बंगाल विधानसभा में हंगामा: भाजपा-टीएमसी में हाथापाई

सदन के भीतर धक्का-मुक्की और नारेबाजी, मुख्य सचेतक शंकर घोष घायल

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  • सदन में भारी हंगामा: पश्चिम बंगाल विधानसभा में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के विधायकों के बीच हाथापाई और झड़प हुई, जिससे कार्यवाही बाधित हुई।
  • विधायक निलंबित: हंगामे के दौरान भाजपा के मुख्य सचेतक शंकर घोष को निलंबित किया गया, जबकि विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी का निलंबन भी एक प्रमुख मुद्दा बना रहा।
  • आरोप-प्रत्यारोप: मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा पर बंगाली प्रवासियों से संबंधित गंभीर चर्चा को बाधित करने का आरोप लगाया, जबकि विपक्ष ने इसे ‘लोकतंत्र की हत्या’ बताया।

समग्र समाचार सेवा
कोलकाता, 04 सितंबर 2025: पश्चिम बंगाल विधानसभा का विशेष सत्र, जो प्रवासी बंगालियों की सुरक्षा पर चर्चा के लिए बुलाया गया था, 4 सितंबर, 2025 को भारी हंगामे और झड़प का गवाह बना। यह हंगामा उस समय शुरू हुआ जब भाजपा के विधायक विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी के निलंबन का मुद्दा उठा रहे थे। स्पीकर बिमान बनर्जी ने हंगामा शांत करने के कई प्रयास किए, लेकिन जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई, तो उन्होंने भाजपा के मुख्य सचेतक (चीफ व्हिप) शंकर घोष को दिनभर के लिए सदन से निलंबित कर दिया।

शंकर घोष का निलंबन और हिंसक झड़प

शंकर घोष के निलंबन के बाद भी जब उन्होंने सदन छोड़ने से इनकार कर दिया, तो स्पीकर ने मार्शलों को उन्हें बाहर निकालने का निर्देश दिया। इसी दौरान भाजपा विधायकों और मार्शलों के बीच तीखी हाथापाई और धक्का-मुक्की हुई। भाजपा विधायकों ने अपने साथी को बचाने की कोशिश की, जिससे माहौल और भी तनावपूर्ण हो गया। इस झड़प में शंकर घोष घायल हो गए, जिसकी जानकारी बाद में सामने आई। कई अन्य भाजपा विधायकों को भी मार्शलों द्वारा सदन से जबरन बाहर निकाला गया। इस घटना के बाद भाजपा ने ममता सरकार पर “लोकतंत्र की हत्या” का आरोप लगाया और कहा कि विधायकों के साथ दुर्व्यवहार किया गया है।

शुभेंदु अधिकारी का निलंबन: हंगामे की मुख्य वजह

इस पूरे हंगामे की जड़ें 2 सितंबर को हुए शुभेंदु अधिकारी के निलंबन से जुड़ी थीं। अधिकारी को कथित तौर पर भारतीय सेना पर की गई उनकी टिप्पणी के कारण निलंबित किया गया था। 4 सितंबर के हंगामे के दौरान भाजपा विधायक लगातार शुभेंदु अधिकारी के निलंबन का कारण और इस पर दिए जा रहे अलग-अलग बयानों पर स्पष्टीकरण मांग रहे थे। जब उन्हें यह मौका नहीं दिया गया, तो उन्होंने नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, जो अंततः हिंसा में बदल गया।

सीएम ममता बनर्जी और भाजपा के आरोप-प्रत्यारोप

हंगामे के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा पर तीखा हमला बोला। उन्होंने भाजपा विधायकों के व्यवहार को “असंसदीय” बताया और आरोप लगाया कि वे जानबूझकर एक गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दे (प्रवासी बंगालियों की सुरक्षा) पर होने वाली चर्चा को बाधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भाजपा “बंगाल विरोधी” है और वह बंगाल को दिल्ली से नियंत्रित करना चाहती है। वहीं, भाजपा ने भी ममता बनर्जी और उनकी सरकार पर जोरदार हमला किया। विपक्ष ने आरोप लगाया कि उन्हें विधानसभा में बोलने का अधिकार नहीं दिया जा रहा है और यह तृणमूल सरकार की तानाशाही को दर्शाता है। यह आरोप-प्रत्यारोप का दौर सदन के बाहर भी जारी रहा, जिससे राजनीतिक माहौल और भी गर्म हो गया।

पश्चिम बंगाल विधानसभा में हुई यह घटना भारतीय राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण और असहिष्णुता का एक दुखद उदाहरण है। यह न केवल संसदीय मर्यादाओं के लिए एक चुनौती है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे महत्वपूर्ण जन-मुद्दे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की भेंट चढ़ जाते हैं। यह घटना लोकतांत्रिक संस्थाओं के सम्मान और उनकी गरिमा को बनाए रखने की आवश्यकता पर बल देती है।

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