पूनम शर्मा
देश के भीतर चल रही कट्टरपंथी साजिशों और संवैधानिक बहसों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भारत के लोकतंत्र और आंतरिक सुरक्षा पर दोहरी चुनौती मंडरा रही है। शनिवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष महबूब आलम उर्फ महबूब आलम नदवी को 2022 के कुख्यात फुलवारीशरीफ क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी केस में गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी उस समय हुई है जब देश में वक्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर संसद और अदालत दोनों में घमासान मचा है।
पीएफआई का आतंक नेटवर्क और ‘इंडिया 2047’ का खौफनाक खाका
एनआईए के मुताबिक, महबूब आलम पीएफआई की उस साजिश का हिस्सा था जिसमें भारत में “इस्लामी शासन” स्थापित करने की योजना बनाई गई थी। आलम 19वां आरोपी है जिसे इस मामले में चार्जशीट किया गया है। जुलाई 2022 में पटना के फुलवारीशरीफ के अहमद पैलेस से जब यह “इंडिया 2047–टुवर्ड्स रूल ऑफ इस्लाम” नामक दस्तावेज़ बरामद हुआ तो पूरे देश में हड़कंप मच गया। इस दस्तावेज़ में पीएफआई ने साफ तौर पर लिखा था कि 2047 तक भारत को इस्लामी शासन के रास्ते पर ले जाना है।
महबूब आलम सिर्फ प्रचारक नहीं था बल्कि वह भर्ती, ट्रेनिंग, मीटिंग्स, फंडिंग और कट्टरपंथी गतिविधियों के आयोजन में सक्रिय था। एनआईए ने बताया कि आलम और उसके सहयोगी आम जनता के बीच डर फैलाकर अपनी विचारधारा थोपना चाहते थे। यह सीधे-सीधे आतंकी मानसिकता का हिस्सा है जो भारत के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने के लिए काम कर रही थी।
वक्फ़ एक्ट 2025: संसद से सुप्रीम कोर्ट तक विवाद
इसी के साथ देश में वक्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर भी बड़ी कानूनी जंग छिड़ी हुई है। केंद्र सरकार ने संसद में यह कानून पास किया और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इसे लागू कर दिया। लोकसभा में 288 बनाम 232 और राज्यसभा में 128 बनाम 95 वोट के अंतर से यह बिल पास हुआ—यानी यह सिर्फ एक कानूनी संशोधन नहीं बल्कि एक राजनीतिक टकराव भी है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर 1,332 पन्नों के हलफ़नामे में कहा कि वक्फ़ अपने आप में “धर्मनिरपेक्ष” अवधारणा है और इसे रद्द नहीं किया जा सकता। सरकार के अनुसार वक्फ़ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, ने इस कानून को “ऐतिहासिक और संवैधानिक सिद्धांतों से पूर्ण विचलन” बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह कानून वक्फ़ संपत्तियों को “ग़ैर-न्यायिक प्रक्रिया” के ज़रिये कब्ज़ाने की कोशिश है।
साइलेंट जिहाद बनाम संवैधानिक अधिकार
पीएफआई की गिरफ्तारी और वक्फ़ एक्ट पर बहस को अगर एक साथ पढ़ा जाए तो एक गहरी वैचारिक लड़ाई सामने आती है। एक ओर पीएफआई जैसे संगठन खुले तौर पर कट्टरपंथ और इस्लामी शासन के ख्वाब को बढ़ावा देते हैं, वहीं दूसरी ओर वक्फ़ एक्ट जैसी व्यवस्थाएँ लंबे समय से धार्मिक संस्थाओं को विशेषाधिकार देती रही हैं। अब पहली बार केंद्र सरकार इस “संतुलन” को तोड़कर एक नया कानूनी मानक बनाना चाहती है।
एनआईए की कार्रवाई यह संकेत देती है कि अब सरकार और एजेंसियाँ सिर्फ सतही स्तर पर नहीं बल्कि जड़ों में जाकर इन नेटवर्क्स को खत्म करने की कोशिश कर रही हैं। वहीं वक्फ़ एक्ट पर चल रही बहस यह बताती है कि भारत के संविधान और कानून की धर्मनिरपेक्षता बनाम विशेषाधिकार की व्याख्या भी नए मोड़ पर पहुँच चुकी है।
कट्टरपंथी एजेंडा और भारतीय राजनीति की परीक्षा
महबूब आलम की गिरफ्तारी केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं है बल्कि यह उन तमाम नेटवर्क्स के लिए संदेश है जो भारत को “2047 इस्लामी शासन” के सपने में झोंकना चाहते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ गिरफ्तारियाँ काफी हैं? क्या वक्फ़ एक्ट जैसा कानून संवैधानिक बराबरी लाने की दिशा में पहला कदम है या यह भी एक राजनीतिक चाल है?
केंद्र सरकार ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ते हुए “साइलेंट जिहाद” के खिलाफ नीतिगत रुख अपनाया है। लेकिन विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों पर हमला बताकर अपने राजनीतिक एजेंडे को साधना चाहता है।
भविष्य की दिशा: कानून, सुरक्षा और समाज
भारत इस समय एक निर्णायक मोड़ पर है। एक तरफ एनआईए जैसे संस्थान देश को आतंकी और कट्टरपंथी नेटवर्क्स से बचाने में जुटे हैं, दूसरी तरफ अदालतों और संसद में धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक विशेषाधिकार की नई व्याख्या लिखी जा रही है।
अगर “इंडिया 2047” जैसे दस्तावेज़ों में लिखी योजनाएँ सच होने दी गईं तो आने वाले वर्षों में यह सिर्फ असम या उत्तर भारत की समस्या नहीं होगी बल्कि पूरे देश की स्थिरता पर प्रश्नचिह्न लग जाएगा। दूसरी ओर, अगर वक्फ़ एक्ट जैसे कानूनों को पारदर्शिता और न्यायसंगत तरीके से लागू किया गया तो यह देश के कानूनी और संवैधानिक ढाँचे को मजबूत करेगा।
निष्कर्ष: सुरक्षा बनाम अधिकार का संतुलन
महबूब आलम की गिरफ्तारी और वक्फ़ एक्ट विवाद, दोनों घटनाएँ हमें यह याद दिलाती हैं कि भारत में सुरक्षा और संवैधानिक अधिकार के बीच एक पतली रेखा है। यह रेखा न केवल हमारे लोकतंत्र की मजबूती को तय करेगी बल्कि यह भी तय करेगी कि भारत एकता और अखंडता के साथ 2047 में प्रवेश करेगा या नहीं।
आज ज़रूरत है कि सरकार, न्यायपालिका और समाज तीनों मिलकर कट्टरपंथ, अवैध फंडिंग, और विशेषाधिकार आधारित संरचनाओं को खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाएँ। तभी “इंडिया 2047” का सपना इस्लामी शासन नहीं बल्कि विकसित भारत के रूप में साकार होगा।