समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 9 सितंबर 2025: तमिलनाडु की राजनीति से निकलकर भारत के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचने का सफर, सीपी राधाकृष्णन की कहानी दृढ़ता, निष्ठा और समर्पण का एक शानदार उदाहरण है। महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल और भाजपा के एक वरिष्ठ नेता, 68 वर्षीय राधाकृष्णन ने हाल ही में भारत के 17वें उपराष्ट्रपति का चुनाव जीतकर देश की सेवा में एक नया अध्याय शुरू किया है। उनका यह सफर, उनके शांत स्वभाव और संगठनात्मक कौशल का प्रमाण है।
प्रारंभिक जीवन और आरएसएस से जुड़ाव
चंद्रपुरम पन्नू स्वामी राधाकृष्णन, जिन्हें सीपी राधाकृष्णन के नाम से जाना जाता है, का जन्म 20 अक्टूबर 1957 को तमिलनाडु के तिरुप्पुर में हुआ था। एक साधारण परिवार में जन्मे राधाकृष्णन ने अपनी शुरुआती पढ़ाई और व्यवसाय प्रशासन में स्नातक की डिग्री कोयंबटूर से प्राप्त की।
छात्र जीवन से ही उनका जुड़ाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से हो गया था। उन्होंने आरएसएस के एक समर्पित कार्यकर्ता के रूप में अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की। संघ की विचारधारा और सिद्धांतों ने उनके व्यक्तित्व को आकार दिया, जो उनके पूरे राजनीतिक करियर में दिखाई देता है। उनकी सादगी, अनुशासन और राष्ट्रवाद के प्रति उनका समर्पण आरएसएस की शिक्षाओं का ही परिणाम माना जाता है।
सक्रिय राजनीति में प्रवेश और लोकसभा सांसद के रूप में कार्यकाल
राधाकृष्णन ने 1990 के दशक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। वह जल्द ही तमिलनाडु भाजपा के एक प्रमुख चेहरे के रूप में उभरे। 1998 में, उन्होंने कोयंबटूर से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता, जिससे वे देश की संसद में पहुंचे। उन्होंने 1999 के चुनाव में भी अपनी सीट बरकरार रखी, जिससे वे दो बार के लोकसभा सांसद बने।
उनका लोकसभा में कार्यकाल तमिलनाडु की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण समय था। कोयंबटूर जैसे द्रविड़ राजनीति के गढ़ में भाजपा का प्रतिनिधित्व करना उनकी राजनीतिक ताकत को दर्शाता था। सांसद के रूप में उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण काम किए और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में भी अपनी पहचान बनाई।
राज्यपाल के रूप में नई जिम्मेदारी
सांसद के रूप में अपने कार्यकाल के बाद, राधाकृष्णन ने पार्टी संगठन में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं, जिसमें तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष का पद भी शामिल है। पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा और संगठनात्मक क्षमताओं को देखते हुए उन्हें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी गईं।
2023 में, उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इस भूमिका में उन्होंने राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। इसके बाद, उन्हें तेलंगाना और पुदुचेरी के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया। जुलाई 2024 में, उन्हें महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण राज्य के राज्यपाल की जिम्मेदारी दी गई, जो उनकी बढ़ती राजनीतिक कद का संकेत था।
उपराष्ट्रपति के पद तक का सफर
एक अनुभवी राजनेता और प्रशासक के रूप में उनकी छवि ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए का सर्वसम्मत उम्मीदवार बना दिया। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद खाली हुए इस पद के लिए हुए चुनाव में उनका मुकाबला विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी से था।
9 सितंबर 2025 को हुए चुनाव में, सीपी राधाकृष्णन ने 452 वोट हासिल कर शानदार जीत दर्ज की, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी को 300 वोट मिले। यह जीत न केवल एनडीए की एकजुटता को दर्शाती है, बल्कि भारत की राजनीति में दक्षिण भारत के नेताओं के बढ़ते महत्व को भी रेखांकित करती है।
अपनी विनम्रता और सार्वजनिक सेवा के लंबे अनुभव के लिए जाने जाने वाले सीपी राधाकृष्णन, अब देश के दूसरे सर्वोच्च पद पर आसीन होकर संसदीय परंपराओं को बनाए रखने और राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए तैयार हैं। उनका शांत और अनुभवी व्यक्तित्व इस गरिमामय पद के लिए उन्हें एक आदर्श उम्मीदवार बनाता है।