अंतरिम सरकार के बाद नेपाल में छह महीने में चुनाव की तैयारी

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पूनम शर्मा
दक्षिण एशिया का छोटा मगर रणनीतिक रूप से अहम देश नेपाल एक बार फिर सुर्ख़ियों में है। भारत और तिब्बत (चीन) के बीच बसे इस हिमालयी राष्ट्र ने हाल ही में राजनीतिक उथल-पुथल के बाद सामान्य स्थिति की ओर क़दम बढ़ाया है। राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल द्वारा संसद भंग करने के बाद अब नेपाल छह महीने के भीतर आम चुनाव कराने की तैयारी कर रहा है।

व्यापक विरोध और अंतरिम सरकार का गठन

8 और 9 सितंबर 2025 को नेपाल की राजधानी काठमांडू समेत विभिन्न हिस्सों में भारी जनआंदोलन देखने को मिला। हज़ारों युवाओं ने शासन की जवाबदेही, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण और प्रतिबंधित सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स की बहाली की मांग को लेकर सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया। इस आंदोलन में 70 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जिनमें 55 युवा प्रदर्शनकारी शामिल थे, जबकि 1500 से अधिक लोग घायल हुए। ग़ुस्साए प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट परिसर, मंत्रियों के कार्यालय व आवास और कई राजनीतिक दलों के दफ़्तरों में तोड़फोड़ की। इस दौरान दो प्रमुख मीडिया संस्थानों—कान्तिपुर मीडिया ग्रुप और अन्नपूर्णा मीडिया नेटवर्क—पर हमला हुआ और छह पत्रकारों (जिनमें दो भारतीय थे) के साथ मारपीट की गई।

स्थिति बेक़ाबू होते देख सरकार और सेना को हस्तक्षेप करना पड़ा। लंबी बातचीत और समझौते के बाद 12 सितंबर को नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकीं सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ समारोह में उपराष्ट्रपति रामबरन यादव, भारत, चीन, अमेरिका आदि के राजनयिकों सहित चुनिंदा विशिष्टजन उपस्थित थे।

सुशीला कार्की: उम्मीद की नई किरण

73 वर्षीय सुशीला कार्की ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है और 1979 से कानूनी सेवा में हैं। वे नेपाल की पहली महिला अंतरिम प्रधानमंत्री बनी हैं जिन्हें 5 मार्च 2026 तक (फाल्गुन 21, 2082 बीएस) आम चुनाव कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

राष्ट्रपति पौडेल ने पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का इस्तीफ़ा स्वीकार करते हुए उम्मीद जताई कि सभी दल और नागरिक मिलकर इस संकट से बाहर निकलेंगे। ओली सरकार के कई मंत्री इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ चुके हैं जबकि स्वयं ओली नेपाल में ही मौजूद बताए जाते हैं।

राजनीतिक अस्थिरता की पुरानी जड़ें

नेपाल में 2008 में 239 साल पुरानी राजशाही के अंत और 10 साल लंबे माओवादी आंदोलन के बाद बहुदलीय लोकतंत्र की शुरुआत हुई। लेकिन तब से अब तक देश की सत्ता केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (यूएमएल), पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ की सीपीएन (माओवादी सेंटर) और शेरबहादुर देउबा के नेतृत्व वाली नेपाली कांग्रेस के बीच घूमती रही है। लगातार राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और गैर-शासन ने लोगों को मायूस कर दिया।

युवाओं की बेचैनी और सोशल मीडिया पर रोक

नेपाल की नई पीढ़ी, जो बेरोज़गारी और ग़रीबी से जूझ रही है, लंबे समय से सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स के माध्यम से सरकार की आलोचना कर रही थी। हाल ही में सरकार ने अधिकांश सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे पूरे देश के युवा नाराज़ हो गए। जब उन्होंने इन प्रतिबंधों को हटाने की मांग की तो पुलिस के दमन ने हालात और बिगाड़ दिए।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल में हुई हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना जताई और सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनने पर शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि भारत नेपाल की शांति, प्रगति और समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध है।

तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने भी कार्की को बधाई देते हुए नेपाल-तिब्बत के पारंपरिक संबंधों को याद किया और 1959 से तिब्बती शरणार्थियों को मिले नेपाल के सहयोग के प्रति आभार जताया। चीन के विदेश मंत्रालय ने भी कार्की को शुभकामनाएं दीं और द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई। बांग्लादेश के अंतरिम सरकार प्रमुख डॉ. मुहम्मद यूनुस ने विश्वास जताया कि कार्की का कार्यकाल नेपाल को शांति और स्थिरता की ओर ले जाएगा।

अपराध और असामाजिक तत्वों की चुनौती

विरोध प्रदर्शनों के बीच असामाजिक तत्वों ने जेल तोड़कर हज़ारों कैदियों को भागने में मदद की। कुछ को दोबारा पकड़ लिया गया है, लेकिन अब भी 12,000 से अधिक कैदी लापता बताए जा रहे हैं। यह नेपाल सरकार के लिए एक बड़ी सुरक्षा चुनौती है।

आगे की राह: आसान नहीं मगर ज़रूरी

नेपाल में यह पहली बार नहीं है जब बड़े पैमाने पर जनाक्रोश और राजनीतिक संकट देखने को मिला हो। परंतु यह स्पष्ट है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता की अपेक्षाएँ बढ़ी हैं। जिन लोगों ने कभी राजशाही के ख़िलाफ़ हथियार उठाए थे, वही अब बहुदलीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली से निराश दिखते हैं।

नेपाल की यह स्थिति इस बात का उदाहरण है कि सत्ता-विरोधी आंदोलन चलाना आसान होता है, लेकिन क्रांति के बाद देश को स्थिरता की राह पर ले जाना कहीं अधिक कठिन। अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की के सामने एक ओर चुनाव को पारदर्शी व सुरक्षित ढंग से कराना चुनौती है तो दूसरी ओर युवाओं का विश्वास बहाल करना और देश को दोबारा शांति, करुणा और ज्ञान की धरती के रूप में स्थापित करना भी उतना ही ज़रूरी है।

निष्कर्ष

नेपाल की ताज़ा राजनीतिक स्थिति भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया के लिए महत्वपूर्ण संकेत देती है। यह केवल एक देश का आंतरिक संकट नहीं, बल्कि इस क्षेत्र में लोकतांत्रिक आकांक्षाओं और उनकी चुनौतियों की झलक भी है। अंतरिम सरकार के नेतृत्व में नेपाल के पास खुद को पुनर्निर्मित करने का अवसर है। यदि देश समय पर पारदर्शी चुनाव करा सके, युवाओं को सहभागी बना सके और भ्रष्टाचार व अस्थिरता पर नियंत्रण पा सके, तो यह पूरे हिमालयी क्षेत्र में स्थिरता और विकास के नए युग की शुरुआत कर सकता है।

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