अशोक कुमार
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जेक सुलिवन ने अमेरिकी राजनीति में एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। उनका सनसनीखेज आरोप है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने परिवार के पाकिस्तान में चल रहे व्यापारिक सौदों के लिए भारत के साथ दशकों से बने महत्वपूर्ण संबंधों को दांव पर लगा दिया है। सुलिवन, जो बाइडन प्रशासन में भी एक प्रमुख पद पर रहे हैं, का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार और भू-राजनीतिक मुद्दों को लेकर तनाव पहले से ही बढ़ रहा है।
सुलिवन के इस दावे ने न केवल अमेरिका में बल्कि भारत और दुनिया भर के कूटनीतिक हलकों में भी भूचाल ला दिया है। उनका कहना है कि एक मजबूत भारत-अमेरिका साझेदारी चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन ट्रंप प्रशासन की नीतियां इस साझेदारी को नुकसान पहुंचा रही हैं। सुलिवन ने सीधे तौर पर ट्रंप के परिवार और उनके सहयोगियों की एक क्रिप्टोकरेंसी कंपनी (वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल) और पाकिस्तान के बीच हुई डील का जिक्र किया है। उनका दावा है कि इस डील के बाद से ही ट्रंप का रुख भारत के खिलाफ अधिक नकारात्मक हो गया है।
ट्रंप का ‘पाकिस्तान प्रेम’ और भारत के प्रति कड़ा रुख
जेक सुलिवन के अनुसार, ट्रंप का पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अचानक नहीं आया है। यह सीधे तौर पर उनकी पारिवारिक कंपनी वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल और पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल के बीच हुए एक समझौते से जुड़ा है। यह डील पाकिस्तान सरकार द्वारा क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन को कानूनी मान्यता देने के संकेत के तुरंत बाद हुई थी। सुलिवन ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में ट्रंप और उनके सहयोगियों की 60% हिस्सेदारी है। इस डील के बाद, जून में पाकिस्तान सेना के फील्ड मार्शल असीम मुनीर और ट्रंप की व्हाइट हाउस में मुलाकात हुई, जहां उन्होंने व्यापार और क्रिप्टोकरेंसी पर बात की।
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की प्राथमिकताएं व्यक्तिगत व्यापारिक लाभ से निर्देशित हो सकती हैं। यह एक गंभीर आरोप है, क्योंकि इसका मतलब है कि अमेरिकी विदेश नीति को एक देश के राष्ट्रपति के व्यक्तिगत और पारिवारिक व्यावसायिक हितों के अनुसार चलाया जा रहा है। यह अमेरिकी कूटनीति की विश्वसनीयता पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाता है, जो लंबे समय से वैश्विक साझेदारों के साथ संबंधों को स्थिरता और विश्वास पर आधारित मानता रहा है।
अमेरिकी टैरिफ और भारत पर दोहरी मार
सुलिवन के बयान को समझने के लिए भारत पर हाल ही में लगाए गए अमेरिकी टैरिफ को भी समझना जरूरी है। ट्रंप प्रशासन ने भारत से आयात होने वाले सामानों पर 50% का भारी टैरिफ लगाया है, जिसमें रूसी तेल खरीद पर 25% का अतिरिक्त दंडात्मक शुल्क भी शामिल है। यह टैरिफ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, विशेषकर कपड़ा, आभूषण और हस्तशिल्प जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों के लिए।
सुलिवन का आरोप है कि ये टैरिफ न केवल व्यापार असंतुलन को लेकर हैं, बल्कि ये ट्रंप की निजी रणनीति का भी हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप की आर्थिक नीतियां अमेरिका को भी नुकसान पहुंचा रही हैं। सुलिवन के मुताबिक, ट्रंप के इन कदमों से भारत जैसे प्रमुख सहयोगी को यह संदेश मिल रहा है कि अमेरिका पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इससे भारत जैसे देश चीन से निपटने के लिए दूसरे विकल्प खोजने पर मजबूर हो सकते हैं, जो अमेरिका के दीर्घकालिक सामरिक हितों के लिए एक बड़ा नुकसान होगा।
क्या भारत को मिल रही है चीन की ओर धकेलने की कोशिश?
जेक सुलिवन ने अपने बयान में एक और गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ट्रंप की नीतियों ने भारत को चीन की तरफ धकेलने का काम किया है। उनका कहना है कि जब अमेरिका को चीन की चुनौती का सामना करने के लिए भारत के साथ अपनी साझेदारी मजबूत करनी चाहिए थी, तब ट्रंप ने टैरिफ लगाकर संबंधों में तनाव पैदा किया। हाल ही में एससीओ शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी का चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलना इसी बात का संकेत देता है। कई विशेषज्ञ भी मानते हैं कि अमेरिका की अस्थिर और अप्रत्याशित नीतियां भारत को रणनीतिक रूप से अधिक लचीला बनने पर मजबूर कर रही हैं।
सुलिवन ने चेतावनी दी कि अगर अमेरिका अपने दोस्तों के साथ इस तरह का व्यवहार करता रहा तो जर्मनी, जापान और कनाडा जैसे अन्य देश भी अमेरिका पर भरोसा करना छोड़ देंगे। इस तरह की स्थिति वैश्विक मंच पर अमेरिका की साख को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाएगी। भारत के संदर्भ में यह आरोप अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जिसके साथ अमेरिका को तकनीक, प्रतिभा, अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति जैसे हर क्षेत्र में एकजुट होना चाहिए ताकि चीन के बढ़ते खतरे का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया जा सके।
भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और अमेरिकी दबाव
इस पूरी स्थिति में भारत का रुख अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर आधारित रहा है। भारत ने हमेशा कहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार ही काम करेगा। चाहे वह रूस से तेल खरीदना हो या किसी भी अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर अपना अलग रुख रखना हो, भारत ने अमेरिकी दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया है। ट्रंप प्रशासन ने भले ही टैरिफ लगाए हों, लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने किसानों और छोटे उद्योगों के हितों से समझौता नहीं करेगा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी कई बार कहा है कि भारत के व्यापारिक संबंध सिर्फ व्यापारिक नहीं हैं, बल्कि यह उसकी ऊर्जा सुरक्षा और जनता के कल्याण से भी जुड़े हुए हैं।
जेक सुलिवन के आरोप, अगर सही हैं, तो ये भारत-अमेरिका संबंधों के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करते हैं। यह आरोप यह भी सवाल उठाते हैं कि क्या दुनिया की सबसे बड़ी शक्तियां अब केवल व्यक्तिगत लाभ और व्यापारिक हितों से प्रेरित होकर अपनी विदेश नीतियां तय कर रही हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अमेरिकी जनता और वहां के राजनीतिक दल इन आरोपों पर किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं, खासकर जब अगले राष्ट्रपति चुनाव करीब हैं। इस बीच, भारत के लिए यह जरूरी है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखे और किसी भी देश के व्यक्तिगत हितों से प्रभावित हुए बिना अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करे। यह विवाद न केवल दो देशों के बीच के संबंधों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि यह वैश्विक कूटनीति के भविष्य पर भी सवाल उठाता है।