पश्चिम बंगाल में 1.04 करोड़ अतिरिक्त मतदाता: हिला देने वाला खुलासा

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पूनम शर्मा
नए जनांकिकीय पुनर्निर्माण (Demographic Reconstruction) शोध ने पश्चिम बंगाल की 2024 की मतदाता सूची पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर तैयार इस अध्ययन के अनुसार, राज्य की मतदाता सूची में 1.04 करोड़ ऐसे नाम शामिल हैं जिनका कोई जनांकिकीय आधार नहीं है — न तो जन्म, न मृत्यु, न ही प्रवासन के आंकड़े इन्हें समझा पाते हैं। यह मतदाता सूची का 13.69% फर्जी या अतिरिक्त हिस्सा है, जो चुनावी प्रक्रिया की वैधता पर सीधा प्रहार है।

चुनावी पारदर्शिता पर खतरा

लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव की निष्पक्षता की पहली शर्त है कि मतदाता सूची सटीक हो। यदि मतदाता सूची में ऐसे नाम हों जो वास्तविक, पात्र निवासियों से मेल नहीं खाते, तो यह न केवल चुनावी परिणामों को प्रभावित करता है बल्कि जनता के विश्वास को भी कमजोर करता है।

इस अध्ययन का शीर्षक है — Electoral Roll Inflation in West Bengal: A Demographic Reconstruction of Legitimate Voter Counts (2024)। इसमें केवल आधिकारिक आंकड़ों — पुराने मतदाता सूची, जनगणना आधारित आयु प्रोफ़ाइल, जन्म-मृत्यु दर, और प्रवासन के रिकॉर्ड — का उपयोग कर राज्य के वैध मतदाताओं का अनुमान लगाया गया।

पुनर्निर्माण की प्रक्रिया

2004 की मतदाता सूची से शुरुआत
शोधकर्ताओं ने 2004 की मतदाता सूची (4.74 करोड़ नाम) को आधार माना। यह सूची 2002 में व्यापक संशोधन के बाद तैयार हुई थी, इसलिए इसे विश्वसनीय माना गया।

चरण 1: 2004 की सूची का वृद्धिकरण

2004 के मतदाताओं को आयु समूहों में बांटकर 20 साल आगे बढ़ाया गया और Sample Registration System की जीवन प्रत्याशा तालिकाओं से मृत्यु दर लागू की गई। परिणामस्वरूप, 2024 तक 2004 के लगभग 3.74 करोड़ मतदाता जीवित और पात्र पाए गए।

चरण 2: 2004 के बाद नए मतदाताओं का अनुमान

1986–2006 के बीच जन्मे नागरिक 2004–2024 के बीच 18 वर्ष के हुए और मतदाता सूची में शामिल होने योग्य बने। जन्म दर और जनसंख्या के आधिकारिक आंकड़ों पर आधारित अनुमान के बाद, इन पर भी जीवन प्रत्याशा और 92.8% पंजीकरण दर (ऐतिहासिक दर से अधिक) लागू की गई। इससे लगभग 3.01 करोड़ नए वैध मतदाताओं का अनुमान निकला।

चरण 3: स्थायी प्रवासन का असर

पश्चिम बंगाल पिछले कई दशकों से नेट आउटमाइग्रेशन (Net Outmigration) वाला राज्य रहा है — यानी यहां से बाहर जाने वालों की संख्या, आने वालों से ज्यादा है। 2001 और 2011 की जनगणना प्रवासन के आधार पर, 2004–2024 के बीच लगभग 18 लाख मतदाता स्थायी रूप से राज्य से बाहर चले गए।

अंतिम गणना

तीनों चरणों को मिलाने पर 2024 में पश्चिम बंगाल के वैध मतदाताओं की संख्या लगभग 6.56 करोड़ आती है। इसके विपरीत, चुनाव आयोग की आधिकारिक सूची में 7.61 करोड़ नाम हैं — यानी 1.04 करोड़ अतिरिक्त।

महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी मान्यताओं को इस तरह रखा गया कि वैध मतदाताओं की संख्या अधिक आंकी जाए, ताकि अतिरिक्त मतदाताओं की संख्या कम से कम अनुमानित हो। इसके बावजूद यह अंतर 13.69% तक पहुंचा, जो न्यूनतम अनुमान है। वास्तविकता इससे भी गंभीर हो सकती है।

राजनीतिक प्रभाव और खतरे

मतदाता सूची में प्रति विधानसभा क्षेत्र औसतन 35,000 से अधिक संदिग्ध नाम दर्ज हैं। कई चुनावों में, जहां जीत का अंतर कुछ हजार वोटों का होता है, यह अतिरिक्त मतदाता नतीजों को निर्णायक रूप से बदल सकते हैं।

पश्चिम बंगाल में पिछले दो दशकों से मतदाता सूची का घर-घर जाकर व्यापक सत्यापन नहीं हुआ है। नतीजतन, यह सूची वास्तविक जनसंख्या संरचना से काफी अलग हो चुकी है।

समाधान: आधा-अधूरा नहीं, पूर्ण सुधार

यह समस्या केवल तकनीकी गड़बड़ी नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की आधारशिला में दरार है। समाधान के लिए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision) अनिवार्य है, जिसमें मृत्यु पंजीकरण, प्रवासन रिकॉर्ड और पहचान सत्यापन को नियमित रूप से जोड़ा जाए। बिना इस सुधार के, हर चुनाव ऐसी सूची पर होगा जो जनांकिकीय जांच में असफल है।

निष्कर्ष

पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में यह भारी फर्जीवाड़ा केवल प्रशासनिक लापरवाही का मामला नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक वैधता के लिए गंभीर खतरा है। जब तक राज्य और चुनाव आयोग पारदर्शिता व शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाते, तब तक चुनाव परिणामों पर अविश्वास और राजनीतिक अस्थिरता का खतरा बना रहेगा।
यह शोध स्पष्ट करता है कि मतदाता सूची को जनांकिकीय वास्तविकता के अनुरूप बनाए रखना केवल चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं, बल्कि लोकतंत्र के अस्तित्व की बुनियादी आवश्यकता है।

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