पूनम शर्मा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल में वैश्विक राजनीति को एक बार फिर हिला देने वाली पहल की है। 13 सितंबर को लिखे एक खुले पत्र में उन्होंने “सभी नाटो देशों और दुनिया” से अपील की कि रूस पर कठोरतम प्रतिबंध लगाए जाएँ और रूसी तेल की खरीद तुरंत बंद की जाए। इसके साथ ही उन्होंने चीन पर 100 प्रतिशत तक के टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि यह कदम यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए दबाव की रणनीति का हिस्सा होगा।
रूसी तेल पर सख़्ती की अपील
ट्रम्प ने अपने पत्र में लिखा, “मैं रूस पर बड़े प्रतिबंध लगाने के लिए तैयार हूँ, लेकिन तभी जब सभी नाटो देश सहमत हों और रूसी तेल खरीदना बंद कर दें। कुछ देशों द्वारा रूसी तेल की खरीद चौंकाने वाली है। यह आपके वार्ताकारी और रणनीतिक शक्ति को कमजोर करता है।” यह बयान बताता है कि ट्रम्प रूस की ऊर्जा आपूर्ति को ही उसकी सबसे बड़ी ताक़त मानते हैं और उसी पर प्रहार करके रूस को आर्थिक और सामरिक रूप से कमजोर करने की योजना बना रहे हैं।
यूक्रेन युद्ध और ट्रम्प का दावा
ट्रम्प ने एक बार फिर यह दावा दोहराया कि उनके राष्ट्रपति रहते यूक्रेन युद्ध कभी शुरू ही नहीं होता। उन्होंने नाटो देशों की “पूरी प्रतिबद्धता” पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब तक रूस पर एकजुट प्रतिबंध नहीं लगाए जाते और तेल पर निर्भरता खत्म नहीं की जाती, तब तक यूक्रेन को न्याय नहीं मिल सकता। यह बयान न केवल ट्रम्प की विदेश नीति के रुख को स्पष्ट करता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि वे नाटो को अधिक अनुशासित और आक्रामक बनाना चाहते हैं।
चीन पर 100% टैरिफ का प्रस्ताव
ट्रम्प ने अपने पत्र में चीन पर 100% तक के टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा है। उनका तर्क है कि इस कदम से चीन पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा और वह रूस के समर्थन से पीछे हटने को मजबूर होगा। यह रणनीति अमेरिका-चीन व्यापारिक संबंधों को और तनावपूर्ण बना सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह टैरिफ वास्तव में लागू किए जाते हैं तो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, उत्पादन और कीमतों पर व्यापक असर पड़ेगा।
ट्रम्प 2.0 की विदेश नीति की झलक
इस पत्र को ट्रम्प 2.0 कार्यकाल की सबसे बड़ी विदेश नीति पहल माना जा रहा है। उनका फोकस स्पष्ट है—
रूस पर आर्थिक और ऊर्जा क्षेत्र में दबाव बढ़ाना।
नाटो को एकजुट कर रूस के खिलाफ़ सख़्त मोर्चा खड़ा करना।
चीन पर भारी टैरिफ लगाकर उसे आर्थिक रूप से झकझोरना।
यह रणनीति अमेरिका के पारंपरिक सहयोगियों के लिए भी चुनौतीपूर्ण है। यूरोप के कई देश अभी भी रूसी तेल पर निर्भर हैं। अचानक आयात बंद करना उनकी ऊर्जा सुरक्षा और उद्योगों पर असर डाल सकता है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नाटो देश ट्रम्प की अपील पर एकजुट होते हैं या अपनी-अपनी घरेलू प्राथमिकताओं के कारण अलग राह पकड़ते हैं।
विशेषज्ञों की राय
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सभी नाटो देश रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो रूस की आर्थिक क्षमता पर गहरा असर पड़ेगा और उसकी युद्ध नीति कमजोर हो सकती है। दूसरी ओर, चीन पर उच्च टैरिफ लगाने से अमेरिका-चीन व्यापारिक तनाव नई ऊँचाइयों पर पहुँच सकता है। यह स्थिति वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अस्थिरता और नई चुनौतियाँ पैदा करेगी।
अमेरिका-नाटो संबंधों में नया संतुलन
ट्रम्प का यह पत्र नाटो देशों के लिए एक अल्टीमेटम जैसा है। वे साफ़ कह रहे हैं कि रूस पर “बड़े प्रतिबंध” तभी लगेंगे जब सभी देश मिलकर कार्रवाई करेंगे। यह सामूहिक कार्रवाई नाटो की ताक़त को बढ़ा भी सकती है और सदस्य देशों के बीच मतभेदों को गहरा भी। ट्रम्प का लक्ष्य है कि नाटो “फ्री-राइडर” वाली छवि छोड़कर अमेरिका के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो।
भारत और एशिया के लिए संकेत
ट्रम्प की यह नीति केवल यूरोप तक सीमित नहीं है। इसका असर एशिया और विशेषकर भारत पर भी पड़ेगा। रूस भारत का पुराना रक्षा सहयोगी रहा है और ऊर्जा संबंध भी गहरे हैं। यदि अमेरिकी दबाव और वैश्विक प्रतिबंधों की दिशा और तीव्र होती है तो भारत को संतुलन साधना और कठिन हो जाएगा। साथ ही, चीन पर भारी टैरिफ और व्यापारिक तनाव एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी नई चुनौतियाँ खड़ी करेगा।
निष्कर्ष
ट्रम्प का यह पत्र एक बार फिर दुनिया को यह संदेश देता है कि अमेरिका की विदेश नीति अब सख़्ती और सौदेबाज़ी पर आधारित होगी। रूस पर प्रतिबंध और चीन पर टैरिफ—दोनों ही कदम अमेरिकी नेतृत्व को आक्रामक और निर्णायक दिखाने की कोशिश हैं। लेकिन यह रणनीति कितनी सफल होगी, यह नाटो देशों की एकजुटता और रूस-चीन की प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा।
यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के नाम पर ट्रम्प जो नई वैश्विक व्यवस्था गढ़ना चाहते हैं, वह मौजूदा अंतरराष्ट्रीय संतुलन को बदल सकती है। यह भी संभव है कि इससे अमेरिका के सहयोगियों पर नई आर्थिक और रणनीतिक ज़िम्मेदारियाँ बढ़ जाएँ। आने वाले महीनों में यह स्पष्ट होगा कि ट्रम्प 2.0 का यह “बड़ा दांव” वैश्विक शांति लाता है या और टकराव।