- याचिकाकर्ताओं का आरोप—प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएं, जीवित मतदाताओं को मृत घोषित किया गया।
- चुनाव आयोग का बचाव—यह केवल ड्राफ्ट रोल है, मामूली गलतियां सुधारी जा सकती हैं।
- कोर्ट का निर्देश—अगली सुनवाई में पूरे आंकड़ों और दस्तावेजों के साथ पेश हों।
- राजनीतिक विवाद—विपक्ष ने 65 लाख नाम हटाने को “जन बहिष्कार” कहा, बीजेपी ने आरोप नकारे।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 12 अगस्त: सुप्रीम कोर्ट में आज बिहार में चल रहे मतदाता सूची के स्पेशल इंटीग्रेटेड रिवीजन (SIR) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। यह मामला राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील हो गया है और संसद से लेकर सड़कों तक विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। सुनवाई न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची की द्वि-न्यायाधीश पीठ के सामने हुई, जहां याचिकाकर्ताओं ने प्रक्रिया में “बड़े पैमाने पर अनियमितताओं” का आरोप लगाया।
अनियमितता
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इस प्रक्रिया में गंभीर खामियां हैं। उन्होंने एक उदाहरण दिया जिसमें एक ही विधानसभा क्षेत्र में दर्जन भर जीवित मतदाताओं को मृत घोषित कर दिया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल एस. ने अदालत को बताया कि कुल 65 लाख नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं, जिसे उन्होंने “जन बहिष्कार” करार दिया।
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने प्रक्रिया का बचाव करते हुए कहा कि यह केवल “ड्राफ्ट रोल” है, जिसमें इतने बड़े पैमाने पर कार्य में छोटी-मोटी गलतियां होना स्वाभाविक है। उन्होंने यह भी कहा कि मृत घोषित किए गए मतदाताओं को लेकर लगाए गए आरोप सही नहीं हैं।
पीठ ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि अगली सुनवाई में वह पूरी तैयारी के साथ आए और सभी आंकड़े पेश करे—जिसमें पुनरीक्षण शुरू होने से पहले कुल मतदाताओं की संख्या और मृत पाए गए मतदाताओं की संख्या शामिल हो। कोर्ट ने पहले ही प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, लेकिन चेतावनी दी थी कि यदि “जन बहिष्कार” के प्रमाण मिले तो वह हस्तक्षेप करेगा।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 65 लाख नाम हटाने का प्रस्ताव है—जिनमें 22 लाख मृत, 36 लाख स्थायी रूप से स्थानांतरित और 7 लाख डुप्लीकेट पाए गए मतदाता शामिल हैं। विपक्ष, खासकर राहुल गांधी, ने चुनाव आयोग पर बीजेपी के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया है, जबकि बीजेपी ने इन आरोपों को “मनगढ़ंत” और “चुनावी हार के डर” से प्रेरित बताया। सोमवार को विपक्षी सांसदों ने दिल्ली में चुनाव आयोग कार्यालय की ओर मार्च करने का प्रयास भी किया।