सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल: खराब सड़कों पर टोल वसूली क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि यदि सड़कें वाहन चलाने योग्य नहीं हैं, तो उन पर टोल टैक्स वसूलना गलत है। इस फैसले से आम जनता को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है।
- सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अगर सड़कें गड्ढों और जाम से भरी हैं, तो यात्रियों से टोल टैक्स वसूलना अनुचित है।
- यह टिप्पणी नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) द्वारा केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई।
- कोर्ट का यह रुख टोल प्लाजा ऑपरेटरों और सड़क रखरखाव एजेंसियों को जवाबदेह ठहराएगा और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करेगा।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 21 अगस्त, 2025: टोल टैक्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया है, जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा है। यह फैसला केरल के त्रिशूर जिले में स्थित पलियेक्कारा टोल प्लाजा से जुड़े एक मामले में आया। दरअसल, इस टोल प्लाजा से गुजरने वाले NH-544 (एड़ापल्ली-मन्नुथी खंड) की हालत बहुत खराब थी। सड़क पर जगह-जगह गड्ढे थे और निर्माण कार्य के चलते घंटों का जाम लग रहा था। इस स्थिति से परेशान होकर, केरल हाईकोर्ट ने सड़क की खराब हालत को देखते हुए चार हफ्तों के लिए टोल वसूली पर रोक लगा दी थी।
केरल हाईकोर्ट के इस आदेश को NHAI ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने NHAI की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा, “अगर सड़क के एक छोर से दूसरे छोर तक जाने में 1 घंटे के बजाय 12 घंटे लगते हैं, तो कोई व्यक्ति ₹150 का टोल क्यों दे?” यह टिप्पणी दर्शाती है कि सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों की असुविधा को बहुत गंभीरता से लिया है।
नागरिकों के अधिकार और प्राधिकरण की जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसने टोल शुल्क चुकाने वाले नागरिकों के अधिकार को स्थापित किया है। कोर्ट ने कहा कि टोल शुल्क का भुगतान करने वाले नागरिकों को अच्छी और सुरक्षित सड़क सुविधा पाने का अधिकार है। यदि यह अधिकार सुरक्षित नहीं है, तो NHAI या उसके ठेकेदार टोल वसूलने के पात्र नहीं हैं। यह फैसला ‘पब्लिक ट्रस्ट’ के सिद्धांत पर आधारित है, जिसका मतलब है कि सरकार और उसकी एजेंसियां जनता के पैसों का उपयोग उनके हित में करें।
इस फैसले से यह भी साफ हो गया है कि केवल अनुबंधों या समझौतों का हवाला देकर खराब सड़कों पर टोल वसूलना गलत है। NHAI ने दलील दी थी कि टोल वसूली को रोकने से उन्हें प्रतिदिन लाखों का नुकसान होगा, लेकिन कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि जनता का हित सर्वोपरि है।
टोल से जुड़े नियम और आम आदमी के अधिकार
यह पहली बार नहीं है जब टोल प्लाजा को लेकर सवाल उठे हैं। NHAI के नियमों के अनुसार, अगर किसी टोल प्लाजा पर 100 मीटर से लंबी लाइन है या गाड़ी को 10 सेकंड से ज्यादा रुकना पड़ता है, तो चालक बिना टोल दिए जा सकता है। लेकिन जानकारी के अभाव में अधिकतर लोग इस अधिकार का उपयोग नहीं कर पाते। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला लोगों में जागरूकता बढ़ाएगा और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति सशक्त करेगा।
इस फैसले से उम्मीद है कि अब देश भर में टोल प्लाजा ऑपरेटर और सड़क रखरखाव एजेंसियां अपने काम को लेकर अधिक सतर्क होंगी। यदि वे खराब सड़कों और ट्रैफिक जाम को ठीक नहीं करते हैं, तो उन्हें टोल वसूली के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। यह एक बड़ा कदम है जो सड़क यात्रा को न केवल सुरक्षित बल्कि अधिक न्यायसंगत भी बना सकता है।