पीएम-सीएम बिल पर केजरीवाल का पलटवार, अमित शाह से पूछे दो तीखे सवाल
'क्या पीएम और मंत्रियों को भी इस्तीफा नहीं देना चाहिए...?' केजरीवाल ने पूछा अमित शाह से
- दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 130वें संविधान संशोधन विधेयक पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर तीखा हमला बोला है।
- केजरीवाल ने शाह से पूछा कि क्या गंभीर आपराधिक आरोप वाले व्यक्तियों को मंत्री बनाना उचित है और क्या ऐसे प्रधानमंत्रियों को भी इस्तीफा देना चाहिए।
- यह विवाद उस बिल पर है जिसमें 5 साल से अधिक की सजा वाले मामलों में जेल जाने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को 30 दिन में पद छोड़ने का प्रावधान है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 26 अगस्त, 2025: देश की राजनीति में इन दिनों ‘जेल से सरकार’ चलाने के मुद्दे पर तीखी बहस छिड़ी हुई है। यह बहस 130वें संविधान संशोधन विधेयक के इर्द-गिर्द घूम रही है, जिसे लेकर केंद्र सरकार और विपक्ष आमने-सामने हैं। इस कड़ी में आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान पर जोरदार पलटवार किया है। केजरीवाल ने सीधे-सीधे शाह से दो सवाल पूछे हैं, जिसने इस पूरे विवाद को एक नया मोड़ दे दिया है।
क्या है 130वां संविधान संशोधन विधेयक?
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह विधेयक क्या है। यह बिल प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या किसी भी मंत्री के लिए एक नया प्रावधान लाता है। इसके तहत, यदि कोई व्यक्ति 5 साल या उससे अधिक की सजा वाले किसी गंभीर आपराधिक मामले में लगातार 30 दिन या उससे अधिक समय तक जेल में रहता है, तो उसे अपने पद से इस्तीफा देना होगा। अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो 31वें दिन उसका पद स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। सरकार का कहना है कि यह बिल सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है।
शाह के बयान पर केजरीवाल का करारा जवाब
गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा था कि आजादी के 75 साल बाद ऐसा बिल लाने की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि “कुछ लोग” जेल से सरकार चलाना चाहते हैं। शाह का यह इशारा सीधे तौर पर अरविंद केजरीवाल की तरफ था, जिन्होंने अपनी गिरफ्तारी के बाद भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया था। शाह के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए केजरीवाल ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, ”जो व्यक्ति गंभीर गुनाहों के मुजरिमों को अपनी पार्टी में शामिल करके उन्हें मंत्री, उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री बना देता है, क्या ऐसे मंत्री और प्रधानमंत्री को भी अपना पद छोड़ना चाहिए? ऐसे व्यक्ति को कितने साल की जेल होनी चाहिए?”
केजरीवाल ने एक और सवाल उठाते हुए कहा, ”अगर किसी पर झूठा केस लगाकर उसे जेल में डाला जाए और बाद में वह दोषमुक्त हो जाए, तो उस पर झूठा केस लगाने वाले मंत्री को कितने साल की जेल होनी चाहिए?” केजरीवाल का यह बयान विपक्ष की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह इस बिल को विपक्षी सरकारों को गिराने के लिए एक राजनीतिक हथियार मान रहे हैं।
‘मेरी जेल वाली सरकार अच्छी थी’
केजरीवाल ने अपने बयान में अपनी गिरफ्तारी के दौरान की स्थितियों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जब उन्हें एक “राजनीतिक षड्यंत्र” के तहत झूठे केस में फंसाकर जेल भेजा गया, तब उन्होंने जेल से 160 दिन तक सरकार चलाई। उन्होंने दिल्ली की मौजूदा स्थिति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कम से कम उनकी “जेल वाली सरकार” के समय में बिजली नहीं जाती थी, पानी आता था, मोहल्ला क्लीनिकों में मुफ्त दवाइयां मिलती थीं और निजी स्कूलों को मनमानी करने की इजाजत नहीं थी। केजरीवाल के इस बयान ने भाजपा और आप के बीच आरोप-प्रत्यारोप का नया दौर शुरू कर दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विधेयक आगे भी राजनीतिक बहस का केंद्र बना रहेगा। विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस बिल के जरिए उन नेताओं को निशाना बनाना चाहती है, जो उसके लिए चुनौती बने हुए हैं। फिलहाल यह विधेयक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेज दिया गया है, जहां इस पर विस्तृत चर्चा होने के बाद ही कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा।