आरएसएस प्रमुख का बड़ा बयान: ‘हिंदू समाज को एकजुट करना ही हमारा लक्ष्य’

मोहन भागवत बोले- 'हिंदू राष्ट्र का मतलब किसी को अलग करना नहीं, बल्कि विश्व कल्याण है'

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
  • आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का एकमात्र लक्ष्य पूरे हिंदू समाज को एकजुट करना है।
  • उन्होंने ‘हिंदू’ शब्द की समावेशी परिभाषा दी और कहा कि इसका अर्थ किसी को बाहर करना नहीं, बल्कि विविधता का सम्मान करना है।
  • भागवत ने जोर देकर कहा कि देश का उत्थान केवल नेताओं या सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पूरे समाज को इसमें योगदान देना होगा।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 28 अगस्त, 2025: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने संघ के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि उनका और संघ का एकमात्र लक्ष्य पूरे हिंदू समाज को एकजुट करना है। भागवत ने इस दौरान ‘हिंदू’ और ‘हिंदू राष्ट्र’ की परिभाषा को स्पष्ट किया और कहा कि आरएसएस का यह प्रयास किसी के विरोध में नहीं है, बल्कि भारत को विश्वगुरु बनाने की दिशा में एक कदम है। उन्होंने कहा कि “हमारा लक्ष्य भारत माता की सेवा करके विश्व का कल्याण करना है।”

‘हिंदू’ यानी विविधता का सम्मान

मोहन भागवत ने अपने संबोधन में हिंदू शब्द को केवल धर्म तक सीमित रखने की धारणा को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, ‘हिंदू का मतलब वह है जो अपने मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है, लेकिन अलग-अलग मान्यताओं वाले लोगों का भी सम्मान करता है।’ उन्होंने कहा कि यह हमारी परंपरा और संस्कृति है। भागवत ने कहा कि भारत की संस्कृति का सार समन्वय है, न कि संघर्ष। उन्होंने कहा, “हम यह नहीं मानते कि एक होने के लिए सबको एक जैसी सोच रखनी होगी। यह ‘विविधता में एकता’ का ही एक स्वरूप है।” भागवत ने कहा कि यह एक ऐसी संस्कृति है, जो हजारों वर्षों से यहां रह रहे सभी लोगों के डीएनए में है।

‘हिंदू राष्ट्र’ का मतलब कोई राजनीतिक सत्ता नहीं

आरएसएस प्रमुख ने ‘हिंदू राष्ट्र’ के मुद्दे पर भी खुलकर बात की। उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘हिंदू राष्ट्र’ का मतलब कोई राजनीतिक सत्ता या किसी को अलग करना नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हिंदू राष्ट्र के प्रखर होते समय जो भी शासन रहा है, उसमें पंथ, संप्रदाय, भाषा या क्षेत्र के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हुआ है। उसमें सबके लिए न्याय समान है।’ भागवत ने यह भी कहा कि संघ सीधे तौर पर सत्ता की राजनीति में नहीं है और वह किसी भी संगठन को नियंत्रित नहीं करता। उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य समाज-निर्माण, शिक्षा और सांस्कृतिक कार्यों के माध्यम से राष्ट्र को सशक्त बनाना है।

समाज की जिम्मेदारी और ‘स्वदेशी’ का संदेश

भागवत ने कहा कि सिर्फ नेताओं, पार्टियों और सरकारों को जिम्मेदार ठहराने से देश का उद्धार नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, “यह देश की जिम्मेदारी हम सबकी है।” उन्होंने हर व्यक्ति से अपने-अपने क्षेत्र में समाज और देश के लिए काम करने की अपील की। इसके साथ ही, उन्होंने ‘स्वदेशी’ पर भी जोर दिया और कहा कि हमें अपनी संस्कृति, भाषा और जीवनशैली को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के पास वह सब कुछ है, जो इसे ‘विश्वगुरु’ बना सकता है, लेकिन इसके लिए पूरे समाज को संगठित होकर आगे आना होगा।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.