शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन से पहले ज़ेलेंस्की–मोदी वार्ता
युद्ध और शांति की कूटनीति बातचीत में युद्धविराम, शांति प्रयास और भारत की संभावित मध्यस्थ भूमिका पर ज़ोर दिया गया।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली ,2 सितंबर– शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन से ठीक पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई टेलीफोन वार्ता ने अंतरराष्ट्रीय हलकों में हलचल पैदा कर दी है। इस सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल होंगे और माना जा रहा है कि मोदी–पुतिन की मुलाक़ात भी तय है। ऐसे में ज़ेलेंस्की की पहल को कूटनीतिक रूप से बेहद अहम माना जा रहा है।
अमेरिका और यूरोप से बातचीत के बाद भारत से संपर्क
ज़ेलेंस्की ने मोदी को बताया कि हाल ही में उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूरोपीय नेताओं के साथ वॉशिंगटन में उच्चस्तरीय वार्ताएँ कीं। उन्होंने कहा कि इन चर्चाओं से एक साझा दृष्टिकोण उभरा है कि वास्तविक शांति कैसे लाई जा सकती है। ज़ेलेंस्की के शब्दों में—
“यह एक उपयोगी और महत्वपूर्ण संवाद था। हमने इस बात पर सहमति जताई कि युद्ध समाप्त करने की शुरुआत सार्थक बातचीत से होनी चाहिए। यूक्रेन रूस के राष्ट्रपति से मुलाक़ात के लिए तैयार है।”
लेकिन इसके साथ ही उन्होंने रूस पर लगातार सैन्य हमलों का आरोप लगाते हुए अपनी नाराज़गी भी जताई।
“दो हफ़्ते बीत चुके हैं, और इस दौरान जब रूस को कूटनीति की तैयारी करनी चाहिए थी, उसने केवल बमबारी की, नागरिकों को निशाना बनाया और दर्जनों लोगों की जान ले ली,” ज़ेलेंस्की ने कहा।
मोदी से संवेदना और शांति प्रयासों का भरोसा
राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने मोदी को पीड़ित परिवारों के प्रति जताई गई संवेदनाओं के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत वैश्विक मंच पर एक प्रभावशाली भूमिका निभा सकता है।
“भारत संवाद को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक प्रयास करने और रूस व अन्य नेताओं तक उचित संदेश पहुँचाने के लिए तैयार है,” ज़ेलेंस्की ने कहा।
मोदी ने भी बातचीत के बाद सोशल मीडिया पर लिखा—
“राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के साथ आज की फोन वार्ता के लिए धन्यवाद। हमने वर्तमान संघर्ष, उसके मानवीय पहलुओं और शांति एवं स्थिरता बहाल करने के प्रयासों पर विचार साझा किए। भारत इस दिशा में हर संभव प्रयासों का समर्थन करता है।”
युद्धविराम ही पहला कदम
ज़ेलेंस्की ने ज़ोर देकर कहा कि शांति की राह युद्धविराम से होकर ही गुज़रेगी।
“युद्ध समाप्त करने की शुरुआत तत्काल युद्धविराम और आवश्यक चुप्पी से होनी चाहिए। जब तक हमारे शहरों और बस्तियों पर बमबारी हो रही है, तब तक शांति पर कोई सार्थक चर्चा नहीं हो सकती।”
उनका यह बयान सीधे तौर पर रूस पर दबाव बनाने का प्रयास माना जा रहा है, ताकि SCO सम्मेलन में यह मुद्दा गंभीरता से उठ सके।
भारत की रणनीतिक संतुलनकारी भूमिका
यह वार्ता ऐसे समय में हुई है जब भारत, रूस और पश्चिमी देशों दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हुए है। एक ओर रूस भारत का पारंपरिक रणनीतिक साझेदार है, वहीं अमेरिका और यूरोप भी भारत के मज़बूत सहयोगी बनकर उभर रहे हैं। इस वजह से भारत पर सबकी नज़रें हैं कि वह मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है या नहीं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत का रुख़ अब तक संतुलित रहा है। मोदी सरकार ने रूस की खुली आलोचना करने से परहेज़ किया है, लेकिन साथ ही मानवीय मदद और संवाद की अपील लगातार करती रही है। SCO सम्मेलन में मोदी–पुतिन मुलाक़ात इस संतुलन की असली परीक्षा मानी जाएगी।
द्विपक्षीय संबंधों पर भी चर्चा
दोनों नेताओं ने सिर्फ़ युद्ध और शांति ही नहीं, बल्कि भारत–यूक्रेन संबंधों को मज़बूत करने पर भी बात की। चर्चा में संयुक्त अंतर-सरकारी आयोग की बैठक बुलाने और उच्चस्तरीय दौरों की संभावना पर भी विचार हुआ। ज़ेलेंस्की ने कहा—
“हमारे संबंधों में बड़ी संभावनाएँ हैं। मैं प्रधानमंत्री मोदी से जल्द ही व्यक्तिगत मुलाक़ात करने का इच्छुक हूँ।”
कूटनीति का नया अध्याय?
विश्लेषकों के मुताबिक यह वार्ता यूक्रेन की बड़ी कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है। ज़ेलेंस्की जानते हैं कि केवल पश्चिमी देशों का समर्थन पर्याप्त नहीं है। रूस पर वास्तविक दबाव बनाने के लिए भारत और चीन जैसे देशों की भागीदारी आवश्यक होगी। भारत अगर SCO मंच पर शांति के पक्ष में मज़बूत संदेश देता है, तो यह रूस के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है।
दूसरी ओर, भारत के लिए यह मौका है कि वह वैश्विक मध्यस्थ और ‘विश्वगुरु’ की अपनी छवि को और मज़बूत करे।
नतीजे की ओर निगाहें
SCO सम्मेलन में जब मोदी, पुतिन और अन्य नेताओं से मुलाक़ात करेंगे, तब यह साफ़ होगा कि भारत ने यूक्रेन–रूस संघर्ष पर किस हद तक दबाव बनाने या समाधान सुझाने का प्रयास किया। ज़ेलेंस्की–मोदी की यह वार्ता निश्चित रूप से इस दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत है।
युद्ध और शांति की इस कूटनीतिक जंग में अब सबकी निगाहें चीन में होने वाले सम्मेलन पर टिकी हैं, जहाँ यह तय होगा कि क्या भारत वाक़ई इस वैश्विक संकट में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है या फिर युद्ध का तूफ़ान और लंबा खिंच जाएगा।