भाजपा का हमला: विपक्ष के उपराष्ट्रपति प्रत्याशी और कांग्रेस की कथनी-करनी पर सवाल

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पूनम शर्मा
भारतीय राजनीति में इस समय उपराष्ट्रपति पद के चुनाव को लेकर गहमागहमी बढ़ गई है। विपक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन उनकी हालिया गतिविधियों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने तीखा हमला बोला है। खासकर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव से उनकी मुलाकात को भाजपा ने “अत्यंत पाखंड” करार दिया है। इसके साथ ही भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को भी कठघरे में खड़ा किया।

लालू से मुलाकात और भाजपा की आपत्ति

भाजपा का तर्क यह है कि जब एक पूर्व न्यायाधीश राजनीति के मैदान में उतरते हैं और “देश की आत्मा बचाने” जैसी ऊँची-ऊँची बातें करते हैं, तो उनके संपर्क और समर्थन की दिशा पर प्रश्नचिह्न उठना स्वाभाविक है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुदर्शन रेड्डी ने अपने प्रचार संदेश में कहा कि उन्हें वोट देकर देश की आत्मा और विवेक को बचाना चाहिए। लेकिन जब वे लालू प्रसाद यादव से समर्थन मांगते हैं, तो यह पूरे अभियान को संदेहास्पद बना देता है।

लालू प्रसाद स्वयं चारा घोटाले में दोषी करार दिए जा चुके हैं और भूमि के बदले नौकरी मामले में भी आरोप-पत्रित हैं। वे सांसद भी नहीं हैं, इसलिए उपराष्ट्रपति चुनाव में वोट देने का अधिकार ही नहीं रखते। ऐसे में भाजपा का सवाल है कि देश की आत्मा बचाने का दावा करने वाले व्यक्ति अगर भ्रष्टाचार के मामलों में सजायाफ्ता नेता से समर्थन मांगते हैं, तो यह “आत्मा की राजनीति” नहीं बल्कि “पाखंड की राजनीति” कहलाएगी।

कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे पर आरोप

प्रेस वार्ता के दौरान रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में एक किसान, जिसकी फसल बरबाद हो गई थी, खड़गे से मिलने और अपनी व्यथा बताने गया। लेकिन खड़गे ने उसकी पीड़ा को नजरअंदाज कर दिया। भाजपा के अनुसार यह दिखाता है कि कांग्रेस किसानों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेती।

इसके उलट मोदी सरकार ने जीएसटी में कटौती करके किसानों और आमजन को सीधी राहत दी है। उर्वरक और रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुएँ सस्ती हुई हैं। भाजपा का दावा है कि यही संवेदनशील और परिणामकारी राजनीति है, जबकि कांग्रेस केवल दिखावे और भाषणों तक सीमित है।

राहुल गांधी की अनुपस्थिति पर सवाल

भाजपा ने राहुल गांधी को भी आड़े हाथों लिया। रविशंकर प्रसाद ने पूछा कि जब बारिश और बाढ़ से किसान बुरी तरह प्रभावित हैं, तब राहुल गांधी कहाँ हैं? उन्होंने आरोप लगाया कि राहुल गांधी छुट्टियाँ मनाने में व्यस्त हैं, जबकि उन्हें कर्नाटक और पंजाब जैसे राज्यों में जाकर किसानों का हाल पूछना चाहिए था।

भाजपा की दृष्टि में यह राहुल गांधी की “कैजुअल राजनीति” का उदाहरण है। भाजपा मानती है कि राहुल गांधी किसानों की समस्याओं पर केवल बयानबाजी करते हैं, जबकि वास्तविक संकट के समय जनता के बीच उनकी उपस्थिति नहीं होती।

बिहार में मुद्दा बनेगा यह पाखंड

भाजपा प्रवक्ता ने संकेत दिया कि यह पूरा मामला बिहार की राजनीति में बड़ा मुद्दा बनेगा। लालू प्रसाद के भ्रष्टाचार और विपक्ष के पाखंड को जनता के सामने लाकर भाजपा चुनावी जमीन पर लाभ लेना चाहेगी। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस और उसके सहयोगियों की राजनीति धोखे और वोट बैंक पर टिकी है। लेकिन जनता अब गुमराह नहीं होगी और समय आने पर जवाब देगी।

विश्लेषण

अगर इस पूरे घटनाक्रम को व्यापक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह साफ है कि भाजपा विपक्ष के हर कदम को “पाखंड” और “धोखेबाजी” के फ्रेम में रखकर प्रचारित करना चाहती है। विपक्ष द्वारा पूर्व न्यायाधीश को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाना एक प्रतीकात्मक संदेश था—कि यह चुनाव “संविधान और लोकतंत्र की रक्षा” का है। लेकिन भाजपा ने उसी प्रतीक को लालू प्रसाद से मुलाकात के जरिए कमजोर करने की कोशिश की।

लालू प्रसाद का नाम आज भी भ्रष्टाचार के मामलों से जुड़ा हुआ है। विपक्ष उनके अनुभव और जनाधार को उपयोगी मान सकता है, लेकिन भाजपा के लिए यह हमला करने का सबसे आसान बिंदु है। न्यायमूर्ति रेड्डी की छवि चाहे कितनी भी साफ-सुथरी क्यों न हो, जब वे लालू जैसे विवादास्पद नेता के साथ तस्वीर खिंचवाते हैं, तो भाजपा को नैतिक सवाल उठाने का अवसर मिल जाता है।

दूसरी ओर, कांग्रेस नेतृत्व भी किसानों के मुद्दे पर असहज स्थिति में दिख रहा है। किसानों से जुड़ी घटनाओं को भाजपा ने तुरंत राजनीतिक हथियार बना लिया है। मल्लिकार्जुन खड़गे का किसान को नज़रअंदाज करना और राहुल गांधी का बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों में न जाना, दोनों घटनाओं को भाजपा ने जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए भुनाया।

निष्कर्ष

भाजपा की रणनीति साफ है—विपक्ष को “वोट बैंक राजनीति” और “पाखंड” का पर्याय सिद्ध करना। विपक्ष ने भले ही न्यायपालिका की छवि से जुड़े उम्मीदवार को सामने रखकर चुनाव को नैतिकता का रूप देने की कोशिश की हो, लेकिन लालू प्रसाद से जुड़ाव ने उस प्रयास की धार को कमजोर कर दिया। वहीं, कांग्रेस नेतृत्व की किसानों के मुद्दे पर उदासीनता की छवि विपक्ष की साख को और नुकसान पहुँचाती है।

कुल मिलाकर, यह मामला केवल उपराष्ट्रपति चुनाव तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि बिहार और अन्य राज्यों में भाजपा इसे नैतिक बनाम अनैतिक राजनीति की लड़ाई के रूप में पेश करेगी। जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश होगी कि भाजपा विकास और राहत की राजनीति करती है, जबकि विपक्ष केवल बयानबाजी और भ्रष्टाचार में उलझा रहता है।

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