सुप्रीम कोर्ट के जज ‘आइवरी टावर’ में नहीं: अभिषेक मनु सिंघवी

सिंघवी ने कहा- जजों को पता है जमीनी हकीकत

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  • सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने एक महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान कहा कि न्यायाधीश ‘आइवरी टावर’ में नहीं बैठे हैं।
  • उन्होंने यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ के सामने की।
  • यह बयान महाराष्ट्र में अनुसूचित जनजातियों (STs) के लिए आरक्षण से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान आया, जिसने मामले में एक नया मोड़ ला दिया।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 03 सितंबर 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक बार फिर कानून और वास्तविकता के बीच का संबंध चर्चा का विषय बन गया है। एक महत्वपूर्ण संवैधानिक सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सामने एक ऐसी टिप्पणी की, जिसने सबका ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के जज ‘आइवरी टावर’ में नहीं बैठे हैं, वे भी जमीनी हकीकत जानते हैं।”

यह बयान उस समय आया, जब मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान, पीठ के एक न्यायाधीश ने आरक्षण को लागू करने में आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों पर टिप्पणी की थी, जिसके जवाब में सिंघवी ने यह बात कही।

आरक्षण का संवैधानिक और व्यावहारिक पक्ष

सिंघवी महाराष्ट्र सरकार की ओर से बहस कर रहे थे, और उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि वह केवल संवैधानिक सिद्धांतों के आधार पर ही नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत और आरक्षण के सामाजिक प्रभाव को ध्यान में रखकर फैसला दे। उन्होंने तर्क दिया कि आरक्षण केवल कानून का मसला नहीं है, बल्कि यह लाखों लोगों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान से जुड़ा हुआ है।

उन्होंने कहा कि “न्यायाधीशों को यह पता है कि आरक्षण एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा है, और वे इसे केवल कानूनी दृष्टिकोण से नहीं देखेंगे।” यह बयान इस बात का संकेत था कि सरकार चाहती है कि अदालत सामाजिक न्याय के पहलू को भी गंभीरता से ले।

‘आइवरी टावर’ क्या है और इसका क्या मतलब है?

‘आइवरी टावर’ एक मुहावरा है जिसका उपयोग ऐसी जगह या स्थिति का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जहां लोग दुनिया की व्यावहारिक और जमीनी समस्याओं से अलग-थलग होकर रहते हैं। सिंघवी ने इस मुहावरे का उपयोग यह बताने के लिए किया कि न्यायाधीश समाज से कटे हुए नहीं हैं और उन्हें भी पता है कि भारत में सामाजिक असमानता और पिछड़ेपन जैसी समस्याएं मौजूद हैं।

यह बयान अपने आप में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिखाता है कि कैसे वकील अदालत में सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ को भी अपनी दलीलों का हिस्सा बना रहे हैं। यह सिर्फ कानूनी प्रावधानों की बात नहीं, बल्कि यह भी बताना है कि अदालत के फैसलों का समाज पर क्या असर पड़ेगा।

 

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