पूनम शर्मा
हाल के दिनों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मंच पर जो घटनाएँ घट रही हैं, वे सिर्फ सतही बयानबाजी नहीं हैं। इनके पीछे एक गहरी कूटनीतिक चाल, ऊर्जा संसाधनों को लेकर वैश्विक खींचतान, और भारत की मजबूती से उभरती रणनीतिक स्थिति है। ऊपर दिए गए संवाद से स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि भारत अब अपनी विदेश नीति में ‘गुटनिरपेक्ष लेकिन हितपरक’ दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहा है।
टॉप नेताओं का अचानक ‘फाइव आउट’ — किसके इशारे पर?
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे रहस्यमयी बिंदु यह है कि दो बड़े वरिष्ठ अधिकारी, जिनकी विश्व कूटनीति में बड़ी भूमिका रही है, एक साथ ‘टॉप 5’ सूची से बाहर हो रहे हैं। इसे महज रिटायरमेंट नहीं माना जा सकता। जब इस तरह के दिग्गज नेता एक साथ साइडलाइन होते हैं, तो यह किसी बड़े रणनीतिक बदलाव का संकेत होता है। क्या भारत अमेरिकी दबाव के तहत कुछ चेहरों को हटा रहा है या रूस के साथ भविष्य के बड़े गठजोड़ की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है?
भारत-रूस एनर्जी कॉर्पोरेशन: अमेरिका की नींद उड़ी
रूस के साथ भारत का ऊर्जा गठबंधन (energy cooperation) अब महज तेल खरीद तक सीमित नहीं रहा। भारत न केवल रूस से सस्ता तेल खरीद रहा है बल्कि उसमें निवेश भी कर रहा है। एक साल में भारत ने लगभग 204 मिलियन टन कच्चा तेल आयात किया, जिससे ग्लोबल प्राइस स्टेबिलिटी भी प्रभावित हुई। यदि भारत ऐसा न करता, तो कच्चे तेल के दाम 200 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच सकते थे।
यह बात अमेरिका को खटक रही है क्योंकि इससे उसका डॉलरों में आधारित वैश्विक तेल व्यापार संतुलन हिल रहा है। यही वजह है कि UPI आधारित भुगतान प्रणाली को रूस से लिंक करने की पहल अमेरिका के लिए और भी चिंता का विषय है। भारत और रूस मिलकर डॉलर को बाईपास कर रुपये-रूबल आधारित ट्रेड पर काम कर रहे हैं।
डिफेंस डील्स: S-400 से S-7 तक विस्तार
भारत और रूस के बीच हथियार खरीद की भी एक नई शृंखला शुरू होने वाली है। इसमें विशेष रूप से S-7 एयर डिफेंस सिस्टम, कम्युनिकेटर व्हीकल्स, मिसाइल टेक्नोलॉजी, और कॉम्बैट फाइटर जेट्स का जिक्र है। भारत के रिटायर हो रहे MiG-29 फ्लीट को रिप्लेस करने के लिए रूस भारत को अपने Su-57 फाइटर्स बेहद कम दाम पर और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के साथ देने को तैयार है।
भारत को इससे दो फायदे मिलते हैं — एक तो अमेरिका की “CAATSA” जैसी धमकियों की चिंता कम हो जाती है और दूसरा, टेक्नोलॉजी भारत के पास आती है।
चीन पर दोहरी नीति: अमेरिका सख्त, भारत संतुलित
यहां एक और दिलचस्प स्थिति बनती है। अमेरिका चीन को खुलेआम चुनौती देता है और भारत को भी साथ खींचना चाहता है। लेकिन भारत ताइवान मुद्दे पर सतर्क है। वह अमेरिका की ‘One China Policy’ से हटकर कोई स्पष्ट रुख नहीं दिखा रहा है। इसके उलट, भारत रूस-चीन-भारत (RIC) तिकड़ी के जरिए एक वैकल्पिक अंतरराष्ट्रीय मंच तैयार करने की कोशिश में दिखता है।
ट्रंप का ‘न्यूक्लियर प्रॉपर्टी’ बयान: असली इरादा क्या है?
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के विरुद्ध अप्रत्यक्ष धमकी देते हुए ‘nuclear property’ और ‘strategic elimination’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया। यह दिखाता है कि अमेरिका भारत को रूस से अधिक नजदीक देख कर परेशान है।
ट्रंप का यह बयान भारत को पश्चिमी सैन्य गठजोड़ (जैसे NATO) में अधिक संलिप्त करने का दबाव भी हो सकता है। लेकिन भारत साफ कर चुका है कि उसकी प्राथमिकता “National Interest” है, न कि गुटों के प्रति वफादारी।
चीन को खुला बाजार, भारत पर पाबंदियां : अमेरिका की दोहरी नीति
जब ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान को IMF और World Bank से आर्थिक सहायता दिलाने में मदद की, वहीं भारत से अमेरिकी प्रतिबंधों और दबाव की नीति अपनाई गई। दूसरी ओर, चीन को व्यापार के लिए खुला बाजार देना — एक स्पष्ट दोहरा मापदंड है।
यहां से भारत की नीति बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि अब अमेरिका को भी भारत के हितों के आधार पर ही व्यवहार करना होगा।
RIC गठबंधन: नई विश्व व्यवस्था का बीज
भारत, रूस और चीन का एक “RIC Forum” आकार लेता दिख रहा है, जो अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देने की क्षमता रखता है। खासकर ऊर्जा, रक्षा और फाइनेंस सेक्टर में यदि ये तीन देश मिलकर लोकल करेंसी ट्रेंडिंग और टेक्नोलॉजी साझा करें, तो पश्चिमी वर्चस्व का संतुलन पूरी तरह से हिल सकता है।
UPI और MIR के जुड़ाव की तैयारी
भारतीय डिजिटल पेमेंट सिस्टम UPI को रूस की MIR प्रणाली से जोड़ने की कोशिश भारत की “फिनटेक स्वतंत्रता” की दिशा में सबसे बड़ा कदम हो सकता है। अगर सफल रहा, तो डॉलर का असर व्यापार पर धीरे-धीरे कम होगा।
भारत का विवेकपूर्ण लेकिन आक्रामक कूटनीतिक दौर
अब यह स्पष्ट है कि भारत ‘गुटनिरपेक्षता 2.0’ के युग में प्रवेश कर चुका है। अमेरिका, रूस, और चीन तीनों के साथ अपने संबंध संतुलित रखना और समय-समय पर इनमें से किसी के साथ रणनीतिक संधि करना — यही अब भारत की विदेश नीति का मूल आधार होगा।
भारत अब सिर्फ ‘प्रतिक्षारत लोकतंत्र’ नहीं, बल्कि एक “निर्णयकारी भू-राजनीतिक खिलाड़ी” बन चुका है। भारत की नीति अब स्पष्ट है — जो देश भारत के दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों का समर्थन करेगा, भारत उसी से मित्रता बढ़ाएगा — चाहे वो पश्चिम हो या पूरब।