पूनम शर्मा
कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार वजह बनी उनकी कोलंबिया के EIA यूनिवर्सिटी में दी गई टिप्पणी, जिसमें उन्होंने कहा कि “भारत में लोकतंत्र खतरे में है”। यह बयान जैसे ही सामने आया, भाजपा समेत कई राजनीतिक दलों ने उन पर तीखा हमला बोला और सवाल उठाया कि आखिर राहुल गांधी क्यों बार-बार विदेशी धरती पर भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास करते हैं।
विदेश में लोकतंत्र पर प्रहार
राहुल गांधी ने अपने भाषण में दावा किया कि भारत में लोकतंत्र पर हमले हो रहे हैं। उन्होंने छात्रों को यह भी बताया कि देश में संस्थाएं स्वतंत्र नहीं हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा रहा है। यह बयान ऐसे समय आया जब भारत दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर रहा है। विपक्ष का अस्तित्व और उसकी ताक़त भी इसी लोकतांत्रिक ढांचे की देन है, लेकिन राहुल गांधी का बयान इस तथ्य को नज़रअंदाज़ करता दिखा।
भाजपा का पलटवार
तेलंगाना भाजपा प्रवक्ता एन.वी. सुभाष ने राहुल गांधी के बयान को “सफेद झूठ” बताते हुए कहा कि वे बार-बार भारत और उसकी संस्थाओं को विदेशी मंचों पर बदनाम करते हैं। उन्होंने कहा, “लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 99 सीटें मिलीं। अगर लोकतंत्र खतरे में होता तो विपक्ष को यह ताक़त कैसे मिलती?”।
सुभाष का आरोप था कि राहुल गांधी देश के अंदर हार का सामना करने के बाद विदेश में सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं।
‘भारत विरोधी एजेंडे’ के सवाल
भाजपा ने राहुल गांधी के साथ-साथ उनके करीबी सम पित्रोदा के हालिया बयान का भी मुद्दा उठाया। पित्रोदा ने कहा था कि “वे भारत से अधिक पाकिस्तान में सुरक्षित महसूस करते हैं”। इस बयान को भाजपा ने राष्ट्रविरोधी बताते हुए राहुल गांधी की राजनीति को पाकिस्तान समर्थक करार दिया। भाजपा नेताओं का कहना है कि कांग्रेस और उसके शीर्ष नेता समय-समय पर ऐसे बयान देते हैं जो पड़ोसी देश की ताक़तों को मजबूती देते हैं और भारत की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं।
सत्ता की भूख या विचारधारा?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राहुल गांधी की बयानबाज़ी इस बात का सबूत है कि कांग्रेस आज एक ठोस वैचारिक दिशा खो चुकी है। सत्तासीन भाजपा पर सीधे हमले करना एक बात है, लेकिन विदेशी धरती पर लोकतंत्र पर संदेह जताना भारत के करोड़ों नागरिकों का अपमान है। सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस अपनी घरेलू राजनीतिक असफलताओं की भरपाई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ‘भारत विरोध’ का नैरेटिव गढ़कर करना चाहती है?
कांग्रेस का इतिहास और विरोधाभास
यह भी सच है कि कांग्रेस का इतिहास लोकतंत्र को मजबूत करने की बजाय कमजोर करने के उदाहरणों से भरा है। इमरजेंसी का दौर याद कीजिए, जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुचल दी गई थी, अख़बारों पर सेंसरशिप लगा दी गई थी और विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। यह सब कांग्रेस की सरकार में हुआ था। ऐसे में राहुल गांधी का लोकतंत्र पर भाषण देना महज़ राजनीतिक पाखंड प्रतीत होता है।
जनता के मुद्दों से दूर
राहुल गांधी लगातार “लोकतंत्र खतरे में है” जैसे खोखले नारों पर ज़ोर देते रहे हैं, लेकिन बेरोज़गारी, कृषि संकट, आर्थिक विकास जैसे असली मुद्दों पर उनकी चुप्पी हमेशा सवालों के घेरे में रहती है। वे जनता को यह समझाने में विफल रहे हैं कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो वह इन समस्याओं का समाधान कैसे करेगी।
अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर
जब एक बड़ा नेता विदेशी विश्वविद्यालय में खड़े होकर कहता है कि उसके देश में लोकतंत्र संकट में है, तो यह संदेश केवल छात्रों तक नहीं रहता। यह बयान अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छपता है, विदेशी निवेशकों तक पहुंचता है और भारत की वैश्विक साख पर असर डालता है। भाजपा नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि विपक्ष की भूमिका केवल आलोचना करना नहीं बल्कि देशहित को सर्वोपरि रखना भी है।
निष्कर्ष
राहुल गांधी की विदेश यात्राओं और वहाँ दिए गए बयानों ने बार-बार यह साबित किया है कि वे राजनीति में गंभीरता की कमी से जूझ रहे हैं। लोकतंत्र की रक्षा करने के बजाय वे अपने ही देश की छवि को कमजोर करने में लगे रहते हैं। भारत का लोकतंत्र मजबूत है और उसकी जड़ें जनता के विश्वास में गहराई से जमी हुई हैं।
भाजपा का हमला इस बार केवल राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं बल्कि एक चेतावनी है कि यदि विपक्ष अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाएगा तो जनता उसे और भी नकार देगी। राहुल गांधी को चाहिए कि वे संसद और जनता के बीच सवाल उठाएं, न कि विदेश में जाकर अपने ही देश पर कीचड़ उछालें।