सिद्धरामैया का जाति जनगणना दांव: सत्ता बचाने का हथकंडा ?

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पूनम शर्मा
कर्नाटक की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल में है। मुख्यमंत्री सिद्धरामैया जाति आधारित जनगणना को लेकर घिर गए हैं। जहाँ इसे सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सर्वे का नाम दिया जा रहा है, वहीं विपक्ष और कई सामाजिक संगठनों का आरोप है कि यह सर्वे वास्तव में हिंदू समाज को बांटने और सत्ता बचाने का हथकंडा है।

जोशी का तीखा हमला

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इसे “हिंदू समाज में फूट डालने की कांग्रेस की साजिश” करार दिया। उन्होंने कहा कि जब केंद्र सरकार ने पहले ही राष्ट्रव्यापी जनगणना का फैसला किया है, तो कर्नाटक सरकार को अलग से जाति सर्वे की क्या जरूरत है? उन्होंने आरोप लगाया कि इसमें “क्रिश्चियन लिंगायत” या “क्रिश्चियन ब्राह्मण” जैसी श्रेणियां जोड़कर न केवल धर्मांतरण को वैध ठहराने की कोशिश की जा रही है, बल्कि समाज को और अधिक खंडित करने की तैयारी है।

सत्ता की राजनीति

सिद्धरामैया बार-बार दावा करते हैं कि वे पूरे पाँच साल मुख्यमंत्री रहेंगे। लेकिन सवाल उठता है कि यदि उनकी कुर्सी सुरक्षित है तो उन्हें इस तरह के “जोखिम भरे राजनीतिक प्रयोग” की जरूरत क्यों पड़ रही है? दरअसल, पार्टी के भीतर डी.के. शिवकुमार का गुट लगातार मजबूत हो रहा है और उनके समर्थक खुले तौर पर नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं। ऐसे में सिद्धरामैया इस जाति सर्वे को अपने “सर्वाइवल कार्ड” के रूप में देख रहे हैं।

जनता के मुद्दों से ध्यान भटकाना?

जब राज्य में बेरोजगारी, किसान संकट और बुनियादी ढांचे की कमी जैसे गंभीर मुद्दे मौजूद हैं, तब सरकार का समय और पैसा जातिगत सर्वे पर खर्च करना जनता को नागवार गुजर रहा है। आलोचकों का कहना है कि यह कदम “गवर्नेंस” नहीं बल्कि “सरवाइवल पॉलिटिक्स” का उदाहरण है।

वोट बैंक की राजनीति

कांग्रेस की इस पहल को कई विशेषज्ञ “सामाजिक न्याय” नहीं बल्कि “वोट बैंक की राजनीति” बता रहे हैं। सर्वे में पूछे जा रहे सवाल – जैसे कि “क्या आपने किसी सामाजिक संगठन से जुड़ाव किया है?” – या हिंदुओं को सूक्ष्म उप-जातियों में बांटने का प्रयास – इसके पीछे छिपे बड़े एजेंडे की ओर संकेत करते हैं।

सामाजिक ताने-बाने पर खतरा

वीरशैव-लिंगायत संत पहले ही चिंता जता चुके हैं कि “सभी हिंदू हैं, जाति चाहे कोई भी हो।” लेकिन कांग्रेस सरकार इन आवाज़ों को अनसुना कर अपनी राजनीतिक बढ़त के लिए आगे बढ़ती दिख रही है। प्रह्लाद जोशी ने चेतावनी दी कि यह कदम समाज को मजबूत करने के बजाय कमजोर करेगा और अविश्वास का माहौल पैदा करेगा।

निष्कर्ष

सिद्धरामैया की जाति जनगणना पहल अब कर्नाटक की राजनीति का सबसे बड़ा विवाद बन चुकी है। यह सर्वे समाज को न्याय दिलाने की पहल है या महज सत्ता बचाने का हथकंडा – इसका जवाब आने वाले समय और जनता की प्रतिक्रिया ही देंगे। लेकिन इतना तय है कि इस कदम ने राज्य की राजनीति में एक नई दरार पैदा कर दी है, जिसकी गूँज लंबे समय तक सुनाई दे सकती है।

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