ट्रंप के इस्तीफे की अटकलें, भारत – रूसी तेल खरीदना हमारे राष्ट्रीय हित में

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

पूनम शर्मा 
अमेरिका की राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंगलवार को हलचल तब बढ़ गई जब यह खबर आई कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस्तीफा देने जा रहे हैं। टैरिफ विवादों, वैश्विक व्यापार पर बढ़ते दबाव और घरेलू राजनीतिक अस्थिरता के बीच यह खबर सामने आते ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उथल-पुथल मच गई। इसी बीच भारत ने भी अमेरिका और यूरोप को स्पष्ट संदेश देते हुए कहा कि रूसी तेल खरीदना उसके राष्ट्रीय हित में है और इस पर किसी बाहरी दबाव को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

ट्रंप की मुश्किलें और इस्तीफे की अटकलें

डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय से आक्रामक टैरिफ नीति और कठोर विदेश नीति के कारण आलोचनाओं के घेरे में हैं। चीन, यूरोप और यहां तक कि भारत पर भी उनके व्यापारिक निर्णयों का दबाव बना है। अमेरिकी मीडिया के हवाले से यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि आंतरिक राजनीतिक दबाव और विपक्ष के हमलों के कारण ट्रंप अब इस्तीफे की ओर बढ़ सकते हैं। हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस में उनके खिलाफ कड़े सवाल उठाए गए थे और उनकी लोकप्रियता में भी गिरावट देखी जा रही है।

विश्लेषकों का मानना है कि अगर ट्रंप इस्तीफा देते हैं तो यह अमेरिकी राजनीति में 21वीं सदी का सबसे बड़ा भूचाल होगा। इसके असर न केवल अमेरिकी चुनावों पर बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था और रणनीतिक समीकरणों पर पड़ेगा।

भारत की स्पष्ट रणनीति: राष्ट्रीय हित सर्वोपरि

इसी घटनाक्रम के बीच भारत के केंद्रीय मंत्री बेसेंट ने एक बयान जारी कर कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है और वह अपने नागरिकों और उद्योगों के हित को सर्वोपरि रखता है। उन्होंने कहा, “रूसी तेल खरीदना भारत के लिए केवल आर्थिक निर्णय नहीं बल्कि रणनीतिक आवश्यकता है। महंगाई पर काबू, ऊर्जा सुरक्षा और दीर्घकालिक विकास के लिए भारत को विविध स्रोतों से तेल खरीदना ही होगा।”

यह बयान अमेरिका और यूरोपीय देशों के उस दबाव के बीच आया है, जिसमें वे भारत से रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों का पालन करने की अपेक्षा कर रहे हैं। लेकिन भारत ने दो टूक कहा है कि वह किसी भी वैश्विक शक्ति का पिछलग्गू नहीं बनेगा और केवल अपने राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर निर्णय लेगा।

अमेरिकी वित्त मंत्री की प्रतिक्रिया

भारत के इस रुख पर प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिकी वित्त मंत्री ने कहा, “भारत एक लोकतांत्रिक देश है और हमें भरोसा है कि वह अपने हितों और वैश्विक साझेदारी के बीच संतुलन बनाएगा। लेकिन यह भी ज़रूरी है कि वैश्विक नियमों का सम्मान हो।”
यह बयान यह संकेत देता है कि अमेरिका भारत पर सीधा दबाव डालने के बजाय बातचीत और कूटनीतिक रास्ता अपनाना चाहता है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की स्थिति

ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति और रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत ने अपने लिए संतुलित रास्ता चुना है। एक ओर वह अमेरिका और यूरोप के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर रूस से ऊर्जा और रक्षा सहयोग को जारी रखे हुए है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यही संतुलन भारत की ताकत है। अगर अमेरिका में नेतृत्व परिवर्तन होता है तो भारत के पास अवसर होगा कि वह नई परिस्थितियों में और भी मजबूती से अपनी स्थिति को परिभाषित करे।

बाज़ारों पर असर

ट्रंप के इस्तीफे की खबर के बाद एशियाई शेयर बाजारों में गिरावट दर्ज की गई। डॉलर के मुकाबले रुपया शुरुआती गिरावट के बाद स्थिर हो गया। कच्चे तेल की कीमतों में भी हल्की उथल-पुथल देखी गई, लेकिन भारतीय अधिकारियों का कहना है कि तेल आयात में किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी।

निष्कर्ष

आज की स्थिति वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। अगर ट्रंप वास्तव में इस्तीफा देते हैं, तो यह अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए बड़ा झटका होगा। वहीं, भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह वैश्विक ताकतों की रस्साकशी में फंसने वाला नहीं है और अपने राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखेगा।

भारत का यह आत्मविश्वासी रुख आने वाले समय में एशिया और दुनिया के शक्ति समीकरणों को गहराई से प्रभावित करेगा। अमेरिका की अनिश्चित राजनीतिक स्थिति और भारत की स्पष्ट ऊर्जा नीति यह दिखा रही है कि 21वीं सदी में वैश्विक संतुलन धीरे-धीरे एशिया की ओर झुक रहा है।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.