ISIS के स्लीपर मॉड्यूल का पर्दाफ़ाश: भारत के लिए बढ़ता ख़तरा

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पूनम शर्मा
पाँच शिक्षित युवकों की गिरफ्तारी ने यह साफ कर दिया है कि आतंकवाद की चुनौती भारत के अंदर तक गहराई से पैठ बना चुकी है। दिल्ली, मध्य प्रदेश, झारखंड और तेलंगाना से पकड़े गए इन आरोपियों के पास केवल धार्मिक कट्टरपंथ ही नहीं बल्कि रासायनिक हथियारों की तकनीक जैसी खतरनाक जानकारी भी थी। यह स्थिति भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर चेतावनी है।

आतंकवाद की रणनीति में बदलाव

पहले आतंकवादी संगठन सीमावर्ती इलाकों या संघर्षग्रस्त क्षेत्रों तक सीमित रहते थे। अब उन्होंने “स्लीपर मॉड्यूल” और डिजिटल नेटवर्क जैसी नई रणनीतियाँ अपनाई हैं। ये लोग साधारण नागरिकों की तरह समाज में घुल-मिलकर रहते हैं और ज़रूरत पड़ने पर हिंसक गतिविधियाँ करते हैं। इसका सबसे बड़ा खतरा यह है कि सुरक्षा एजेंसियों को समय रहते इनकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है।

डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म: आतंकियों का नया हथियार

पकड़े गए युवकों ने स्वीकार किया कि वे सोशल मीडिया के ज़रिए पाकिस्तान में बैठे हैंडलरों से संपर्क में थे। व्हाट्सऐप, टेलीग्राम और एन्क्रिप्टेड ऐप्स के जरिए संदेश भेजना और भर्ती करना अब बेहद आसान हो गया है। इस डिजिटल कनेक्टिविटी ने सीमाओं के पार बैठे आतंकियों को भारत के अंदर तक सीधी पहुँच दे दी है। जब तक इन नेटवर्क्स पर कठोर निगरानी नहीं होगी, भारत में कट्टरपंथी तत्व पनपते रहेंगे।

युवाओं पर खास निशाना

ISIS और अन्य चरमपंथी संगठन तकनीकी ज्ञान रखने वाले शिक्षित युवाओं को प्राथमिकता देते हैं। यह प्रवृत्ति भारत के लिए विशेष रूप से खतरनाक है, क्योंकि देश में बड़ी संख्या में युवा आबादी है। तकनीकी कौशल और इंटरनेट तक पहुँच रखने वाले युवा कट्टरपंथी प्रचार के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। अगर समय रहते इनको जागरूक न किया जाए, तो यह प्रवृत्ति लंबे समय में देश की स्थिरता को चुनौती दे सकती है।

 केमिकल हथियारों की चिंता

खुफिया सूत्रों के अनुसार पकड़े गए युवक रासायनिक हथियार बनाने की तकनीक सीख रहे थे। यह आतंकवाद की नई और अधिक विनाशकारी दिशा है। पारंपरिक बम विस्फोटों की तुलना में केमिकल या बायोलॉजिकल हथियारों का इस्तेमाल कहीं अधिक भयावह परिणाम ला सकता है। यह प्रवृत्ति न केवल जान-माल की भारी क्षति कर सकती है बल्कि देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचा सकती है।

आंतरिक सुरक्षा पर गहरा असर

भारत पहले ही विभिन्न प्रकार की आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा है—नक्सलवाद, अलगाववादी आंदोलन, सीमा पार से आतंकवाद। ऐसे में ISIS जैसे वैश्विक संगठन का नेटवर्क देश की आंतरिक सुरक्षा को और कमजोर कर सकता है। इसका सबसे बड़ा खतरा यह है कि यह संगठन समाज में विभाजन पैदा कर देश की एकता को तोड़ने की कोशिश करेगा।

सीमाओं की सुरक्षा और खुफिया सहयोग

सूत्र बताते हैं कि नेपाल और बांग्लादेश बॉर्डर से कई पाकिस्तानी आतंकवादी भारत में घुसपैठ कर चुके हैं। यह दर्शाता है कि हमारी सीमाएं अब भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए भारत को सीमा प्रबंधन, खुफिया सहयोग और तकनीकी निगरानी को और मजबूत करना होगा।

पुलिस और समाज दोनों की जिम्मेदारी

सिर्फ पुलिस या सुरक्षा एजेंसियों के भरोसे इस समस्या का हल नहीं होगा। स्थानीय समाज, धार्मिक संस्थान, और शैक्षिक संस्थान भी इस दिशा में पहल करें। जब तक युवा मानसिक रूप से सशक्त और जागरूक नहीं होंगे, तब तक बाहरी प्रचार उनके मन को प्रभावित कर सकता है। सामुदायिक नेतृत्व को भी यह जिम्मेदारी उठानी होगी कि युवाओं को कट्टरपंथ से बचाने वाले कार्यक्रम चलाए जाएं।

 अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अनिवार्यता

भारत अकेले इस खतरे से नहीं निपट सकता। ISIS का नेटवर्क कई देशों में फैला हुआ है। इसलिए भारत को अमेरिका, यूरोपीय देशों और पड़ोसी एशियाई देशों के साथ खुफिया जानकारी और तकनीकी सहयोग बढ़ाना होगा। साइबर-सुरक्षा और वित्तीय लेन-देन पर भी कड़ी निगरानी रखनी होगी।

वैचारिक लड़ाई

आतंकवाद सिर्फ हथियारों से नहीं पनपता, बल्कि विचारधारा से पनपता है। जब तक उस विचारधारा का खंडन और विकल्प समाज में मौजूद नहीं होगा, तब तक नई पीढ़ी गुमराह होती रहेगी। सरकार और नागरिक समाज को इस दिशा में मिलकर काम करना होगा। स्कूल-कॉलेजों में तर्क, आलोचनात्मक सोच और नागरिक मूल्यों की शिक्षा को बढ़ावा देना जरूरी है।

भविष्य की राह

इन गिरफ्तारियों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत के लिए अब यह खतरा केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक भी हो चुका है। आने वाले समय में सुरक्षा एजेंसियों को साइबर निगरानी, डिजिटल फॉरेंसिक और सामुदायिक खुफिया नेटवर्क को और उन्नत बनाना होगा। साथ ही सरकार को रोजगार, कौशल विकास और सामाजिक समावेशी कार्यक्रमों के ज़रिए युवाओं को सकारात्मक दिशा देनी होगी।

निष्कर्ष

ISIS के स्लीपर मॉड्यूल का भंडाफोड़ एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन यह भी साफ़ कर देता है कि भारत अब आतंकवाद के नए रूपों से जूझ रहा है। डिजिटल भर्ती, केमिकल हथियारों की तैयारी और शिक्षित युवाओं का कट्टरपंथ की ओर झुकाव—ये सभी संकेत बेहद खतरनाक हैं। यदि समय रहते कठोर और समन्वित कदम नहीं उठाए गए तो यह प्रवृत्ति देश की आंतरिक शांति, आर्थिक स्थिरता और सामाजिक ताने-बाने को गहरी चोट पहुँचा सकती है। इसलिए सुरक्षा बलों के साथ-साथ समाज और सरकार, दोनों को मिलकर इस चुनौती का सामना करना होगा।

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