पूनम शर्मा
कर्नाटक का प्रसिद्ध श्री क्षेत्र धर्मस्थल मंजुनाथ स्वामी मंदिर बीते कुछ हफ्तों से एक सनसनीखेज़ विवाद का केंद्र बना हुआ है। कभी ‘छिपे कब्रिस्तान’ का आरोप, तो कभी लापता लड़की का मामला – लगातार सुर्खियों में बने इस प्रकरण ने न केवल लाखों श्रद्धालुओं को विचलित किया बल्कि राजनीति को भी गरमा दिया। लेकिन जैसे-जैसे जाँच आगे बढ़ी, सारा मामला एक सोची-समझी साज़िश की परतें खोलता चला गया।
आरोप और SIT की जाँच
जुलाई में एक व्यक्ति, जिसने खुद को मंदिर का पूर्व सफाईकर्मी बताया, अदालत में पेश होकर दावा किया कि 1995 से 2014 के बीच दर्जनों शवों को जबरन धर्मस्थल में दफनाया गया। इस बयान ने पूरे राज्य में हड़कंप मचा दिया। इसके बाद एक महिला ने भी दावा किया कि उसकी बेटी, जो मेडिकल छात्रा थी, 2003 में धर्मस्थल से लापता हुई। मीडिया और कार्यकर्ताओं के दबाव में राज्य सरकार ने 19 जुलाई को एक विशेष जाँच दल (SIT) गठित किया।
SIT ने करीब 17 स्थलों पर खुदाई और तलाशी की, परंतु कोई ठोस सबूत नहीं मिला। आखिरकार जाँच में यह सामने आया कि अदालत में पेश की गई खोपड़ी असल में किसी छिपी कब्र से नहीं, बल्कि एक शोध प्रयोगशाला से लाई गई संरक्षित नमूना थी। महिला जिसने ‘लापता बेटी’ की कहानी सुनाई थी, उसने भी अपना बयान पलटते हुए स्वीकार किया कि उसकी कभी कोई बेटी थी ही नहीं।
जाँच के दौरान मुख्य गवाह ‘मुखौटा पहने व्यक्ति’ की पहचान सी.एन. चिन्नैया के रूप में हुई, जिसे SIT ने झूठे बयान और फर्जी सबूत पेश करने के आरोप में गिरफ्तार किया। चिन्नैया ने स्वीकार किया कि वह अज्ञात दबावों और प्रलोभनों के चलते इस षड्यंत्र का हिस्सा बना।
राजनीति और ध्रुवीकरण
जैसे ही SIT की रिपोर्ट सामने आई, भारतीय जनता पार्टी ने इस पूरे प्रकरण को “मंदिर और हिंदू आस्था को कलंकित करने की सुनियोजित चाल” बताया। राज्य भाजपा अध्यक्ष बी.वाई. विजयेंद्र ने केंद्र से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा जाँच की माँग की और 1 सितंबर को ‘धर्मस्थल चलो’ रैली का आह्वान किया। भाजपा का तर्क है कि यदि धर्मस्थल जैसे ऐतिहासिक और विश्वसनीय संस्थान को बदनाम करने की साजिश रची जा सकती है तो अन्य मंदिर भी इसी प्रकार के षड्यंत्रों का शिकार हो सकते हैं।
धर्मस्थल का महत्व
धर्मस्थल मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है। मंगळुरु से लगभग 70 किलोमीटर दूर पश्चिमी घाटों के बीच स्थित यह मंदिर भगवान शिव के मंजुनाथ स्वरूप को समर्पित है। इसकी विशेषता यह है कि पिछले आठ सौ वर्षों से एक जैन परिवार – ‘हेगड़े’ वंश – इसका प्रशासन संभाल रहा है, जबकि पूजा-पाठ वैष्णव ब्राह्मण पुजारी करते हैं। यही अनूठा संगम धर्मस्थल को भारत की धार्मिक एकता का प्रतीक बनाता है।
मंदिर के अधिपति, धर्माधिकारी डॉ. वीरेंद्र हेगड़े, 1968 से इस पद पर हैं। केवल 20 वर्ष की उम्र में जिम्मेदारी संभालने वाले हेगड़े आज लाखों श्रद्धालुओं के लिए ‘मंजुनाथ स्वामी’ के प्रतिनिधि माने जाते हैं। वे न केवल धार्मिक परंपराओं के संरक्षक हैं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामोदय और संस्कृति के संवाहक भी हैं।
सेवा और सामाजिक कार्य
धर्मस्थल प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं को निःशुल्क भोजन (अन्नदान) कराता है। त्यौहारों में यह संख्या लाख तक पहुँच जाती है। इसके अलावा अस्पतालों, विद्यालयों, ग्रामीण विकास योजनाओं और नशामुक्ति अभियानों से यह संस्थान कर्नाटक के सामाजिक जीवन को नई दिशा देता है।
डॉ. हेगड़े का मानना है कि धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता बनी रहनी चाहिए। वे साफ कहते हैं कि मंदिरों की परंपराओं और व्यवस्थाओं में सरकारी हस्तक्षेप से भ्रम और अव्यवस्था ही फैलती है। यही कारण है कि धर्मस्थल बिना सरकारी मदद के भी आदर्श मंदिर-प्रशासन का उदाहरण बन गया है।
साजिश के मायने
ऐसे पवित्र और अनुकरणीय संस्थान को बदनाम करने का प्रयास केवल एक मंदिर पर हमला नहीं, बल्कि हिंदू आस्था पर प्रहार है। यह प्रश्न भी उठता है कि चिन्नैया और उसके सहयोगियों को इस षड्यंत्र के लिए किसने उकसाया और वित्तीय या राजनीतिक समर्थन कहाँ से मिला। SIT ने साफ किया है कि पूरा प्रकरण “staged conspiracy” था, पर असली षड्यंत्रकारियों की पहचान और मंशा अभी उजागर होनी बाकी है।
संक्षेप में
धर्मस्थल का इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जब धार्मिक संस्थान आत्मनिर्भर और समाजोन्मुख होते हैं, तो वे न केवल श्रद्धा बल्कि विश्वास और विकास दोनों का केंद्र बनते हैं। ऐसे संस्थान को षड्यंत्रों के जरिये कलंकित करना निंदनीय ही नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक एकता को चोट पहुँचाने के बराबर है।
आज आवश्यकता है कि सत्य सामने लाया जाए और षड्यंत्रकारियों को सख्त सजा मिले। साथ ही, यह चेतावनी भी समाज और शासन दोनों के लिए है कि किसी भी तरह का राजनीतिक या वैचारिक एजेंडा आस्था और सेवा की नींव पर आघात न करे।
धर्मस्थल केवल कर्नाटक की धरोहर नहीं, बल्कि भारत की समन्वयकारी परंपरा का जीवंत प्रतीक है। उसे बदनाम करने की हर कोशिश न केवल असफल होगी, बल्कि लोगों की आस्था को और अधिक प्रबल करेगी।