पूनम शर्मा
भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी युवा आबादी है। हमारे पास दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे युवा जनसंख्या है, जिसे “डेमोग्राफिक डिविडेंड” कहा जाता है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि यह ताकत आज दोहरी स्वास्थ्य समस्या से जूझ रही है। एक ओर आधे से ज्यादा किशोरियां एनीमिया (खून की कमी) से पीड़ित हैं, वहीं दूसरी ओर निष्क्रिय जीवनशैली का नया संकट तेजी से बढ़ रहा है। स्थिति यह है कि देश के ज्यादातर बच्चे शारीरिक गतिविधियों के तय मानकों को पूरा नहीं कर पा रहे और 75% से अधिक बच्चे स्क्रीन टाइम की सीमा पार कर चुके हैं। इसके नतीजे बेहद डरावने हैं — आज लगभग 17% युवा प्री-डायबिटिक हो चुके हैं और हर पांच में से एक बच्चा मोटापे का शिकार है। यह गंभीर स्वास्थ्य संकट हमारी भविष्य की क्षमता को सीधी चुनौती दे रहा है।
एआई और खेलों की नई क्रांति
इसी समय दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की क्रांति से गुजर रही है। जहां एआई काम करने के ढंग से लेकर पेशों को बदल रहा है, वहीं इंसानी ज़रूरतों में खेल, गतिविधि और शारीरिक अभिव्यक्ति पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जाएंगे। आज चर्चा होती है कि एआई का उपयोग खिलाड़ियों के प्रदर्शन को निखारने, रिकॉर्ड तोड़ने और रणनीति बनाने में कैसे हो रहा है। लेकिन असली क्रांति केवल खेलों की ऊंचाई पर नहीं, बल्कि इसकी जड़ों में छुपी है।
भारत जैसे देश में एआई का सबसे बड़ा उपयोग आम लोगों के स्वास्थ्य संकट को दूर करने में है। असली समस्या यह नहीं कि बच्चों में खेलने की इच्छा नहीं है, बल्कि यह है कि डिजिटल दुनिया ने उनकी ध्यान शक्ति (attention) को पूरी तरह कैद कर लिया है। गेम्स, सोशल मीडिया और स्क्रीन की चमकदार दुनिया बच्चों को लगातार बांधे रखती है। ऐसे में पारंपरिक खेल और व्यायाम उन्हें उतना आकर्षित नहीं कर पाते। सवाल यह है कि हम तकनीक से लड़ें नहीं, बल्कि उसकी भाषा में बच्चों को दोबारा खेल और गतिविधियों की ओर कैसे खींचें?
स्क्रीन टाइम से एक्टिव प्ले टाइम तक
यहीं पर एआई पुल का काम करता है। यह डिजिटल दुनिया और वास्तविक खेल के बीच सेतु बनाता है। स्मार्टफोन के कैमरे से अब एआई हरकतों को समझ सकता है, गिन सकता है, और उनकी गुणवत्ता का विश्लेषण कर सकता है। उदाहरण के लिए, अगर बच्चा कूदता है तो उसका स्कोर बढ़ सकता है, अगर वह किसी स्किल को बेहतर करता है तो उसका “लेवल अप” हो सकता है। यानी अब शारीरिक मेहनत का भी डिजिटल दुनिया में इनाम और पहचान मिलती है। स्क्रीन केवल मनोरंजन का साधन नहीं रह जाती, बल्कि वास्तविक खेल का स्कोरबोर्ड बन जाती है।
यही गेमिफिकेशन (Gamification) बच्चों को खेलों में जोड़ने की सबसे बड़ी कुंजी है। यह सीधे तौर पर सरकार की ‘खेलो भारत नीति 2025’ के उस लक्ष्य को पूरा करती है जिसमें खेलों को “जन आंदोलन” बनाने की बात कही गई है।
हर बच्चे की जेब में कोच
एआई खेलों को लोकतांत्रिक भी बनाता है। पहले जहां प्रोफेशनल कोचिंग केवल बड़े शहरों और चुनिंदा अकादमियों तक सीमित थी, वहीं अब एआई हर बच्चे की जेब में “कोच” बन सकता है। यह तत्काल और व्यक्तिगत फीडबैक देता है, जिससे बच्चे अपनी तकनीक सुधार सकते हैं और खेल में महारत हासिल कर सकते हैं। महारत और आत्मविश्वास ही बच्चों को लंबे समय तक खेलों से जोड़े रखते हैं।
दूसरी ओर, एआई का डेटा-आधारित मूल्यांकन पूरे खेल तंत्र में भरोसे की कमी को भी खत्म करता है। आज कई बार टैलेंट पहचानना कोचों और अधिकारियों की राय पर निर्भर करता है, जो पक्षपातपूर्ण हो सकती है। लेकिन एआई के जरिए निष्पक्ष आंकड़े मिलते हैं, जिससे टैलेंट पहचानना और निखारना आसान हो जाता है। इससे छोटे शहरों और गांवों में छुपी प्रतिभाओं को भी वही अवसर मिलते हैं जो बड़े शहरों के खिलाड़ियों को मिलते हैं।
स्वास्थ्य और खेल दोनों का फायदा
एआई की यह क्रांति केवल खेल प्रतिभाओं को पहचानने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इससे समाज का आधार भी मजबूत होता है। जब बच्चों को मज़ेदार और पुरस्कृत करने वाला खेल वातावरण मिलता है तो वे स्क्रीन छोड़कर मैदान की ओर लौटते हैं। इससे उनकी सेहत सुधरती है, मोटापा, डायबिटीज़ और एनीमिया जैसी समस्याओं से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
स्वस्थ और सक्रिय जनसंख्या से एक मजबूत प्रतिभा पाइपलाइन तैयार होती है। इस आधार पर भरोसेमंद और पारदर्शी तंत्र अगली पीढ़ी के चैंपियनों को तैयार कर सकता है। यही वह रास्ता है जो भारत को फिट, हेल्दी और स्पोर्टिंग नेशन बना सकता है। और यही भविष्य में भारत की ओलंपिक 2036 की मेजबानी के सपने को साकार करने में मदद करेगा।
निष्कर्ष
एआई का असली वादा केवल चुनिंदा खिलाड़ियों के प्रदर्शन को सुधारने में नहीं है, बल्कि हर बच्चे को खेलों और गतिविधियों से जोड़ने में है। यह हमारी स्वास्थ्य चुनौतियों का मूल से समाधान है। जब खेल और गतिविधियां बच्चों के लिए डिजिटल गेम्स जितनी आकर्षक होंगी, तब ही हम उन्हें स्क्रीन से मैदान की ओर खींच पाएंगे।
भारत की सबसे बड़ी पूंजी — उसकी युवा आबादी — तभी सचमुच ताकत बनेगी जब वह फिट, सक्रिय और आत्मविश्वासी होगी। एआई हमें यही मौका दे रहा है — डिजिटल क्रांति को इस्तेमाल कर स्वास्थ्य क्रांति लाने का। यही रास्ता हमें एक खेल प्रधान, स्वस्थ और आत्मनिर्भर राष्ट्र की ओर ले जाएगा।