लद्दाख हिंसा पर उपराज्यपाल का आरोप: ‘बाहरी साजिश की बू’

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पूनम शर्मा
लेह में हालिया हिंसक प्रदर्शन ने पूरे लद्दाख को झकझोर दिया है। उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने इसे “सुनियोजित साजिश” करार दिया। उनका दावा है कि बाहरी ताकतें क्षेत्र में अशांति फैलाकर नेपाल और बांग्लादेश जैसे हालात पैदा करना चाहती हैं।

पृष्ठभूमि

हाल ही में लेह में CRPF के वाहन को आग के हवाले कर दिया गया और पुलिस बल पर पत्थरबाजी हुई। यह विरोध पहले पर्यावरण और रोजगार संबंधी मांगों के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन बाद में हिंसा में बदल गया। प्रशासन का कहना है कि इस पूरे घटनाक्रम में बाहरी तत्वों की भूमिका संदिग्ध है।

उपराज्यपाल का बयान

कविंदर गुप्ता ने कहा कि “लद्दाख की जनता शांतिप्रिय है, लेकिन कुछ संगठित समूह इसे बदनाम करने पर तुले हैं। यह आंदोलन अचानक हिंसक नहीं हुआ, इसके पीछे गहरी साजिश है।” उन्होंने दावा किया कि कई विदेशी समर्थित तत्व और NGO इस आंदोलन को दिशा देने में लगे हैं।

‘नेपाल और बांग्लादेश’ जैसी स्थिति का संदर्भ

गुप्ता ने नेपाल और बांग्लादेश का उल्लेख कर यह संकेत दिया कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो लद्दाख में अलगाववाद पनप सकता है। उनका कहना था कि जैसे अतीत में बाहरी ताकतों ने इन देशों की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप किया, उसी प्रकार यहां भी अलगाववादी सोच को बढ़ावा दिया जा रहा है।

प्रशासनिक कार्रवाई

हिंसा के बाद प्रशासन ने अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की है और इंटरनेट सेवाओं को सीमित किया है। कई लोगों को हिरासत में भी लिया गया है। पुलिस के अनुसार, प्रदर्शनकारियों के पास से हथियार और संदिग्ध साहित्य भी मिला है, जिससे साजिश की आशंका और गहराती है।

स्थानीय राजनीति और प्रतिक्रिया

स्थानीय नेताओं ने इस घटना पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। कुछ का कहना है कि सरकार को लद्दाख के लोगों की वास्तविक समस्याएं—नौकरी, पर्यावरण संरक्षण, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व—सुननी चाहिए। वहीं कुछ अन्य नेताओं का आरोप है कि यह सब योजनाबद्ध तरीके से केंद्र सरकार को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है।

राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल

लद्दाख सामरिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है। यह चीन और पाकिस्तान की सीमा से सटा है। ऐसे में वहां किसी भी प्रकार की अस्थिरता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकती है। यही कारण है कि उपराज्यपाल का बयान महज राजनीतिक नहीं बल्कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

सोशल मीडिया और अफवाहें

इस पूरे मामले में सोशल मीडिया की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। हिंसा के दौरान कई भड़काऊ पोस्ट और वीडियो वायरल हुए, जिनसे भीड़ भड़कने की आशंका जताई जा रही है। प्रशासन ने ऐसे खातों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।

आगे की राह

विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन को दोतरफा रणनीति अपनानी होगी—एक ओर कानून-व्यवस्था को सख्ती से लागू करना और दूसरी ओर जनता की वास्तविक मांगों को समझकर समाधान खोजना। साथ ही, बाहरी ताकतों की निगरानी बढ़ाना और स्थानीय नेतृत्व के साथ संवाद स्थापित करना भी जरूरी है।

निष्कर्ष

लेह की यह घटना केवल स्थानीय असंतोष का मामला नहीं रह गई है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और आंतरिक स्थिरता से भी जुड़ी है। उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता के आरोपों से स्पष्ट है कि सरकार इस पूरे प्रकरण को गंभीरता से ले रही है। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन किस प्रकार साजिश के आरोपों की जांच करता है और हिंसा के पीछे छिपे हाथों को बेनकाब करता है।

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