भारत–इज़राइल आर्थिक रिश्तों में नई उड़ान : द्विपक्षीय निवेश समझौते से खुलेंगी संभावनाएँ

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पूनम शर्मा
भारत और इज़राइल के आर्थिक संबंधों में आज एक नया मील का पत्थर स्थापित हुआ, जब दोनों देशों के वित्त मंत्रियों ने नई दिल्ली में एक ऐतिहासिक द्विपक्षीय निवेश समझौते (Bilateral Investment Agreement – BIA) पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता न केवल निवेशकों को अधिक सुरक्षा और निश्चितता देगा बल्कि द्विपक्षीय व्यापार एवं वित्तीय सहयोग को भी नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा।

पुराने समझौते को बदला, नए युग की शुरुआत

1996 में भारत और इज़राइल के बीच निवेश संधि हुई थी, जिसे भारत ने 2017 में अपनी नई निवेश नीति के तहत समाप्त कर दिया था। तब से दोनों देश एक नई रूपरेखा पर काम कर रहे थे। यह नया बीआईए उसी का परिणाम है। विशेष बात यह है कि इज़राइल, भारत के नए निवेश मॉडल के तहत समझौता करने वाला पहला OECD सदस्य देश बना है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारत अब विकसित देशों के साथ भी निवेश सहयोग को लेकर आत्मविश्वास से आगे बढ़ रहा है।

समझौते के प्रमुख उद्देश्य

नया द्विपक्षीय निवेश समझौता निवेशकों को कानूनी सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करेगा। इसके तहत निवेशकों के हितों की रक्षा, विवाद निपटान के स्पष्ट प्रावधान, और पूंजी प्रवाह को प्रोत्साहन देने की व्यवस्था की गई है। यह समझौता नवाचार, डिजिटल व्यापार और अवसंरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) के क्षेत्र में सहयोग का रास्ता भी खोलेगा।

उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल की भागीदारी

नई दिल्ली में हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर इज़राइल के वित्त मंत्री बेज़लेल स्मोट्रिच और भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किए। इज़राइली प्रतिनिधिमंडल में वित्त मंत्रालय और सिक्योरिटीज़ अथॉरिटी के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे — जिनमें निदेशक जनरल इलान रोम, मुख्य अर्थशास्त्री डॉ. शमूएल अब्रामज़ोन, अकाउंटेंट जनरल याहली रोथेनबर्ग और इज़राइल सिक्योरिटीज़ अथॉरिटी के चेयरमैन सेफी जिंगर जैसे महत्वपूर्ण नाम शामिल थे।

यह प्रतिनिधिमंडल भारतीय अधिकारियों के साथ बैठकों की श्रृंखला में शामिल हुआ, जिनमें वित्तीय नियमन, निवेश प्रोत्साहन और आर्थिक नीति सहयोग जैसे विषयों पर गहन चर्चा की गई। दोनों देशों ने नवाचार, अवसंरचना विकास, डिजिटल व्यापार और वित्तीय नियमन को बढ़ावा देने के लिए साझा रणनीति बनाने पर जोर दिया।

रणनीतिक और कूटनीतिक महत्व

इज़राइल और भारत दोनों लंबे समय से रणनीतिक साझेदार रहे हैं। सुरक्षा और रक्षा के अलावा अब आर्थिक और वित्तीय सहयोग भी इस रिश्ते का अहम स्तंभ बन रहा है। यह समझौता दोनों देशों की साझा आर्थिक दृष्टि (shared economic vision) और परस्पर विकास की सोच को मजबूती देता है।
इज़राइल के वित्त मंत्री स्मोट्रिच ने इसे “भारत–इज़राइल आर्थिक संबंधों के लिए नए युग की शुरुआत” कहा। उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि इज़राइल भारत में अपने वित्त मंत्रालय का एक प्रतिनिधि कार्यालय खोलेगा ताकि सरकारी और निजी क्षेत्र के साथ सीधे जुड़ाव बढ़ाया जा सके। साथ ही उन्होंने निर्मला सीतारमण को इज़राइल आने का निमंत्रण भी दिया।

नवाचार और डिजिटल अर्थव्यवस्था पर फोकस

भारत और इज़राइल दोनों ही स्टार्टअप्स और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रणी देश हैं। नया निवेश समझौता नवाचार को बढ़ावा देने, डिजिटल व्यापार के नए अवसर खोलने और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में संयुक्त निवेश को प्रोत्साहित करने में मदद करेगा। इसमें क्षेत्रीय विकास बैंकों में सहयोग और इज़राइली निर्यातकों को बेहतर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने जैसे प्रावधान भी शामिल हैं।

निवेशकों के लिए लाभ

दोनों देशों के निवेशकों के लिए यह समझौता नए अवसर खोलेगा। निवेश सुरक्षा और विवाद समाधान के स्पष्ट प्रावधान से निवेश जोखिम कम होगा। यह न केवल बड़े उद्योगों के लिए बल्कि मध्यम और छोटे उद्यमों के लिए भी पूंजी और साझेदारी के रास्ते खोलेगा। भारत में इज़राइली निवेश बढ़ने से नई तकनीक, अनुसंधान और रोजगार के अवसर पैदा होंगे। वहीं, इज़राइल में भारतीय कंपनियों को भी टेक्नोलॉजी और फाइनेंस सेक्टर में नई संभावनाएँ मिलेंगी।

भारत के लिए महत्व

भारत पिछले कुछ वर्षों से अपने द्विपक्षीय निवेश समझौतों को नए मॉडल के तहत पुनर्निर्मित कर रहा है। यह समझौता इस नीति की सफलता का प्रमाण है। इससे यह संदेश भी जाता है कि भारत विश्वसनीय और स्थिर निवेश वातावरण प्रदान करने में सक्षम है। इसके ज़रिए भारत अपने निवेश माहौल को वैश्विक मानकों तक ले जाने की कोशिश कर रहा है।

निष्कर्ष : भविष्य की राह

भारत–इज़राइल द्विपक्षीय निवेश समझौता दोनों देशों के आर्थिक, कूटनीतिक और रणनीतिक रिश्तों में एक निर्णायक मोड़ है। इससे न केवल पूंजी प्रवाह और व्यापार बढ़ेगा बल्कि नवाचार, डिजिटल अर्थव्यवस्था और अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में सहयोग का दायरा भी बढ़ेगा।
यह समझौता आने वाले वर्षों में भारत को अन्य ओईसीडी देशों के साथ निवेश सहयोग बढ़ाने में भी मॉडल का काम करेगा। यह दर्शाता है कि भारत और इज़राइल केवल सुरक्षा और तकनीक ही नहीं बल्कि आर्थिक विकास के क्षेत्र में भी दीर्घकालीन साझेदारी बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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