सुप्रीम कोर्ट ने ED को लगाई फटकार, कम दोषसिद्धि दर पर उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की कार्यशैली पर उठाए सवाल, कहा- जांच एजेंसी सिर्फ मामले दर्ज कर रही है, लेकिन नतीजा नहीं निकल रहा
- सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कम दोषसिद्धि दर (low conviction rate) पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
- मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा कि ईडी का दोषसिद्धि दर चालू वर्ष के पहले छह महीनों में केवल 0.1% रहा, जो बेहद निराशाजनक है।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि संदिग्धों को लंबे समय तक हिरासत में रखना “बिना मुकदमे के सजा देने” के बराबर है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 7 अगस्त, 2025 – सुप्रीम कोर्ट ने देश की सबसे शक्तिशाली जांच एजेंसियों में से एक, प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्यशैली पर तीखी टिप्पणी की है। एक मामले की सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने ईडी की कम दोषसिद्धि दर और संदिग्धों को लंबे समय तक हिरासत में रखने को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त कीं। कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब ईडी राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में अपनी जांच को लेकर लगातार सुर्खियों में रही है। सुप्रीम कोर्ट की इस फटकार को जांच एजेंसियों की जवाबदेही तय करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
क्या हैं सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां?
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के दो मुख्य पहलुओं पर सवाल उठाए हैं:
कम दोषसिद्धि दर: कोर्ट ने इस साल के पहले छह महीनों के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 5,892 मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में ईडी की दोषसिद्धि दर केवल 0.1% रही है। मुख्य न्यायाधीश ने इस दर को “बेहद कम” और चिंताजनक बताया, जो यह दर्शाता है कि एजेंसी बड़ी संख्या में मामले तो दर्ज कर रही है, लेकिन उन्हें तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने में विफल रही है।
लंबी हिरासत: कोर्ट ने कहा कि संदिग्धों को लंबे समय तक जेल में रखना “मुकदमे के बिना ही उन्हें सजा देने” जैसा है। यह टिप्पणी नागरिक अधिकारों और त्वरित न्याय के सिद्धांत पर आधारित है। कोर्ट ने साफ किया कि सिर्फ गिरफ्तारी करना या मामला दर्ज करना ही काफी नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि आरोपी को जल्द से जल्द न्याय मिले।
ईडी ने क्या दिया जवाब?
कोर्ट की टिप्पणियों के जवाब में, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ईडी का बचाव किया। उन्होंने स्वीकार किया कि दोषसिद्धि दर कम है, लेकिन इसका कारण “आपराधिक न्याय प्रणाली में मौजूद मुद्दे” हैं, न कि एजेंसी की अक्षमता। मेहता ने यह भी दावा किया कि ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में ₹23,000 करोड़ की वसूली करने में सफलता हासिल की है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया और अपने रुख पर कायम रहा। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि ‘यूट्यूब’ पर ईडी के खिलाफ एक ‘कथा’ गढ़ी जा रही है। कोर्ट ने कहा कि उसके फैसले ऐसे बाहरी कारकों पर आधारित नहीं होते हैं।
जांच एजेंसी की कार्यशैली पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणियां ईडी की कार्यशैली पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती हैं। पिछले कुछ वर्षों में, ईडी ने विपक्ष के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर मामले दर्ज किए हैं, जिससे एजेंसी पर राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के आरोप भी लगे हैं। कोर्ट की ये टिप्पणियां इन आरोपों को और बल देती हैं कि एजेंसी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रही है। अब, इन टिप्पणियों के बाद, ईडी को अपनी जांच प्रक्रियाओं और दोषसिद्धि दर में सुधार करने के लिए गंभीर कदम उठाने पड़ सकते हैं, ताकि एजेंसी की विश्वसनीयता बहाल हो सके।