जबलपुर के छात्रों ने फेक न्यूज रोकने का हल खोजा
दो इंजीनियरिंग छात्रों ने AI मॉडल से बनाए टूल, आपत्तिजनक और भड़काऊ संदेशों को तुरंत पहचानकर अलर्ट भेजेंगे।
- जबलपुर के दो इंजीनियरिंग छात्रों ने फेक न्यूज और भ्रामक संदेशों को रोकने के लिए AI आधारित सॉफ्टवेयर बनाए।
- ‘अस्त्र एआई’ देशविरोधी और धार्मिक रूप से आपत्तिजनक पोस्ट्स की पहचान करेगा।
- ‘हॉक’ नामक वेबसाइट हिंसा और धमकी से जुड़े मैसेजेस को ट्रैक कर पुलिस को अलर्ट करेगी।
समग्र समाचार सेवा
जबलपुर, 17 सितंबर, 2025: इंटरनेट और सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रही फेक न्यूज और भ्रामक वीडियो संदेशों को रोकने के लिए जबलपुर के दो इंजीनियरिंग छात्रों ने एक प्रभावी तकनीकी समाधान निकाला है। ज्ञान गंगा इंस्टीट्यूट के छात्र हर्ष कुमार और गवर्नमेंट जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र आयुष ने अलग-अलग लेकिन एक ही मकसद वाले सिस्टम तैयार किए हैं, जो सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहों, धमकियों और आपत्तिजनक कंटेंट को पहचानकर तुरंत अलर्ट भेजते हैं। इन छात्रों के प्रयासों की सराहना करते हुए जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज की विभाग प्रमुख डॉ. आज्ञा मिश्रा ने कहा कि ये तकनीकें समस्या नहीं, बल्कि समाधान बनकर सामने आई हैं।
ज्ञान गंगा इंस्टीट्यूट के हर्ष कुमार ने अस्त्र एआई (Astra AI) नाम का एक एप्लिकेशन बनाया है। यह एप्लिकेशन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हो रही देशविरोधी और धार्मिक रूप से आपत्तिजनक पोस्ट्स को शुरुआती स्तर पर ही पहचान लेता है। हर्ष ने बताया कि यह प्रोजेक्ट उन्हें साइबर सेल द्वारा दी गई एक चुनौती के तहत मिला था, क्योंकि अभी तक ऐसा कोई टूल नहीं था जो इतनी तेजी से वायरल हो रहे कंटेंट को पकड़ सके। अस्त्र एआई ऑटोमैटिकली ऐसे संदेशों का पता लगाता है और तुरंत साइबर क्राइम सेल को इसकी सूचना भेजता है।
‘हॉक’: धमकियों पर सीधी कार्रवाई
दूसरी ओर, जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र आयुष ने हॉक (Hawk) नाम की एक वेबसाइट विकसित की है। यह वेबसाइट ट्विटर, टेलीग्राम और ईमेल जैसे प्लेटफॉर्म्स पर आने वाले हिंसा या धमकी से जुड़े मैसेजेस को ट्रैक करती है। हॉक इन संदेशों को एक एआई मॉडल के जरिए जांचता है और यह तय करता है कि संदेश कितना खतरनाक है। आयुष ने बताया कि अगर कोई यूजर बार-बार झूठी खबरें या भड़काऊ बातें फैलाता है, तो सिस्टम उसे तुरंत ‘फ्लैग’ कर देता है, जिससे उसकी विश्वसनीयता कम हो जाती है। इसके अलावा, किसी गंभीर धमकी की स्थिति में हॉक सीधे पुलिस या सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट भेजता है।
इन दोनों सॉफ्टवेयर की सटीकता जांचने के लिए जबलपुर साइबर सेल ने इनका परीक्षण किया। परीक्षण के दौरान कुछ लोगों को जानबूझकर भारत विरोधी टिप्पणियां पोस्ट करने के लिए कहा गया। सिस्टम ने इन सभी पोस्ट्स को लाइव पहचान लिया। इन सॉफ्टवेयर्स की सटीकता अभी 97.5 प्रतिशत है, जो किसी भी तकनीकी समाधान के लिए काफी प्रभावशाली है। छात्रों ने यह भी स्पष्ट किया कि यह सॉफ्टवेयर केवल सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा का ही इस्तेमाल करता है।
समस्या नहीं, समाधान का हिस्सा बनी टेक्नोलॉजी
दोनों छात्रों ने टेक्नोलॉजी का सकारात्मक उपयोग किया है। जहां एक ओर सोशल मीडिया को अक्सर फेक न्यूज और घृणा फैलाने का जरिया माना जाता है, वहीं इन छात्रों ने यह साबित किया है कि सही दिशा में इस्तेमाल करने पर तकनीक समाज के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बन सकती है। ऐसे समय में जब गलत सूचनाएं समाज में विभाजन पैदा कर रही हैं, ये स्वदेशी समाधान न केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद करेंगे, बल्कि ऑनलाइन सुरक्षा को भी मजबूत करेंगे। इन नवाचारों से यह उम्मीद जगी है कि भविष्य में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए किया जाएगा।