भारत पर ट्रंप के 50% टैरिफ पर दुनिया भर में हंगामा

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अशोक कुमार
भारत और अमेरिका, दो सबसे बड़े लोकतंत्र, एक महत्वपूर्ण व्यापारिक युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय सामानों पर अचानक 50% का भारी-भरकम टैरिफ लगाने के बाद, न केवल दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों में कड़वाहट आई है, बल्कि पूरी दुनिया की मीडिया में भी इस पर गरमागरम बहस छिड़ गई है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया का एक बड़ा वर्ग इस कदम को अमेरिका की ‘सेल्फ गोल’ रणनीति बता रहा है, जिससे अमेरिका को ही भारी नुकसान होगा। वहीं, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह भारत को झुकाने की एक दबाव वाली रणनीति है।

इस घटनाक्रम ने वैश्विक कूटनीति और व्यापार के बदलते समीकरणों को उजागर किया है। भारत ने दृढ़ता से इस टैरिफ का विरोध किया है और स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों, खासकर ऊर्जा सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं करेगा। दुनिया की मीडिया भारत के इस अडिग रुख की सराहना कर रही है और इसे एक स्वतंत्र वैश्विक शक्ति के रूप में देख रही है।

ट्रंप का ‘50% टैरिफ बम’: क्यों हुआ यह हमला?

यह समझने के लिए कि विश्व मीडिया की प्रतिक्रिया क्या है, हमें पहले इस विवाद की जड़ को समझना होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय सामानों पर अतिरिक्त 25% का शुल्क लगाकर कुल टैरिफ को 50% तक पहुंचा दिया। इस कदम का मुख्य कारण रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद को जारी रखना है। ट्रंप प्रशासन का आरोप है कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस से सस्ता तेल खरीदकर उसके ‘युद्ध मशीन’ को बढ़ावा दे रहा है।

भारत ने इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उसके ऊर्जा खरीद के फैसले बाजार की स्थितियों पर आधारित हैं और 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत ने यह भी कहा कि जब पश्चिमी देश भी रूस से उर्वरक और अन्य रसायनों का आयात जारी रखे हुए हैं, तब केवल भारत को निशाना बनाना ‘अन्यायपूर्ण, अनुचित और अतार्किक’ है।

दुनिया की मीडिया ने ट्रंप के फैसले को कैसे देखा?

ट्रंप के इस फैसले ने अमेरिका और भारत के संबंधों को अब तक का सबसे बड़ा झटका दिया है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स ने इस पर अपनी-अपनी राय व्यक्त की है:

1. अमेरिकी मीडिया: ‘ट्रंप ने भारत को खो दिया’

अमेरिका के प्रमुख ब्रॉडकास्टर सीएनएन ने अपने विश्लेषणों में कई विश्लेषकों के हवाले से कहा कि इस टैरिफ विवाद से अमेरिका ने अपना एक महत्वपूर्ण रणनीतिक सहयोगी, भारत, खो दिया है। सीएनएन ने यह भी बताया कि इस कदम से न केवल भारत को, बल्कि अमेरिका को भी नुकसान हो रहा है, क्योंकि भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ने से अमेरिकी कंपनियों और उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ गई हैं। यह महंगाई के इस दौर में अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए एक और झटका है।

अमेरिकी सदन की विदेश मामलों की समिति में डेमोक्रेट्स ने भी ट्रंप की इस नीति की आलोचना की। उन्होंने सवाल उठाया कि जब चीन जैसे बड़े रूसी तेल खरीदार पर कोई टैरिफ नहीं लगाया गया, तो केवल भारत को निशाना क्यों बनाया जा रहा है? इसे ट्रंप की पक्षपाती नीति बताया गया, जिसका उद्देश्य केवल भारत पर दबाव बनाना था।

2. ब्रिटिश मीडिया: ‘ट्रंप ने सब कुछ गंवा दिया’

ब्रिटेन के प्रतिष्ठित अखबार ‘द गार्डियन’ ने ट्रंप के 50% टैरिफ को भारत-अमेरिका संबंधों में अब तक की सबसे बड़ी क्षति बताया। अखबार ने एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी के हवाले से लिखा, “ट्रंप ने सब कुछ गंवा दिया।” ‘द गार्डियन’ ने जोर देकर कहा कि भले ही दोनों देश एक-दूसरे पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करते थे, लेकिन फिर भी वे एक मजबूत रणनीतिक रिश्ता बनाने में कामयाब रहे थे, जो अब खतरे में है।

3. चीनी और रूसी मीडिया: ‘भारत को हमारे करीब धकेला गया’

चीनी और रूसी मीडिया ने इस घटनाक्रम को अपने लिए एक अवसर के रूप में देखा। चीनी अखबारों ने लिखा कि अमेरिका भारत को रूस से तेल खरीदने पर दंडित कर रहा है, जिससे भारत और चीन के बीच नए व्यापारिक संबंध मजबूत हो सकते हैं। कुछ रिपोर्ट्स में यहां तक कहा गया कि ट्रंप अपने इस कदम से भारत को चीन और रूस के और करीब धकेल रहे हैं, जिससे एक ‘प्रतिरोध का नया ध्रुव’ बन सकता है।

रूसी मीडिया ने भी इस पर अपनी टिप्पणी दी। उनके अनुसार, यह दिखाता है कि अमेरिका अपने हितों के लिए किसी भी देश पर दबाव बना सकता है, जबकि भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखकर एक स्वतंत्र विदेश नीति का प्रदर्शन किया है।

यह टैरिफ सिर्फ व्यापारिक नहीं, रणनीतिक भी है

दुनिया की मीडिया का यह भी मानना है कि ट्रंप का यह कदम केवल व्यापार तक सीमित नहीं है। यह एक भू-राजनीतिक दांव है। द न्यूयॉर्क टाइम्स, फॉक्स न्यूज और रॉयटर्स जैसी एजेंसियों ने इसे भारत पर दबाव बनाने की रणनीति बताया है, ताकि वह रूस से दूरी बनाए और अमेरिका के साथ व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर करे।

ट्रंप प्रशासन ने भारत से अपने कृषि और डेयरी बाजारों को अमेरिकी उत्पादों के लिए खोलने की मांग की थी, जिसे भारत ने किसानों के हितों की रक्षा के लिए मानने से इनकार कर दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस पर स्पष्ट रुख अपनाया था कि वह अपने किसानों के हितों से समझौता नहीं करेंगे। इस मुद्दे को सुलझाने के बजाय, ट्रंप ने टैरिफ का सहारा लिया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया।

भारत का अडिग रुख: आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम

विश्व मीडिया ने भारत के इस अडिग रुख की सराहना की है। यह दर्शाती है कि भारत अब एक ऐसी महाशक्ति बन गया है जो किसी भी दबाव में झुकने को तैयार नहीं है। इस घटना ने भारत को अपने व्यापारिक साझेदारों में विविधता लाने के लिए प्रेरित किया है। भारत यूरोपीय संघ, लैटिन अमेरिकी देशों, अफ्रीका और अन्य एशियाई देशों के साथ नए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर बातचीत कर रहा है, ताकि अमेरिका के टैरिफ से होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सके।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह संकट भारत के लिए एक अवसर भी है। यह स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के नारे को और मजबूत करेगा, जिससे भारतीय उद्योग न केवल घरेलू बाजार पर ध्यान केंद्रित करेंगे, बल्कि नए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अपनी पहचान बनाएंगे।

भारत पर ट्रंप के 50% टैरिफ को विश्व मीडिया ने एक आत्मघाती कदम बताया है, जो अमेरिका को उसके सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार से दूर कर रहा है। यह घटना भारत को एक नए वैश्विक ध्रुव के रूप में स्थापित करती है, जो अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकेगा।

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