BRICS समीकरण और बदलती दुनिया

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पूनम शर्मा
21वीं सदी के शुरुआती दो बड़े झटकों—कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध—ने न केवल पुरानी विश्व व्यवस्था को हिला दिया, बल्कि एक गहरे सिस्टम रीसेट की शुरुआत भी कर दी। महामारी ने वैश्वीकरण की जड़ों को कमजोर किया और यूक्रेन युद्ध ने यूरोप में युद्ध की वापसी कर दी। इन दोनों घटनाओं ने यह साफ कर दिया कि अब दुनिया केवल बहुध्रुवीय (multipolar) नहीं हो रही, बल्कि एक नई विश्व मैट्रिक्स का निर्माण हो रहा है। इसे लेखक ने न्यू-म्यूको एरा (New-Muco Era) कहा है—एक ऐसा कालखंड जिसमें पुरानी संस्थाएँ क्षीण हो रही हैं और नई संरचनाएँ आकार ले रही हैं।

नई विश्व व्यवस्था के संकेत

आज संयुक्त राष्ट्र, डब्ल्यूटीओ जैसे संस्थान अपनी प्रासंगिकता खोते दिख रहे हैं। वहीं राष्ट्र अपने सार्वभौमिक हितों को वैश्वीकरण पर तरजीह दे रहे हैं। सेमीकंडक्टर, ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और क्वांटम टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में यह प्रवृत्ति और तेज है। डॉलर अभी भी केंद्रीय मुद्रा है, लेकिन चीन और रूस जैसे देश उसके विकल्प गढ़ रहे हैं। इसके समानांतर एक नया मोर्चा खुल चुका है—ऑप्टोपॉलिटिक्स यानी धारणा और प्रभाव की राजनीति, जहां टैंक और संधियाँ नहीं, बल्कि एल्गोरिद्म और स्क्रीन वैश्विक सत्ता तय कर रहे हैं।

भारत का अवसर: सहभागी से निर्माता तक

इस दौर में भारत के पास अनोखा अवसर है। न केवल इसलिए कि वह पश्चिम और पूरब दोनों में भरोसेमंद है, बल्कि इसलिए भी कि उसके पास सभ्यता का गहन अनुभव और लोकतांत्रिक वैधता है।

भारत ने जी-20 की अध्यक्षता, डिजिटल पब्लिक गुड्स (UPI, आधार), और गांधीवादी विरासत से यह साबित किया है कि वह बड़े पैमाने पर समाधान दे सकता है। लेकिन अब भारत को प्रतिक्रियात्मक कूटनीति से आगे बढ़कर सक्रिय सिस्टम डिज़ाइनर बनना होगा।

भारत को पाँच क्षेत्रों में तुरंत पहल करनी चाहिए—

डिजिटल करेंसी कॉरिडोर बनाकर डॉलर निर्भरता घटाना।

एआई, क्वांटम, डेटा गवर्नेंस में तकनीकी मानक तय करने में भागीदारी।

दक्षिण-दक्षिण सहयोग (जलवायु, स्वास्थ्य, शिक्षा) का नेतृत्व।

विविधीकृत और लचीली सप्लाई चेन का हिस्सा बनना।

नैरेटिव कैपिटल यानी ऐसा वैश्विक विमर्श गढ़ना जो भारत के मूल्य और दृष्टि को स्थापित करे।

इसके लिए भारत को अपनी थिंक टैंक क्षमता, बौद्धिक पूंजी और ज्ञान कूटनीति को और मज़बूत करना होगा।

चीन: निर्माता भी, प्रतिद्वंद्वी भी

चीन केवल सुधार नहीं कर रहा, बल्कि समानांतर व्यवस्था का निर्माण कर रहा है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, डिजिटल युआन और BRICS तथा SCO में नेतृत्व—ये सभी उसके चीनी-विशेषताओं वाली व्यवस्था की झलक हैं।

भारत और चीन के बीच रिश्ते जटिल हैं। एक ओर हिमालयी सीमा विवाद और इंडो-पैसिफिक में प्रतिस्पर्धा है, वहीं दूसरी ओर दोनों देशों की सहभागिता BRICS, SCO और G20 में है। चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है। इसलिए भारत को संयम और स्पष्टता के साथ नीति बनानी होगी—न तो चीन के प्रभुत्व को स्वीकार करना है, न ही अलगाववादी रुख अपनाना है। निर्माणात्मक सहभागिता ही रास्ता है।

रूस: रणनीतिक धुरी

यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने पश्चिम से मुंह मोड़कर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है। डि-डॉलराइजेशन (SPFS, MIR जैसी प्रणालियाँ) उसका बड़ा हथियार है।

भारत के लिए रूस आज भी बेहद महत्वपूर्ण है—

ऊर्जा सुरक्षा (तेल, गैस, परमाणु समझौते),

रक्षा और अंतरिक्ष सहयोग (S-400, पनडुब्बियाँ, विमान निर्माण),

और रणनीतिक लचीलापन (द्विध्रुवीयता से बाहर जगह)।

हालांकि, रूस की बढ़ती चीन पर निर्भरता भारत के लिए चुनौती है। भारत को रूस से संबंध मजबूत रखने होंगे लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि वे चीन की छाया में न दबें।

अमेरिका: साझेदार, लेकिन बराबरी पर

अमेरिका अब निर्माता नहीं, बल्कि मौजूदा व्यवस्था का रक्षक है। उसका मुख्य फोकस चीन को रोकने पर है। भारत के लिए अमेरिका बड़ा अवसर भी है और जोखिम भी।

क्वाड, रक्षा सहयोग, हाई-टेक्नोलॉजी साझेदारी भारत-अमेरिका संबंधों की मजबूती हैं। लेकिन व्यापार तनाव और अमेरिका की बदलती प्राथमिकताएँ भविष्य में मुश्किल खड़ी कर सकती हैं।

भारत को अमेरिका से संबंध साझेदारी के आधार पर रखने होंगे, न कि आश्रितता पर। भारत को कभी भी “जूनियर पार्टनर” की भूमिका में नहीं जाना चाहिए। उसे साझा हितों पर सहयोग और मतभेद पर सम्मानजनक असहमति की नीति अपनानी होगी।

भारत: संतुलनकर्ता से निर्माता तक

भारत की रणनीतिक पहचान अब केवल संतुलनकर्ता (balancer) की नहीं रहनी चाहिए, बल्कि निर्माता (builder) की होनी चाहिए।

भारत को चाहिए कि—BRICS, SCO और IRC (India-Russia-China) जैसी त्रिपक्षीय पहलों को नया नैरेटिव दे।

भविष्य की तकनीक, जलवायु न्याय और विकास के नए मॉडल पर विमर्श को दिशा दे।vशिक्षा और संस्थागत नवाचार में निवेश करे। और सबसे महत्वपूर्ण—नैरेटिव नेतृत्व अपने हाथ में ले।

निष्कर्ष

दुनिया इंतज़ार नहीं कर रही है। नई विश्व मैट्रिक्स का ढांचा पहले ही खड़ा हो रहा है। इस न्यू-म्यूको एरा में भारत के सामने स्पष्ट कार्य है—केवल खुद को ऊपर उठाना नहीं, बल्कि दुनिया को साथ लेकर उठाना।

यह विश्लेषण दिखाता है कि आने वाले वर्षों में भारत, रूस और चीन वैश्विक राजनीति की धुरी होंगे, लेकिन भारत को अपनी भूमिका निर्माणकर्ता और विचार-नेता के रूप में स्थापित करना ही भविष्य की कुंजी होगी।

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