पूनम शर्मा
उपराष्ट्रपति का पद केवल एक औपचारिक संवैधानिक कुर्सी नहीं है। यह गरिमा, संतुलन और राजनीतिक शोरगुल से ऊपर उठकर निष्पक्षता का प्रतीक माना जाता है। इसी वजह से जब आई.एन.डी.आई. गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बलकृष्ण सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया, तो हलचल मचना स्वाभाविक था।
किसान परिवार से सर्वोच्च न्यायालय तक
1946 में रंगा रेड्डी जिले के एक किसान परिवार में जन्मे रेड्डी की यात्रा साधारण से असाधारण कही जा सकती है। उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय से शिक्षा ली और 1971 में वकालत शुरू की। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, फिर गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और 2007 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने। कागज़ पर यह सफर उपलब्धियों से भरा दिखता है, लेकिन असली सवाल उनके फैसलों और सार्वजनिक रुख को लेकर है।
सलवा जुडूम का फैसला – एकतरफ़ा दृष्टिकोण?
2011 में छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा माओवादी आतंक से बचाव के लिए शुरू किए गए सलवा जुडूम आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति रेड्डी प्रमुख थे, ने प्रतिबंध लगा दिया। अदालत ने इसे असंवैधानिक बताते हुए “द हॉरर, द हॉरर” जैसे शब्द इस्तेमाल किए, जो माओवादी शब्दावली से मिलते-जुलते थे। यह फैसला राज्य सरकार के हाथ से एक महत्वपूर्ण सुरक्षा औज़ार छीन लेने जैसा था, जबकि माओवादियों ने इसे अपनी वैचारिक जीत मान लिया।
भोपाल गैस त्रासदी – पीड़ितों के लिए बंद दरवाज़ा
2012 में भोपाल गैस कांड के पीड़ित उम्मीद कर रहे थे कि मामला दोबारा खुलेगा और दोषियों को कड़ी सज़ा मिलेगी। लेकिन जिस बेंच पर रेड्डी भी थे, उसने यह याचिका ठुकरा दी। हजारों पीड़ितों के लिए यह निर्णय न्याय से वंचित करने वाला था। आलोचकों ने इसे कांग्रेस नेतृत्व के उस पुराने आरोप से भी जोड़ा, जिसमें राजीव गांधी पर वॉरेन एंडरसन की सुरक्षित रिहाई का ठीकरा फोड़ा जाता रहा है।
सेवानिवृत्ति के बाद और भी स्पष्ट झुकाव
न्यायालय से रिटायर होने के बाद रेड्डी की वैचारिक दिशा और साफ दिखने लगी। 2024 में उन्होंने भारत से इज़रायल को रक्षा निर्यात रोकने की माँग करने वाले अभियान में हिस्सा लिया। यह उस समय हुआ जब भारत अपनी सुरक्षा साझेदारी को मजबूत कर रहा था और वैश्विक इस्लामी आतंकवाद से लड़ रहा था। 2022 में सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर जनता की भावनाओं को “मीडिया का शोर” कहकर नज़रअंदाज कर दिया।
उसी साल उन्होंने योगी आदित्यनाथ सरकार की बुलडोज़र कार्रवाई को संविधान का “मज़ाक” बताया, जबकि आम जनता ने इसे दंगाइयों और माफियाओं पर कड़ी कार्रवाई के रूप में देखा।
2020 में जब प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के खिलाफ बार-बार टिप्पणी करने पर अवमानना का दोषी ठहराया गया, तब रेड्डी ने उनका बचाव किया।
इन घटनाओं ने यह धारणा मजबूत की कि वे लगातार ऐसे वर्गों और वामपंथी कार्यकर्ताओं के साथ खड़े हुए जो अक्सर राज्य और उसकी संस्थाओं के खिलाफ खड़े दिखते हैं।
गोवा लोकायुक्त का अधूरा कार्यकाल
2013 में उन्हें गोवा का पहला लोकायुक्त नियुक्त किया गया। यह अवसर उनके लिए ईमानदारी और संस्थागत सुधार दिखाने का था। लेकिन कुछ ही महीनों में उन्होंने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देकर इस्तीफ़ा दे दिया। इस त्यागपत्र ने उनकी गंभीरता पर सवाल खड़े किए।
तेलंगाना की जातिगत जनगणना और कांग्रेस का साया
हाल ही में तेलंगाना में जातिगत जनगणना पर बनी विशेषज्ञ समिति के प्रमुख भी वे रहे। समिति में उनके साथ कांग्रेस से जुड़े रणनीतिकार और विवादित अकादमिक भी शामिल थे। नतीजा पहले से तय जैसा रहा – रिपोर्ट ने जातिगत जनगणना को “वैज्ञानिक” और “पूरे देश के लिए मॉडल” बताया। आलोचकों के मुताबिक यह कांग्रेस की राजनीतिक लाइन को अकादमिक चोला पहनाने जैसा था।
निष्पक्षता या केवल उसका दिखावा?
सुदर्शन रेड्डी की छवि एक विद्वान और शांत स्वभाव के न्यायाधीश की रही है। लेकिन यदि उनके फैसलों, बयानों और संगति को देखा जाए, तो उनकी निष्पक्षता संदिग्ध लगती है।
उन्होंने माओवादियों के खिलाफ राज्य की पहल को कमजोर किया। भोपाल त्रासदी पीड़ितों को निराश किया। कार्यकर्ता वकीलों और संस्थाओं को चुनौती देने वालों का साथ दिया। इज़रायल और योगी सरकार के मुद्दों पर भी विवादास्पद रुख लिया।
निष्कर्ष
उपराष्ट्रपति का पद केवल राज्यसभा में बराबरी की स्थिति तोड़ने वाली कुर्सी नहीं है। यह गणराज्य की गरिमा और संविधान की तटस्थ रक्षा का प्रतीक है। ऐसे में यह प्रश्न वाजिब है कि क्या बी. सुदर्शन रेड्डी वास्तव में उस निष्पक्षता और संतुलन के प्रतीक हैं, या फिर एक लंबे समय से चली आ रही वैचारिक झुकाव का चेहरा?
आई.एन.डी.आई. गठबंधन ने उन्हें उम्मीदवार बनाकर देश के सामने यह बहस खड़ी कर दी है कि सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बैठने वालों में व्यक्तिगत वैचारिकता का कितना स्थान होना चाहिए। जवाब जनता और इतिहास दोनों को देना होगा।