दुनिया में चार ऐसी जगह जहाँ बा के साथ बापू की मूर्ति
- चार अनूठे स्थल: दुनिया में केवल चार ऐसी जगहें हैं जहाँ महात्मा गांधी (बापू) और कस्तूरबा गांधी (बा) की मूर्तियाँ एक साथ हैं।
- पुर्तगाल कनेक्शन: लिस्बन (पुर्तगाल) के राधा-कृष्ण मंदिर परिसर में दोनों की युगल प्रतिमा स्थापित है।
- आगा खाँ महल का महत्व: पुणे का आगा खाँ महल वह ऐतिहासिक स्थान है जहाँ बा का देह त्याग हुआ और उनकी मूर्ति बापू के साथ मौजूद है।
पुष्प रंजन
‘बा’ माँ को कहते हैं। काठियावाड़ के पोरबंदर में जन्मीं कस्तूरबाई माखनजी कपाड़िया की शादी 13 साल की उम्र में ही महात्मा गांधी से करा दी गई। पर उनके गंभीर और स्थिर स्वभाव के कारण सभी उन्हें ‘बा’ कहकर पुकारने लगे। या फिर, ‘कस्तूरबा गांधी’। बा, प्राय: बापू के अनेक उपवासों में उनके साथ रहीं।
चम्पारण सत्याग्रह के समय भी बा भितिहरवा आश्रम में रहकर आसपास के गाँवों में घूमती, और दवा वितरण करती थीं। अफ़सोस, भितिहरवा से लेकर साबरमती तक बापू के साथ बा की मूर्ति नहीं है। दोनों की इकट्ठी मूर्ति देखने का संजोग मुझे पुर्तगाल में मिला। बा-बापू की प्रतिमा लिस्बन में राधा-कृष्ण मंदिर परिसर में स्थित है।
आगा खाँ महल दूसरी जगह है, जहाँ बा की मूर्ति बापू के साथ है। बनारस टाउन हॉल तीसरी, और चौथी गांधी संग्रहालय अशोक राजपथ पटना में भी, बा-बापू की मूर्ति बताते हैं। मेरे संज्ञान में, दुनिया में चार ऐसी जगह हैं, जहाँ बा-बापू की मूर्तियां इकट्ठी मिलेंगी। शायद और भी मिल जाएँ। कह नहीं सकते, कोई अचानक दावा ठोक दे, कि फलनवाँ गाँव-क़स्बा में बा-बापू की मूर्ति है।
खेड़ा सत्याग्रह के समय जेल, गिरफ़्तारी, उपवास से बा का नाता बना रहा। 1932 और 1933 का अधिकांश समय उनका जेल में ही बीता। 4 अगस्त 1942 को बा गिरफ्तार कर पूना के आगा खाँ महल में भेज दी गयी। वहीँ उनका स्वास्थ्य बिगड़ा। उसके डेढ़ साल बाद 22 फ़रवरी 1944 को पुणे में बा ने देह त्याग दिया।
अगस्त 1942 से मई 1944 तक अपने कारावास के समय महात्मा गांधी आगा खान महल में ही रहे थे। तब बा गांधी जी के सहायक महादेव देसाई और स्वतंत्रता सेनानी नायडू के साथ रहे। सच तो यह है कि कस्तूरबा गाँधी और महादेव देसाई का स्वर्गवास इसी कारावास के दौरान इसी महल में हुआ था। इस महल का एक कोना इन्हीं दोनों की समाधि को समर्पित है। असल में यह समाधि नही है, यहाँ पर इन दोनों का दाह संस्कार किया गया था। इस जगह पर उनकी अस्थियों को स्मारक में संजो कर रखा गया है।
आगा खान तृतीय (1877-1957) निज़ारी इस्माइली शियाओं के आध्यात्मिक नेता, और उनके 48वें इमाम थे, जिन्होंने अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की, और इसके पहले स्थायी अध्यक्ष बने। वह भारत में मुसलमानों के अधिकारों के लिए एक अलग राजनीतिक समुदाय की वकालत करते रहे, जो बाद में दो-राष्ट्र सिद्धांत के अनुरूप था। । पुणे में यरवडा के समीप आगा ख़ान महल बा और बापू संघर्ष का साक्षी बना। आगा खान तृतीय ने ईटन और कैंब्रिज से शिक्षा ग्रहण की थी। मिस्र के असवान में वो सिपुर्दे ख़ाक किये गए थे।