सीजेआई गवई का तीखा बयान ​’यह अदालत है, आस्था की जगह नहीं’

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजेआई ने दी दलील, 'यह अदालत है, आस्था की जगह नहीं'।

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  • ​सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई ने एक सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से कहा, “यदि आप भक्त हैं, तो भगवान विष्णु से कहिए।”​
  • यह टिप्पणी तब की गई जब याचिकाकर्ता कानूनी दलीलों के बजाय अपनी आस्था और धार्मिक भावनाओं के आधार पर तर्क दे रहा था।​
  • CJI की यह टिप्पणी न्यायपालिका के इस सिद्धांत को रेखांकित करती है कि अदालतें साक्ष्य, कानून और संविधान के आधार पर चलती हैं, न कि व्यक्तिगत विश्वासों के आधार पर।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 17 सितंबर, 2025: देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट में एक सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई के एक तीखे और स्पष्ट बयान ने न्यायपालिका के सिद्धांतों को फिर से रेखांकित किया है। एक याचिकाकर्ता द्वारा अपनी दलील में धार्मिक आस्था और भावनाओं का सहारा लेने पर, सीजेआई गवई ने कहा, “यदि आप भक्त हैं, तो भगवान विष्णु से कहिए।” यह टिप्पणी उस समय सामने आई जब याचिकाकर्ता अपने केस को सिद्ध करने के लिए कानूनी तर्कों के बजाय अपने निजी धार्मिक विश्वासों का हवाला दे रहा था। सीजेआई की यह टिप्पणी इस बात को स्पष्ट करती है कि अदालतें सबूतों, कानूनों और संविधान के आधार पर ही फैसले सुनाती हैं, न कि आस्था या भक्ति के आधार पर।

​अदालत का काम कानून का पालन करना ​आस्था और कानून के बीच स्पष्ट रेखा

​CJI गवई ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए समझाया कि अदालत का उद्देश्य कानून और संविधान के दायरे में रहकर न्याय करना है। उन्होंने याचिकाकर्ता को सीधे तौर पर बताया कि अदालतें धार्मिक विश्वासों का परीक्षण नहीं करती हैं, बल्कि प्रस्तुत किए गए कानूनी साक्ष्यों और तथ्यों की समीक्षा करती हैं। यह न्यायिक प्रणाली का एक मूलभूत सिद्धांत है कि अदालतें व्यक्तिगत आस्थाओं से परे रहकर निष्पक्षता से काम करें। इस तरह के मामलों में, न्यायाधीशों को अक्सर याचिकाकर्ताओं को यह याद दिलाना पड़ता है कि अदालतें धार्मिक मंच नहीं हैं, बल्कि कानून की अदालतें हैं। सीजेआई की यह टिप्पणी न केवल एक विशिष्ट मामले के लिए थी, बल्कि यह सभी के लिए एक स्पष्ट संदेश था कि अदालत में केवल कानूनी तर्क ही मायने रखते हैं।

​न्यायपालिका का धर्मनिरपेक्ष चेहरा ​संविधान के प्रति प्रतिबद्धता

​सीजेआई की यह टिप्पणी भारतीय न्यायपालिका की धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ही भारत को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित किया गया है, और यह सिद्धांत न्यायपालिका के हर स्तर पर लागू होता है। न्यायाधीशों को अपने फैसले लेते समय अपनी व्यक्तिगत आस्थाओं को किनारे रखना होता है। ऐसे में, सीजेआई जैसे सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति का यह बयान यह सुनिश्चित करता है कि न्यायपालिका की नींव संविधान के सिद्धांतों पर टिकी रहे। यह कदम उन सभी लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण सीख है जो अदालती कार्यवाही में धार्मिक भावनाओं को शामिल करने का प्रयास करते हैं।

क्यों महत्वपूर्ण है यह बयान? ​भविष्य के लिए एक नजीर

​न्यायपालिका के लिए यह बयान एक महत्वपूर्ण नजीर बन सकता है। यह दर्शाता है कि न्यायाधीशों को ऐसे मामलों में किस तरह का रुख अपनाना चाहिए, जहां कानूनी और धार्मिक तर्क आपस में टकराते हैं। यह बयान यह भी सुनिश्चित करता है कि अदालतें न्यायिक प्रक्रियाओं का पालन करती रहें और किसी भी तरह के धार्मिक दबाव या भावनाओं से प्रभावित न हों। यह न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को और मजबूत करता है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि अदालतें सिर्फ कानूनी फैसले नहीं सुनातीं, बल्कि वे संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों को भी बनाए रखती हैं। सीजेआई का यह बयान उसी प्रतिबद्धता का एक ज्वलंत उदाहरण है।

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