‘डॉ. हेडगेवार’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक महागाथा: 100 साल के सफर का आँखों देखा हाल

एक फिल्म जो मनोरंजन से बढ़कर है, जो आपको उस इतिहास से रूबरू कराती है जिसे दशकों तक दबाकर रखा गया था।

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  • ‘डॉ. हेडगेवार’ फिल्म, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्थापक के जीवन पर आधारित, सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है।
  • यह फिल्म आरएसएस के बारे में लंबे समय से फैलाई जा रही भ्रांतियों को दूर कर एक नई राजनीतिक बहस को जन्म दे रही है।
  • फिल्म की रिलीज से जुड़ी चुनौतियाँ दिखाती हैं कि राष्ट्रवादी सिनेमा को आज भी किस तरह के विरोध का सामना करना पड़ता है।

समग्र समाचार सेवा
चंडीगढ़, 6 अगस्त, 2025: सभी फिल्में मनोरंजन के लिए नहीं बनतीं; कुछ फिल्में आपकी चेतना को झकझोरने और आपकी आंखों पर पड़ी धूल को हटाने के लिए होती हैं। ‘द कश्मीर फाइल्स’ से लेकर ‘द केरल स्टोरी’ तक, इन फिल्मों ने एक ऐसी धारा को जन्म दिया है, जो सिनेमा को सिर्फ टिकट खिड़की के मुनाफे से परे देखती है। इसी कड़ी में इस शुक्रवार को एक और महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ गया है – ‘डॉ. हेडगेवार’। यह फिल्म सिर्फ एक बायोपिक नहीं, बल्कि उस महान आंदोलन की शताब्दी का उत्सव है, जिसे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 की विजयादशमी पर नागपुर में शुरू किया था।

विरासत की गाथा: संघ की स्थापना और प्रभाव

आज जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है, यह फिल्म उन सैकड़ों-हजारों कार्यकर्ताओं के त्याग और तपस्या की कहानी कहती है, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता और सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। पिछले 100 वर्षों में संघ ने जो कार्य किया है, उसका स्तर और प्रभाव किसी भी अन्य संगठन के काम से कहीं अधिक है। यह फिल्म उस सत्य को सामने लाती है, जिसे कांग्रेस और वामपंथियों के प्रचार ने दशकों तक दबाकर रखा। यह दिखाती है कि किस तरह विचारों में मतभेद होने के बावजूद महात्मा गांधी को संघ से द्वेष नहीं था, और डॉ. हेडगेवार उनके प्रति आदर रखते थे। फिल्म स्पष्ट करती है कि संघ किसी धर्म विशेष से नफरत नहीं करता, बल्कि भारत-विरोधी तत्वों का सामना करने के लिए हिंदुओं को सक्षम बनाता है।

जब ‘संघी’ एक गाली नहीं, गर्व था

लेख में कहा गया है कि अगर डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना न की होती, तो पिछले 100 वर्षों में कांग्रेस और वामपंथियों के हाथों देश बिक चुका होता, और हम आज पाकिस्तान से भी बदतर स्थिति में होते। संघ के संस्कारों से ही हमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी जैसे असंख्य नेता मिले हैं, जिन्होंने देश के लिए काम किया। लंबे समय तक ‘संघी’ शब्द को गाली की तरह इस्तेमाल किया जाता था। एक ऐसा माहौल बना दिया गया था कि लोग संघ की गतिविधियों से जुड़ना तो दूर, उसका नाम लेने से भी डरते थे। लेकिन अब समय बदल गया है। आज लोग गर्व से ‘संघी’ कहलाना पसंद करते हैं।

राष्ट्रवादी सिनेमा की राह में चुनौतियाँ

‘डॉ. हेडगेवार’ जैसी फिल्म बनाना और उसे रिलीज करना आज भी आसान नहीं है। लेखक ने मुंबई के एक थिएटर का अनुभव साझा किया, जहां फिल्म देखने के लिए दर्शकों की सुरक्षा के लिए एक बड़ी पुलिस वैन और दर्जनों पुलिसकर्मी तैनात थे। यह घटना इस बात की भयावह सच्चाई बताती है कि हिंदुत्व का गौरवगान करने वाली फिल्मों को आज भी असामाजिक तत्वों से खतरा है। यह स्थिति तब है जब केंद्र और राज्य दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं। यह हमें उस दौर की याद दिलाता है, जब कांग्रेस के शासनकाल में ऐसी फिल्में बनाने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था।

लेख में यह भी बताया गया है कि वामपंथी विचारधारा ने आजादी के बाद से ही शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता और सिनेमा पर अपना दबदबा बना लिया था। इस ‘इकोसिस्टम’ के कारण हिंदूवादी विचारों वाले प्रतिभाशाली कलाकार भी डर के साए में जीते थे। उन्हें लगता था कि अगर वे किसी राष्ट्रवादी प्रोजेक्ट से जुड़ेंगे, तो उनके करियर को नुकसान हो सकता है, जैसा कि अभिजीत, सोनू निगम और जगजीत सिंह जैसे कलाकारों के साथ हुआ था।

एक नई शुरुआत की उम्मीद

आज का दौर बदल रहा है। ‘साबरमती रिपोर्ट’ और ‘डॉ. हेडगेवार’ जैसी फिल्में बन रही हैं और दर्शकों तक पहुंच रही हैं, यह एक सकारात्मक संकेत है। यह एक नई शुरुआत है। हमें इन फिल्मों को आलोचनात्मक दृष्टि से नहीं, बल्कि एक बच्चे के सीखने के नजरिए से देखना चाहिए। कोई बच्चा जब चलना सीखता है, तो उससे उसैन बोल्ट की तरह दौड़ने की उम्मीद नहीं की जा सकती। लेखक का मानना है कि ‘डॉ. हेडगेवार’ फिल्म दर्शकों को संघ और इसके अन्य सरसंघचालकों के बारे में जानने के लिए प्रेरित करेगी।

फिल्म के निर्देशक राधास्वामी अवुला हैं, जबकि मनोज जोशी सूत्रधार की भूमिका में हैं और जयानंद शेट्टी ने मुख्य किरदार निभाया है। अनूप जलोटा, शंकर महादेवन और सुरेश वाडकर जैसे दिग्गज गायकों ने फिल्म के गीतों को अपनी आवाज दी है। यह फिल्म एक ऐसी यात्रा की शुरुआत है, जो आपको संघ के जीवन और कार्यों के बारे में जानने का एक महामार्ग दिखाती है।

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