समाज और जीवन में संतुलन ही ‘धर्म’, दुनिया को अपनानी होगी भारत की परंपरा: मोहन भागवत

आरएसएस प्रमुख ने कहा- अतिवाद से बचने के लिए मध्यम मार्ग जरूरी, अपने घर से करें समाज परिवर्तन की शुरुआत

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
  • आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि धर्म का अर्थ किसी पूजा पद्धति से नहीं, बल्कि समाज और जीवन में संतुलन स्थापित करने से है।
  • उन्होंने ‘पंच परिवर्तन’ के रूप में समाज में बदलाव के पांच सूत्र दिए, जिसकी शुरुआत हर व्यक्ति को अपने घर से करनी होगी।
  • भागवत ने आत्मनिर्भर भारत के लिए ‘स्वदेशी’ को प्राथमिकता देने और ‘अवैध आचरण’ से दूर रहने का आह्वान किया।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 28 अगस्त, 2025: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया आज कट्टरता, कलह और अशांति की ओर जा रही है और इसका एकमात्र समाधान धर्म का मार्ग अपनाना है। संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने ‘धर्म’ को परिभाषित करते हुए कहा कि इसका अर्थ किसी भी पूजा पद्धति या कर्मकांड से परे, जीवन में संतुलन बनाए रखना है। उन्होंने कहा कि भारत की परंपरा में इसे ‘मध्यम मार्ग’ कहा जाता है, जो हर तरह के अतिवाद से बचाता है।

पंच परिवर्तन से बदलेगा समाज

भागवत ने कहा कि देश को दुनिया के समक्ष एक उदाहरण बनाने के लिए समाज परिवर्तन की शुरुआत हर व्यक्ति को अपने घर से करनी होगी। इसके लिए उन्होंने पांच महत्वपूर्ण बदलावों का उल्लेख किया, जिसे उन्होंने ‘पंच परिवर्तन’ का नाम दिया:

कुटुंब प्रबोधन: परिवार में जागरूकता और संवाद स्थापित करना।

सामाजिक समरसता: समाज के सभी वर्गों के बीच आपसी सद्भाव बढ़ाना।

पर्यावरण संरक्षण: प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करना।

स्व-बोध (स्वदेशी): अपनी पहचान, भाषा, संस्कृति और स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देना।

नागरिक कर्तव्यों का पालन: एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों को निभाना।

‘हिंदुत्व’ का मतलब सत्य और प्रेम

सरसंघचालक ने ‘हिंदुत्व’ की मूल भावना पर भी बात की। उन्होंने कहा, ‘हिंदुत्व सत्य, प्रेम और अपनापन है।’ हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें सिखाया कि जीवन सिर्फ अपने लिए नहीं है। यही कारण है कि भारत को दुनिया में बड़े भाई की तरह मार्ग दिखाने की भूमिका निभानी है। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा नुकसान में भी संयम बरता है और जिन लोगों ने हमें नुकसान पहुँचाया, उन्हें भी संकट में मदद दी है। भागवत के अनुसार, यह भारतीय समाज का ही स्वभाव है जो अहंकार से परे है।

 

संघ का कार्य और भविष्य की दिशा

भागवत ने कहा कि संघ का कार्य ‘शुद्ध सात्त्विक प्रेम’ और ‘समाजनिष्ठा’ पर आधारित है। स्वयंसेवक बिना किसी व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा के कार्य करते हैं। यह सेवा ही उनके लिए जीवन का आनंद है। उन्होंने कहा कि आज समाज में संघ की साख पर विश्वास है, और यही विश्वास सेवा के माध्यम से अर्जित हुआ है। भविष्य की दिशा बताते हुए उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य हर स्थान, वर्ग और स्तर तक पहुंचना है ताकि समाज स्वयं चरित्र निर्माण और देशभक्ति के कार्य को आगे बढ़ा सके।

आत्मनिर्भर भारत और नागरिक कर्तव्य

आर्थिक प्रगति के मुद्दे पर उन्होंने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी को प्राथमिकता देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत का अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल स्वेच्छा से होना चाहिए, किसी दबाव में नहीं। उन्होंने नागरिकों से संविधान और नियमों का पालन करने की भी अपील की। भागवत ने कहा, “यदि कोई उकसावे की स्थिति हो तो न टायर जलाएं, न हाथ से पत्थर फेंकें। उपद्रवी तत्व ऐसे कार्यों का लाभ उठाकर हमें तोड़ने का प्रयास करते हैं।” उन्होंने कहा कि देश के लिए जीने की भावना होनी चाहिए और हर हाल में नियम-कानून का पालन करना चाहिए।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.