पूनम शर्मा
भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनकी तेज़, सूझबूझ भरी और निर्णायक शैली के लिए जाना जाता है। हाल ही में अमेरिका में आयोजित एक उच्चस्तरीय कूटनीतिक कार्यक्रम के दौरान जब उनसे यह सवाल पूछा गया कि भारत रूस से तेल खरीदने के अपने निर्णय को क्यों जारी रख रहा है और अमेरिका की अपेक्षाओं पर ध्यान क्यों नहीं दे रहा, तब जयशंकर ने बिना हिचकिचाहट जवाब दिया कि भारत वही कर रहा है जो उसके राष्ट्रीय हित में है। उन्होंने कहा, “जैसा आप अपने राष्ट्रीय हित में करते हैं, हम भी वैसा ही कर रहे हैं।” यह जवाब न केवल तत्कालीन परिस्थिति में दमदार था, बल्कि भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांतों की स्पष्ट तस्वीर भी पेश करता है।
राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि मानना
जयशंकर की विदेश नीति में सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि वे हमेशा भारत के राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखते हैं। चाहे वह ऊर्जा सुरक्षा का सवाल हो, रक्षा सहयोग का मुद्दा हो, या वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति मजबूत बनाने का लक्ष्य, उनकी रणनीति हमेशा दीर्घकालिक लाभ और संप्रभुता पर केंद्रित रहती है। रूस से तेल की खरीद के मामले में उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं और आर्थिक स्थिरता को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने का अधिकार है।
कूटनीति में स्पष्टता और दृढ़ता
जयशंकर का सबसे बड़ा गुण उनकी स्पष्टता है। वे अपने विचारों और निर्णयों को बिना झिझक व्यक्त करते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मंचों पर भारत की स्थिति को मजबूत बनाता है। अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के सामने भी उन्होंने निर्भीकता और संतुलन के साथ जवाब दिया। उनकी यह क्षमता न केवल भारत की छवि को आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनाने में मदद करती है, बल्कि अन्य देशों को यह स्पष्ट संदेश देती है कि भारत अपनी नीति स्वयं निर्धारित करता है।
बहु-विमिय दृष्टिकोण और रणनीतिक संतुलन
जयशंकर का विदेश नीति दृष्टिकोण बहु-विमिय है। वे केवल अमेरिका या रूस के साथ संबंधों पर ध्यान नहीं देते, बल्कि चीन, मध्यपूर्व, यूरोप और अफ्रीका सहित वैश्विक मंचों पर भारत की स्थिति को संतुलित तरीके से स्थापित करते हैं। उन्होंने ऊर्जा, व्यापार, रक्षा और तकनीकी सहयोग में यह सुनिश्चित किया है कि भारत किसी भी देश पर निर्भर न रहे। यही कारण है कि रूस से तेल खरीद के बावजूद भारत ने अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंध बनाए रखे हैं।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रभावी संवाद
जयशंकर की कूटनीतिक शैली में सबसे प्रभावशाली पहलू यह है कि वे संवाद को कभी भी तनावपूर्ण या अप्रिय नहीं बनने देते। उन्होंने अमेरिका में जिस तरह से सवाल का जवाब दिया, वह उदाहरण है कि कैसे कठोर और चुनौतीपूर्ण प्रश्नों का उत्तर शांति, आत्मविश्वास और तथ्यात्मक दृष्टिकोण के साथ दिया जा सकता है। यह न केवल तत्कालीन स्थिति को संभालता है, बल्कि भारत के प्रति वैश्विक भरोसे को भी बढ़ाता है।
वैश्विक नैतिकता बनाम राष्ट्रीय हित
अक्सर आलोचना यह होती है कि भारत वैश्विक नैतिकता के अनुरूप कदम नहीं उठाता। लेकिन जयशंकर ने स्पष्ट किया कि अंतरराष्ट्रीय नैतिकता और राष्ट्रीय हित में संतुलन बनाए रखना ही वास्तविक कूटनीति है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि भारत अपनी नीतियों में नैतिकता और रणनीतिक विवेक दोनों को महत्व देता है, लेकिन किसी भी निर्णय में राष्ट्रीय सुरक्षा, ऊर्जा और आर्थिक स्थिरता को प्राथमिकता दी जाती है।
जयशंकर की रणनीतिक सोच के उदाहरण
जयशंकर ने कई मौकों पर यह दिखाया है कि वे दीर्घकालिक रणनीति के पक्षधर हैं। चाहे वह अमेरिका और चीन के बीच संतुलन हो, रूस और पश्चिम के साथ ऊर्जा संबंध, या मध्यपूर्व और अफ्रीका में निवेश और सहयोग, उनके निर्णय हमेशा भारत की सुरक्षा, विकास और वैश्विक स्थिति को ध्यान में रखते हुए होते हैं। उनकी यह रणनीति भारत को न केवल आज बल्कि भविष्य के लिए भी मजबूत बनाती है।
निष्कर्ष
डॉ. एस. जयशंकर ने अपनी सूझबूझ और दूरदर्शिता से यह साबित कर दिया है कि भारत की विदेश नीति आत्मनिर्भर, संतुलित और राष्ट्रीय हित पर केंद्रित हो सकती है। अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के सामने भी उन्होंने यह संदेश दिया कि भारत अपनी नीति खुद तय करता है। उनका यह दृष्टिकोण न केवल तत्कालीन मुद्दों को सुलझाने में मदद करता है, बल्कि भारत की वैश्विक छवि को एक मजबूत और स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित करता है।
जयशंकर की विदेश नीति में स्पष्टता, संतुलन, राष्ट्रीय हित की प्राथमिकता और बहु-विमिय दृष्टिकोण यह संकेत देते हैं कि भारत अब केवल प्रतिक्रिया नहीं करता, बल्कि वैश्विक मंच पर सक्रिय और निर्णायक भूमिका निभाता है। उनका यह नेतृत्व न केवल वर्तमान स्थिति में बल्कि आने वाले वर्षों में भारत के लिए निर्णायक साबित होगा।