पूनम शर्मा
भारतीय राजनीति में राहुल गांधी एक ऐसा नाम है, जो चर्चा और विवाद दोनों का पर्याय बन चुका है। ताज्जुब की बात यह है कि देश के बड़े-बड़े राजनीतिक मुद्दों पर भी वे अक्सर ऐसी गलतियाँ कर बैठते हैं, जिनसे उनकी गंभीरता पर सवाल उठने लगते हैं। हाल ही में “मत चोरी” जैसे गंभीर विषय पर उन्होंने CSDS के संजय कुमार के विवादित आँकड़ों पर भरोसा जताकर बड़ा हमला बोला। लेकिन जब वह बात ही तथ्यात्मक रूप से गलत निकली, तो राहुल गांधी का चेहरा ही नहीं, बल्कि पूरी कांग्रेस पार्टी की साख दांव पर लग गई।
राहुल गांधी के ‘सलाहकारों’ की भूमिका
असल सवाल यह है कि राहुल गांधी को इस तरह बार-बार फँसाने वाला कौन है? क्या कांग्रेस पार्टी में कोई ऐसा नहीं है जो उन्हें समझा सके कि तथ्यों के बिना आरोप लगाना आत्मघाती कदम है? दरअसल, यह साफ झलकता है कि राहुल गांधी के चारों तरफ एक ऐसा सलाहकार समूह सक्रिय है, जो उन्हें लगातार गलत दिशा में धकेलता है। यह समूह राहुल गांधी को देश के सामने एक गंभीर नेता के बजाय एक हास्य पात्र के रूप में पेश करता जा रहा है।
कहा जाता है कि राजनीति में नेता वही सफल होता है, जिसके पास सही समय पर सही रणनीति बनाने वाले सलाहकार हों। लेकिन राहुल गांधी के मामले में लगता है कि उनकी पूरी टीम ही उन्हें “कॉमेडी शो” का चेहरा बना रही है। इसीलिए जनता में उनके लिए गुस्से से ज्यादा “तरस” पैदा होता है।
‘पप्पू’ किसने बनाया?
कांग्रेस और उसके समर्थक अक्सर यह तर्क देते हैं कि भाजपा ने राहुल गांधी की छवि बिगाड़कर उन्हें “पप्पू” बना दिया। लेकिन सच्चाई यह है कि राहुल गांधी की यह छवि भाजपा ने नहीं, बल्कि उनके अपने सलाहकारों और कांग्रेस की रणनीतिक भूलों ने गढ़ी है। बिना तैयारी के आरोप लगाना, आधारहीन डेटा पर बयान देना और बार-बार खुद को हास्यास्पद स्थिति में पहुँचा देना, यह सब उनके अपने घेरे की देन है।
बाहरी प्रचारक और सेकुलर लॉबी
यह भी तथ्य है कि कांग्रेस के भीतर और बाहर दोनों जगह कुछ ऐसे “प्रचारक” सक्रिय हैं, जिनकी राजनीति का मकसद सिर्फ मोदी-विरोध है। यह वर्ग राहुल गांधी को बार-बार आगे करके भाजपा पर हमला करने की रणनीति बनाता है। लेकिन जब राहुल गांधी हर बार बुरी तरह से मात खा जाते हैं, तो न केवल उनकी छवि कमजोर होती है, बल्कि कांग्रेस का आधार वोट भी तेजी से खिसकता है।
यही लॉबी राहुल गांधी को यह भरोसा दिलाती रहती है कि उनके बयान जनता को आकर्षित करेंगे। कभी “गाय पेड़ पर चढ़ गई” जैसे बयान, तो कभी “पुतिन अंग्रेजी नहीं जानते, तो मोदी उनसे कैसे बात कर सकते हैं?” जैसी हास्यास्पद बातें – इन सबके पीछे यही सलाहकार मंडली है। सवाल है कि राहुल गांधी बार-बार इस चक्रव्यूह में क्यों फँस जाते हैं?
भाजपा के लिए वरदान बने राहुल गांधी
अगर सच्चाई की बात करें, तो भाजपा के लिए राहुल गांधी किसी वरदान से कम नहीं हैं। नरेंद्र मोदी को राहुल गांधी से डरने की कोई वजह नहीं है। बल्कि विपक्ष में ऐसे नेता का बने रहना भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से लाभदायक है। जैसे मिश्रित सब्ज़ी में नमक न हो तो उसका स्वाद बिगड़ जाता है, वैसे ही भाजपा-विरोध की राजनीति में राहुल गांधी की उपस्थिति न हो तो उसमें भी रस नहीं रहेगा।
राहुल गांधी के बयान भाजपा को पलटवार करने का आसान मौका देते हैं। यही वजह है कि मोदी सरकार के लिए राहुल गांधी को जेल भेजने या चुप कराने की कोई ज़रूरत नहीं है। राहुल गांधी की मौजूदगी ही भाजपा के लिए राजनीतिक “इंधन” है।
निष्कर्ष
राहुल गांधी बार-बार अपने ही जाल में फँसते हैं और जनता के सामने हास्य पात्र की तरह प्रस्तुत हो जाते हैं। असल जिम्मेदारी उनके सलाहकार समूह की है, जो तथ्यों और रणनीति की बजाय उन्हें सतही आरोप लगाने के लिए उकसाता रहता है। कांग्रेस पार्टी में अगर कोई ईमानदार और दूरदर्शी नेता होता, तो वह राहुल गांधी को इस तरह की आत्मघाती राजनीति से रोक सकता था। लेकिन फिलहाल, कांग्रेस इस विडंबना का शिकार है कि उसका सबसे बड़ा नेता ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गया है।
राहुल गांधी का राजनीतिक सफर अब एक गंभीर राष्ट्रीय विकल्प कम और एक “कॉमेडी शो” ज्यादा प्रतीत होने लगा है। और भाजपा के लिए, यह शो जितना लंबा चले, उतना ही फायदेमंद है।