारिक राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत है, जिसकी गूंज आगामी विधानसभा चुनाव में निश्चित रूप से सुनाई देगी।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.