बृहत्तर भारत को जोड़ने वाली अद्भुत परंपरा: श्राद्ध

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✍🏻मुदित अग्रवाल
जब मैं बृहत्तर भारत की बात करता हूँ उसमें केवल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश नहीं आता| उसमें आता है अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, म्यांमार, लाओस, थाईलैंड, कम्बोडिया, वियतनाम से मलेशिया, इंडोनेशिया तक.. और यह सब मैं केवल कल्पना के आधार पर नहीं मानता बल्कि इसलिए मानता हूँ क्योंकि इतिहास के पन्नों के इस बृहत्तर हिन्दूराष्ट्र अखण्ड भारत की सांस्कृतिक चेतना आज तक भी पूरी तरह नहीं सोई है|

और इस सांस्कृतिक एकात्मता की एक अद्वितीय पहचान है

“श्राद्ध”

श्राद्ध सनातन धर्म और सनातन धर्म की शाखा बौद्ध धर्म का भी आज तक एक अमिट अंग है| उपर बताए गये सभी देशों और जहाँ तक सनातन धर्म का प्रभाव रहा वहां आज तक पूर्वजों की तृप्ति के लिए लगभग समान रीतियों से श्राद्ध किया जाता है, जिसमें खासकर बौद्ध देशों को देखकर तो मैं बहुत ज्यादा विस्मित और गर्वित हो जाता हूँ वहीं चिंतित भी कि नवबौद्धवाद के नामपर आज हिन्दुओं के ही शूद्र वर्ग को श्राद्ध के खिलाफ भड़काया जाता है|

चीन, ताइवान : चीनी कैलेंडर के सातवें महीने के 15 दिन पितृपक्ष की भांति मनाए जाते हैं| चीन के बौद्ध और ताओ अपने पूर्वजों के लिए कुर्सियां खाली छोडकर शाकाहारी भोजन निवेदित करते हैं| ईसापूर्व 1500 के शांग साम्राज्य से ही यह परंपरा चीन में चली आ रही है| लोग अपने 7 पीढ़ी तक के पूर्वजों का स्मरण करते हैं और बौद्ध भिक्षुओं को चावल भेंट करते हैं| माना जाता है सारे पितृ नर्क स्वर्ग से धरती पर 15 दिन को आते हैं| अंतिम दिन घोस्ट डे के रूप में मनाया जाता है, उस दिन वे अपने घरों के सामने अगरबत्ती जलाते हैं और नदियों में दीपक प्रवाहित करते हैं ताकि पितरों को विदा कर सकें| महायान बौद्ध ग्रन्थ के उल्लंबन सूत्र के अनुसार मुद्गलयायन को बुद्ध ने उपदेश दिया था कि चावल के पिंड अर्पित करके तुम अपनी माँ को प्रेतयोनि से मुक्त करो|

इंडोनेशिया/सिंगापुर/मलेशिया/वियतनाम : यहाँ भी श्राद्ध घोस्ट फेस्टिवल के रूप में साल के सातवें महीने में मनाया जाता है और लोग बौद्ध मन्दिरों में जाकर पितरों के लिए दान करते हैं| वियतनाम में तेतत्रुंग न्गुयेन नाम के इस पर्व पर लोग पितरो के लिए पक्षियों, मछलियों और गरीबों को भोजन कराते हैं|

जापान : जापान में साल के सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन चुगेन नाम का पर्व मनाया जाता है जिस दिन जापानी लोग पितरों को उपहार अर्पित करते थे परन्तु अब इस दिन लोग सभी वरिष्ठों को उपहार देते हैं| कुछ जापानी समुदाय बॉन पर्व मनाते हैं जिस दिन लोग अपने पितरों के निवास पर जाकर श्रद्धांजली अर्पित करते हैं|

कम्बोडिया/लाओस: पितृपर्व या पिक्म बेन नाम का पर्व कम्बोडिया में सितम्बर अक्तूबर में पड़ता है और तीन दिन की छुट्टी होती है| कम्बोडिया में मान्यता है कि राजा यम प्रेतों के लिए यम का द्वार खोल देते हैं, उनमें कुछ मुक्त हो जाते हैं कुछ वापिस नर्क आ जाते हैं| कम्बोडियाई लोग बौद्ध भिक्षुओं को भोज कराते हैं और चावल के पिण्डों का दान करते हैं| सात पीढ़ियों तक के पितरों की तृप्ति के लिए बौद्ध भिक्षु पाली के सुत्तों के अखण्डपाठ करते हैं|

श्रीलंका/ म्यांमार: श्रीलंका में पितृपक्ष मटकादान्य नाम से मनाया जाता है और श्राद्ध तर्पण को उल्लंबन या सेगाकी कहते हैं जिसमें चावल के पिण्ड और जल प्रेत आत्माओं के लिए अर्पित करते हैं| बाकि परंपरा कम्बोडिया जैसे होती है|

थाईलैंड: थाईलैंड में भी कम्बोडिया की तरह पितृपक्ष मनाया जाता है और अंतिम दिन सतथाई नाम से जाना जाता है जिसके अगले दिन से 9 दिवसीय शरद पर्व आता है| इसमें नवरात्र की तरह पूर्ण शाकाहारी रहना होता है|

जैसे हमारे यहाँ साल के सातवें महीने अश्विन में पितृपक्ष पड़ता है वैसे ही इन अधिकांश देशों में पितृपक्ष या पितृ सम्बन्धित ये पर्व साल के सातवें महीने में पड़ते हैं| और देखिये पितृपर्व सम्बन्धी ज्यादातर मान्यताएं और परम्पराएं भी लगभग समान हैं| इन देशों में अन्य पर्व भी हिन्दू त्यौहारों से समानता रखते हैं|

कौन नहीं मानेगा कि यह सब देश एक सांस्कृतिक सूत्र में जुड़े रहे हैं और वह सूत्र है “सनातन”| अंत में एक और बात बताता चलूँ आज चाहे इनमें से अधिकांश बौद्ध हैं पर इतिहास में यह सारे देश रहे हैं…

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