मतदाता सूची पुनरीक्षण: आधे वोटरों को दस्तावेज की जरूरत नहीं

चुनाव आयोग ने किया बड़ा फैसला, 2002 की सूची में नाम वालों को नहीं देना होगा कोई प्रूफ, नए मतदाताओं को करना होगा यह काम।

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  • चुनाव आयोग के अनुसार, देशभर में आधे से अधिक मतदाताओं को मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में कोई नया दस्तावेज नहीं देना होगा।
  • यह छूट उन मतदाताओं को मिलेगी, जिनका नाम उनके राज्य में हुए पिछले गहन पुनरीक्षण (2002-2004) की मतदाता सूची में था।
  • नए मतदाताओं और जिनके नाम बाद में जोड़े गए हैं, उन्हें अपनी पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज देने होंगे।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 18 सितंबर, 2025: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने मतदाता सूची को और अधिक पारदर्शी और त्रुटिरहित बनाने की दिशा में एक बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला लिया है। आयोग ने घोषणा की है कि देश में आधे से ज्यादा मतदाताओं को मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान अपनी पहचान या पात्रता साबित करने के लिए किसी नए दस्तावेज की जरूरत नहीं होगी। यह निर्णय देश भर में होने वाले स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के मद्देनजर लिया गया है, जिसे जल्द ही पूरे देश में लागू किया जाएगा।

आयोग के अधिकारियों ने बताया कि यह छूट उन मतदाताओं को मिलेगी, जिनके नाम उनके संबंधित राज्यों में हुए पिछले गहन पुनरीक्षण की मतदाता सूची में शामिल थे। अधिकांश राज्यों में यह आखिरी पुनरीक्षण वर्ष 2002 से 2004 के बीच हुआ था। जिन मतदाताओं के नाम उस समय की मतदाता सूची में थे और वर्तमान सूची में भी हैं, उन्हें बूथ स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) को कोई अतिरिक्त दस्तावेज नहीं देना होगा। बीएलओ घर-घर जाकर सिर्फ जानकारी का मिलान करेंगे।

किन्हें देने होंगे दस्तावेज और क्या है वजह?

हालांकि, इस नए नियम में कुछ अपवाद भी हैं। नए मतदाता जो पहली बार अपना नाम मतदाता सूची में जोड़ रहे हैं, उन्हें फॉर्म भरना होगा। इसके साथ ही, जिन मतदाताओं के नाम 2002-2004 के बाद मतदाता सूची में जोड़े गए हैं, उन्हें आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे। खासकर 1987 के बाद जन्मे व्यक्तियों को अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान से संबंधित दस्तावेज देने पड़ सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति का नाम 2002 की मतदाता सूची में नहीं है, लेकिन उसके माता-पिता का नाम उस सूची में है, तो उसे अपने माता-पिता की उस समय की मतदाता सूची का अंश और एक पहचान दस्तावेज प्रस्तुत करना होगा।

चुनाव आयोग का यह कदम एक तरफ मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए है, वहीं दूसरी तरफ यह सुनिश्चित करना भी है कि किसी भी योग्य नागरिक का नाम दस्तावेजों के अभाव में न कटे। आयोग का उद्देश्य हर पात्र नागरिक का नाम निर्वाचक नामावली में शामिल करना और सूची से उन नामों को हटाना है जो अयोग्य हैं या जिनकी मृत्यु हो चुकी है।

22 साल बाद हो रहा गहन पुनरीक्षण

उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में यह प्रक्रिया 22-23 साल बाद हो रही है। उत्तर प्रदेश में आखिरी बार वोटर लिस्ट का गहन पुनरीक्षण 2003 में हुआ था, जबकि दिल्ली में यह 2002 के बाद हो रहा है। इस प्रक्रिया में 2002-03 की मतदाता सूची और वर्तमान मतदाता सूची का मिलान किया जाएगा। इस कदम का राजनीतिक दलों द्वारा विरोध भी हो रहा है, खासकर बिहार में जहां इसे विधानसभा चुनाव से पहले मुद्दा बनाया गया था। हालांकि, चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शिता के साथ की जाएगी। आयोग ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि विशेष ध्यान 18-19 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं पर दिया जाए, ताकि उन्हें पहली बार मतदाता सूची में शामिल किया जा सके।

इस पुनरीक्षण का मकसद मतदाता सूची को न केवल त्रुटिरहित और पारदर्शी बनाना है, बल्कि समावेशी पंजीकरण सुनिश्चित करना भी है।

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