नेपाल की नई कुमारी देवी: ‘लिविंग गॉडेस’ आर्यतारा शाक्य

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पूनम शर्मा
नेपाल की धरती रहस्यों, परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं से परिपूर्ण है। यहीं पर एक अनोखी प्रथा सदियों से चली आ रही है, जिसे कुमारी प्रथा कहा जाता है। इस प्रथा के तहत एक छोटी बच्ची को ‘जीवित देवी’ यानी लिविंग गॉडेस के रूप में चुना जाता है और उसे देवी का अवतार मानकर पूजा जाता है। हाल ही में नेपाल में नई कुमारी देवी चुनी गई हैं, जिनका नाम आर्यतारा शाक्य है। दो साल आठ महीने की यह नन्हीं बच्ची अब अपने कौमार्य यानी मासिक धर्म शुरू होने तक देवी की तरह पूजी जाएगी और काठमांडू के कुमारी घर में रहेंगी।

लाल चूड़ियों और लाल लहंगे में देवी का अवतार

जब मंगलवार को आर्यतारा शाक्य पिता की गोद में सजी-धजी काठमांडू की सड़कों पर निकलीं, तो पूरा शहर उनके स्वागत में उमड़ पड़ा। नन्हे हाथों में लाल-लाल चूड़ियां, माथे पर लाल बिंदी और तिलक, आंखों में काजल और गले में फूलों की माला—उनका पूरा रूप मानो किसी देवी के अवतार से कम न था। लोग झूमते-गाते उनके पीछे चल रहे थे और उन्हें निहार रहे थे। यह दृश्य नेपाल की आस्था और परंपरा का अद्भुत प्रमाण था।

कुमारी प्रथा क्या है?

नेपाल की कुमारी प्रथा नेवार समुदाय से जुड़ी है और इसे हिंदू-बौद्ध दोनों धर्मों में समान रूप से मान्यता प्राप्त है। परंपरा के अनुसार, एक छोटी बच्ची को कठोर नियमों और परंपराओं के तहत देवी ‘तलेजु भवानी’ का प्रतीक माना जाता है। कुमारी बनने के बाद वह अपने माता-पिता से दूर, काठमांडू दरबार स्क्वायर स्थित कुमारी घर में रहती है।

बचपन में चुनी गई कुमारी देवी को तब तक पूजा जाता है जब तक कि उसका मासिक धर्म शुरू नहीं हो जाता। जैसे ही मासिक धर्म आता है, माना जाता है कि देवी की शक्ति उससे निकल गई है और उसके बाद किसी दूसरी बच्ची को नई कुमारी बना दिया जाता है।

क्यों डरते हैं लड़के कुमारी से शादी करने से?

कुमारी देवी को लेकर एक धारणा यह भी है कि उनसे विवाह करने वाला पुरुष अल्पायु हो जाता है। इस वजह से बहुत से पुरुष कुमारी से शादी करने से कतराते हैं। हालांकि यह सिर्फ मान्यता है, लेकिन नेपाल समाज में यह विश्वास गहराई से जुड़ा हुआ है।

कुमारी के रोने से आई थी प्रलय!

कहा जाता है कि कुमारी देवी के आँसू  भी साधारण नहीं होते। लोककथाओं के अनुसार, अगर कुमारी जोर-जोर से रो दे, तो प्राकृतिक आपदा आ सकती है। इतिहास गवाह है कि एक बार कुमारी के रोने के बाद नेपाल में भारी प्रलय आई थी। यही वजह है कि कुमारी के चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनाए रखने की कोशिश की जाती है और उसे हर सुख-सुविधा दी जाती है।

चयन की कठिन प्रक्रिया

कुमारी बनने के लिए बच्ची का चयन बेहद कठिन प्रक्रिया से गुजरता है। नेपाल के राजपुरोहित, बौद्ध भिक्षु और ज्योतिषी मिलकर यह तय करते हैं कि कौन-सी बच्ची देवी बनने के योग्य है। इसके लिए बच्ची में 32 देवी लक्षण देखे जाते हैं, जिनमें आँखों  का आकार, आवाज़ की मधुरता, चाल-ढाल, और यहां तक कि उसके दाँतों  की संरचना भी शामिल होती है। चुनी गई बच्ची को कई दिनों तक अंधेरे कमरे में रखकर भी उसकी परीक्षा होती है, ताकि यह देखा जा सके कि वह भय से परे है या नहीं।

कुमारी घर में जीवन

कुमारी बनने के बाद आर्यतारा शाक्य अपने माता-पिता से दूर कुमारी घर में रहेंगी। यहाँ  उनके लिए विशेष नौकर-चाकर और देखभाल करने वाले होंगे। हर त्यौहार, खासकर इंद्र जत्रा और दशैं में कुमारी देवी को पालकी में बैठाकर दरबार स्क्वायर में निकाला जाता है, जहाँ  राजा और आम जनता दोनों उनका आशीर्वाद लेते हैं।

आधुनिक युग में विवाद

हालांकि कुमारी प्रथा नेपाल की संस्कृति का अहम हिस्सा है, लेकिन आधुनिक युग में इसे लेकर विवाद भी उठते रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि बचपन में माता-पिता से अलग कर बच्चियों को एकांत में रखना उनके बचपन और शिक्षा पर असर डालता है। नेपाल की सर्वोच्च अदालत ने 2008 में आदेश दिया था कि कुमारी को भी शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए। अब कुमारी घर में बच्चियों को पढ़ाई-लिखाई की सुविधा भी दी जाती है।

जीवित देवी की रहस्यमयी आभा

कुमारी प्रथा भले ही आधुनिक नजरिए से विवादास्पद लगे, लेकिन नेपाल के लिए यह आस्था और पहचान का हिस्सा है। जब कुमारी देवी पालकी में बैठकर निकलती हैं, तो पूरा शहर उनके दर्शन करने उमड़ पड़ता है। लोगों का विश्वास है कि उनकी एक झलक मात्र से ही जीवन की बाधाएं दूर हो जाती हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

निष्कर्ष

नेपाल की नई लिविंग गॉडेस आर्यतारा शाक्य अब वर्षों तक कुमारी घर में देवी का रूप मानी  जाएँगी । उनकी उपस्थिति नेपाल की आध्यात्मिक विरासत और आस्था की शक्ति का प्रतीक है। यह परंपरा हमें यह याद दिलाती है कि आधुनिकता की रफ्तार के बावजूद कुछ प्राचीन संस्कृतियां आज भी जीवित हैं और अपनी दिव्यता से समाज को प्रभावित करती हैं।

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