भारत में ‘लव-जिहाद’ के बढ़ते मामले: कानूनी और सामाजिक चुनौती

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पूनम शर्मा
हाल ही में कन्नड़ यूट्यूबर क्वाजा मोहम्मद हनीफ शिरहत्ती, जिन्हें मुखलेप्पा के नाम से भी जाना जाता है, के खिलाफ विवाह विवाद को लेकर FIR दर्ज की गई। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने इस मामले को उठाया और आरोप लगाया कि यह विवाह विवाद ‘लव-जिहाद’ का हिस्सा हो सकता है। यह मामला एक बार फिर से भारत में ‘लव-जिहाद’ के बढ़ते मामलों पर राष्ट्रीय ध्यान खींच रहा है।

लव-जिहाद क्या है?

‘लव-जिहाद’ एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग उन मामलों के लिए किया जाता है, जहां आरोप है कि किसी धर्म की युवतियों को प्रेम के बहाने धर्म परिवर्तन या विवाह के जरिए लक्ष्य बनाया जाता है। हाल के वर्षों में इस तरह के मामले विभिन्न राज्यों में सामने आए हैं। इन घटनाओं ने न केवल सामाजिक तनाव बढ़ाया है बल्कि कानूनी और नैतिक बहसों को भी जन्म दिया है।

हाल के मामले: मुखलेप्पा मामला

कन्नड़ यूट्यूबर क्वाजा मोहम्मद हनीफ शिरहत्ती के मामले में बजरंग दल ने आरोप लगाया कि उन्होंने युवती को प्रेम के बहाने बहलाया और विवाह किया, जो विवाद का मुख्य आधार बना। स्थानीय पुलिस ने FIR दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। यह मामला एक उदाहरण बन गया है कि किस तरह सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से युवाओं के बीच विवाह और प्रेम विवाद उभर सकते हैं।

अन्य बढ़ते मामले

पिछले कुछ वर्षों में भारत के कई राज्यों में लव-जिहाद के दर्जनों मामले सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इस तरह के मामलों ने कानून व्यवस्था और सामाजिक समरसता दोनों पर दबाव डाला है।

कानूनी पहलू

भारत में विवाह और धर्म परिवर्तन से जुड़े कानून स्पष्ट हैं। 2005 में बने धर्म परिवर्तन (धर्म परिवर्तन अधिनियम) और विभिन्न राज्यों में लागू ‘लव-जिहाद कानून’ का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी के साथ दबाव, धोखा या धोखाधड़ी न की जाए।

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि कई बार मामलों में पुलिस और न्यायपालिका पर दबाव अधिक होता है। सोशल मीडिया और समुदायिक दबाव की वजह से कानूनी प्रक्रिया धीमी पड़ती है। FIR दर्ज करना केवल जांच की शुरुआत है, लेकिन निष्पक्ष और पारदर्शी जांच सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है।

सामाजिक और मानसिक प्रभाव

लव-जिहाद के मामलों का सामाजिक प्रभाव भी बहुत बड़ा है। युवाओं में डर और संदेह की भावना फैलती है। कई परिवार अपनी बेटियों की सुरक्षा को लेकर सतर्क रहते हैं और ऐसे मामलों में विवाह और प्रेम संबंधों में खटास आती है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि शिक्षा और संवाद के माध्यम से युवाओं को सतर्क करना चाहिए। धर्म और व्यक्तिगत पसंद के मुद्दों को समझने की जरूरत है। समाज में कट्टरता और पूर्वाग्रह को रोकने के लिए जागरूकता जरूरी है।

डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की भूमिका

सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ने युवाओं के बीच संवाद बढ़ाया है, लेकिन इसके साथ ही ‘लव-जिहाद’ जैसे विवादों के लिए मंच भी तैयार किया है। कई बार गलत सूचनाएं और अफवाहें फैलाकर युवाओं को गुमराह किया जाता है।

इसलिए यह जरूरी है कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर नियंत्रित और सुरक्षित सामग्री का प्रचार हो। युवाओं को मानसिक और कानूनी रूप से प्रशिक्षित करना समाज की जिम्मेदारी है।

भविष्य की राह

लव-जिहाद के मामलों में संतुलित दृष्टिकोण जरूरी है। एक ओर युवाओं के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण होना चाहिए, वहीं कानूनी और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना भी आवश्यक है।

सरकार और समाज दोनों को मिलकर युवाओं को सही दिशा में मार्गदर्शन देना होगा। अभिभावकों, स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करके युवाओं को वास्तविकताओं से अवगत कराना जरूरी है।

निष्कर्ष

कन्नड़ यूट्यूबर क्वाजा मोहम्मद हनीफ शिरहत्ती का मामला एक चेतावनी है कि भारत में लव-जिहाद जैसे मुद्दे केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं बल्कि सामाजिक और कानूनी चुनौती बन गए हैं। FIR दर्ज होने के बाद निष्पक्ष जांच, कानूनी कार्रवाई और युवाओं में जागरूकता ही इस समस्या का स्थायी समाधान साबित हो सकती है।

समाज और सरकार को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रेम और विवाह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा बने, लेकिन किसी भी तरह के धोखे, दबाव या सामूहिक साजिश को बर्दाश्त न किया जाए।

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