समग्र समाचार सेवा
उत्तरकाशी 6 अगस्त –उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में 5 अगस्त 2025 की दोपहर एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा घटी, जब खीरगंगा नदी में अचानक आई बाढ़ ने धराली गांव समेत पूरे इलाके को अपनी चपेट में ले लिया। माना जा रहा है कि यह बाढ़ बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) या ग्लेशियर झील फटने (Glacial Lake Outburst Flood) के कारण आई, जिसने मिनटों में ही सैकड़ों सालों की बसावट, धार्मिक धरोहरों और मानव जीवन को मिटा डाला।
धराली गाँव, जो हर्षिल घाटी में स्थित एक प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थल रहा है, कभी 240 छोटे-बड़े मंदिरों का घर माना जाता था। यह मंदिर समूह ऐतिहासिक रूप से खीरगंगा घाटी की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का हिस्सा था। किंवदंती है कि ये मंदिर हजारों साल पुराने थे और इनमें से कई मंदिर आज भी जीवित परंपराओं के केंद्र में थे। लेकिन खीरगंगा की बाढ़ में इनमें से अधिकांश मंदिर बह गए या मलबे में दब गए। अब उनके केवल अवशेष ही बचे हैं।
240 मंदिरों के अस्तित्व पर संकट
बाढ़ की गति इतनी तेज थी कि लोगों को संभलने तक का मौका नहीं मिला। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पहले पानी में बर्फ के बड़े टुकड़े और पत्थर गिरते दिखाई दिए, फिर एक तेज गर्जना के साथ नदी का पानी सड़कें, घर, दुकानें और होटलों को बहा ले गया। दर्जनों होटलों, होमस्टे, बाजार और सरकारी इमारतें बर्बाद हो चुकी हैं। कई पुल भी ध्वस्त हो गए हैं, जिससे इलाके से संपर्क पूरी तरह टूट गया।
प्रशासन के अनुसार, अब तक 4 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है जबकि 100 से अधिक लोग लापता हैं। इनमें स्थानीय नागरिकों के अलावा पर्यटक और सेना के 11 जवान भी शामिल हैं जो उस समय क्षेत्र में तैनात थे। राहत और बचाव के लिए SDRF, NDRF और ITBP की टीमें मौके पर पहुंच चुकी हैं, जबकि भारतीय सेना ने भी विशेष हेलिकॉप्टर और साजो-सामान भेजे हैं।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे ‘अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण घटना’ करार देते हुए राहत कार्यों को युद्ध स्तर पर चलाने का निर्देश दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी घटना पर दुख प्रकट करते हुए केंद्र से हरसंभव सहायता का भरोसा दिया है।
मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों तक भारी बारिश की चेतावनी दी है जिससे और भूस्खलन या बाढ़ का खतरा बना हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल एक जलवायु आपदा नहीं, बल्कि पर्यावरणीय चेतावनी भी है। खतरनाक ढंग से हो रहे पर्वतीय निर्माण और ग्लेशियरों पर हो रहा दबाव इस त्रासदी की पृष्ठभूमि बन रहे हैं।
धराली गाँव और खीरगंगा घाटी की यह आपदा केवल एक भौगोलिक घटना नहीं, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक चेतना पर पड़ा एक गहरा आघात है। जहां कभी मंदिरों की घंटियों की गूंज होती थी, वहां अब सन्नाटा है।