भारत आ रहे तालिबान के विदेश मंत्री, पाकिस्तान को बड़ा झटका

UNSC से मिली हरी झंडी, 9 अक्टूबर को नई दिल्ली आएंगे अमीर खान मुत्ताकी

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  •  अफगान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी 9 अक्टूबर को भारत पहुँचेंगे
  • उनकी यात्रा को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने मंजूरी दी
  • विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की संभावना
  •  पाकिस्तान ने पहले उनकी यात्रा पर अड़ंगा डाला था, लेकिन इस बार भारत सफल रहा

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 3 अक्टूबर: मुत्ताकी को क्यों चाहिए UNSC की मंजूरी?
अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के यात्रा प्रतिबंध लगे हुए हैं। 25 जनवरी 2001 को UNSC ने उन पर बैन लगाया था, जिसके तहत उनकी अंतरराष्ट्रीय यात्रा बिना विशेष अनुमति के संभव नहीं है।
– मुत्ताकी पर यात्रा और हथियारों की खरीद-फरोख्त से जुड़े प्रतिबंध लागू हैं.
– किसी भी देश की यात्रा को कानूनी रूप से वैध बनाने के लिए UNSC से विशेष छूट आवश्यक है.
– इस बार UNSC ने 9 से 16 अक्टूबर 2025 तक भारत दौरे की अनुमति दी है.

अगस्त 2025 में उन्हें भारत आना था लेकिन उस समय सुरक्षा परिषद से मंजूरी न मिलने के कारण उनकी यात्रा रद्द हो गई थी। इस बार कूटनीतिक स्तर पर भारत की तैयारी ने पाकिस्तान की कोशिशों को नाकाम कर दिया है।

पाकिस्तानी रणनीति को क्यों लगा झटका?
मुत्ताकी की भारत यात्रा पाकिस्तान के लिए सीधी कूटनीतिक चुनौती मानी जा रही है। पाकिस्तान लंबे समय से चाहता रहा है कि भारत और तालिबान सरकार के बीच नजदीकी संबंध विकसित न हों।
– पाकिस्तान के दबाव में पिछली बार मुत्ताकी की भारत यात्रा रुकवाई गई थी
– इस बार पाकिस्तान की आपत्ति के बावजूद UNSC ने भारत यात्रा को मंजूरी दी
– तालिबान भारत के साथ संबंध मजबूत कर रहा है, जिससे पाकिस्तान की रणनीति कमजोर हो रही है
– पाकिस्तान लगातार अफगानिस्तान को भारत से दूर रखने की कोशिश करता रहा, लेकिन सफल नहीं हुआ
– तालिबान ने 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले की आलोचना करके भारत को सकारात्मक संदेश भी दिया था।

भारत-तालिबान समीकरण और रणनीतिक महत्व
भारत के लिए अफगानिस्तान सिर्फ एक पड़ोसी देश ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा और हितों की दृष्टि से अहम साझेदार है। खासतौर पर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को लेकर भारत के रुख से तालिबान के साथ उसकी नजदीकियां बढ़ रही हैं।
– भारत पहले ही CPEC का विरोध कर चुका है क्योंकि यह परियोजना पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से होकर गुजरती है
– भारत और तालिबान की बातचीत चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए चुनौती मानी जा रही है
– अफगानिस्तान में भारतीय रणनीतिक उपस्थिति से न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि चीन को भी चिंता बढ़ रही है.

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