पूनम शर्मा
भारत में दूध सिर्फ एक आहार नहीं, आस्था है। यहाँ गाय को माँ कहा जाता है, दूध को अमृत माना जाता है, और दूध से बने पदार्थों को शुद्धता का प्रतीक समझा जाता है। लेकिन क्या हो अगर वही दूध और उससे बनी वस्तुएँ —जैसे पनीर, घी, मावा—शुद्ध नहीं, बल्कि ज़हर से भरी हों? क्या हो अगर उस पवित्र प्रतीक के नाम पर हम हर दिन अपनी और अपने बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हों?
असली सवाल: ₹30 में पनीर मोमोज कैसे?
आज किसी भी हाईवे ढाबे पर जाइए, मेन्यू में 6 से 8 पनीर की डिश मिलेंगी। शहर के 5-स्टार होटलों में ‘वेज सेक्शन’ का 60% हिस्सा पनीर से सजा होगा। ₹30 में 6 पनीर मोमोज, ₹50 में पनीर पिज्जा, ₹100 में बटर पनीर—क्या आपने कभी सोचा कि ये कैसे संभव है?
पनीर की असली लागत समझें। घर पर पनीर बनाने के लिए 1 किलो पनीर के लिए 5 लीटर दूध चाहिए। यदि अमूल का फुल क्रीम दूध ₹70 प्रति लीटर के हिसाब से लें, तो सिर्फ दूध की लागत ₹350 हो जाती है। इसमें गैस, लेबर, पैकिंग, और लॉजिस्टिक मिलाएँ तो लागत ₹360-₹380 तक पहुंच जाती है। अब सवाल उठता है—जब असली पनीर की लागत इतनी है, तो बाजार में ₹200-₹250 किलो पनीर कैसे बिक रहा है?
नकली पनीर: दिखने में सफेद, असल में ज़हर
इसका उत्तर है—नकली पनीर। जिसे तकनीकी भाषा में “एनालॉग पनीर” कहा जाता है। यह पनीर नहीं, एक रासायनिक मिश्रण होता है—पाउडर दूध, वनस्पति घी (डालडा), पाम ऑयल, अरारोट, सिंथेटिक डेवलपिंग एजेंट्स और स्टेबलाइज़र से बना। इसका न तो कोई पोषण है, न स्वाद, और न ही स्वास्थ्यवर्धक गुण। ये वही तत्व हैं जो आर्टरी में जमकर दिल और लीवर की बीमारियों को न्योता देते हैं।
यह नकली पनीर हर जगह है—मोमोज स्टॉल से लेकर पाँच सितारा होटलों तक। और इससे भी अधिक खतरनाक है वो ‘पनीर’ जो यूरिया, डिटर्जेंट, मैदा और स्टार्च से बना होता है। यह सस्ता पनीर हमारे खाने का हिस्सा बन चुका है—बिना किसी सवाल के, बिना किसी चेतावनी के।
यूरिया और डिटर्जेंट से बनी मौत
आप जिस पनीर को पिज़्ज़ा या बर्गर में खाते हैं, उसकी असलियत किसी फैक्ट्री या डेयरी से नहीं, गली-कूचों की अवैध भट्ठियों से शुरू होती है। यूरिया, डिटर्जेंट और पाउडर मिल्क को उबाल कर उसमें फैट और एजेंट्स मिलाए जाते हैं, ताकि वह दिखने में पनीर जैसा लगे।
यूरिया हमारी किडनी और लिवर पर धीमा हमला करता है। डिटर्जेंट पाचन तंत्र को खराब करता है। रोज़-रोज़ सेवन से ये ज़हर शरीर में जमता जाता है, और अंततः कैंसर जैसी बीमारियों का रूप ले लेता है।
आंकड़ों से खुलती भयावह तस्वीर
भारत में रोज़ाना 64 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है। यदि इस दूध को फाड़कर पनीर बनाया जाए तो अधिकतम 1.2 करोड़ किलो पनीर बन सकता है। परंतु भारत में हर दिन पनीर की खपत है लगभग 1.5 करोड़ किलो। ये अतिरिक्त 30 लाख किलो पनीर कहाँ से आता है?
उत्तर सीधा है—नकली पनीर फैक्ट्रियाँ। और यही नहीं, खुला दूध भी नकली होता है। इसमें यूरिया, साबुन, सिंथेटिक मिल्क, स्टार्च और यहां तक कि कास्टिक सोडा तक मिलाया जाता है।
हार्मोन इंजेक्शन: शुद्धता का सबसे बड़ा अपमान
दूध उत्पादन बढ़ाने के लालच में देशभर में लाखों पशुओं को ऑक्सीटोसिन जैसे हार्मोन इंजेक्शन दिए जाते हैं। इससे गाय-भैंस से जबरन अधिक दूध निकाला जाता है। लेकिन इसका असर जानवर पर ही नहीं, इंसानों पर भी होता है। यह हार्मोन महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता, किशोरियों में स्तन विकृति और पुरुषों में प्रजनन समस्याओं का कारण बनता है। यह न केवल पशु क्रूरता है, बल्कि मानवता के खिलाफ एक जघन्य अपराध है।
पश्चिम बनाम भारत: दूध में अंतर क्यों?
अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में दूध का उत्पादन कठोर नियमों के अंतर्गत होता है। पशुओं को साफ़-सुथरा, संतुलित आहार और मेडिकल देखरेख दी जाती है। पशु उत्पीड़न वहां गंभीर अपराध है। वहीं भारत में पशु को दूध निकालने की मशीन मान लिया गया है। हमारे कानून, सिस्टम और चेतना—सब गहरी नींद में हैं।
मांसाहारी दूध: अब धर्म भी संकट में
अब एक और गंभीर खतरा दस्तक दे रहा है—अमेरिका से ‘नॉनवेज मिल्क’ का आयात। यह वह दूध है जिसमें गायों को सुअर, मछली, मुर्गी, घोड़े यहाँ तक कि कुत्ते-बिल्ली के मांस का चूर्ण खिलाया जाता है। इससे बना दूध, अमेरिका भारत को बेचना चाहता है।
यह केवल सेहत का नहीं, बल्कि धर्म का भी अपमान है। भारत में जहां गाय को पूजनीय माना जाता है, वहां मांस आधारित चारे से आया दूध हमारी संस्कृति, आस्था और नैतिकता पर सीधा प्रहार है।
किसान चेतावनी दे चुके हैं
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के गांवों में जब यह खबर फैली कि भारत सरकार अमेरिका के साथ इस प्रकार के दूध के आयात पर समझौता कर सकती है, तो किसानों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। उन्होंने चेतावनी दी—”अगर सरकार ने समझौता किया, तो हम अपनी गायों को लेकर संसद भवन में बांध देंगे।” यह कोई राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि उस असहायता की चीख है जो भारत का किसान महसूस कर रहा है।
सरकारी चुप्पी: मौन समर्थन या मिलीभगत?
भारत में नकली दूध और डेयरी उत्पादों का कारोबार हज़ारों करोड़ का है। इसके पीछे छुपे हैं स्थानीय नेताओं, भ्रष्ट अधिकारियों और माफियाओं के गठजोड़। सरकारें छिटपुट छापेमारी तो करती हैं, पर कभी भी मुख्य स्रोत को नहीं छूतीं। मिलावटखोरों को मिलती है सिर्फ मामूली सज़ा या ज़ुर्माना—जिससे वे दो दिन बाद फिर से वही ज़हर बना कर बेचने लगते हैं।
अब सवाल ये है कि आम नागरिक क्या करे?
घर का बना पनीर अपनाएँ । एक बार बनाकर देखें, फर्क समझ में आएगा।
खुले दूध से बचें। सिर्फ प्रमाणित और विश्वसनीय ब्रांड का दूध खरीदें।
सस्ते पनीर से सतर्क रहें। ₹250/kg से कम का पनीर शायद ही असली हो।
होटलों में सवाल पूछें। पनीर डिश ऑर्डर करने से पहले ‘कच्चा टुकड़ा’ देखने की मांग करें।
मिलावट की रिपोर्ट करें। स्थानीय प्रशासन और उपभोक्ता फोरम को सूचित करें।
जागरूकता फैलाएं। अपने परिचितों को भी यह जानकारी दें, ताकि सामूहिक चेतना बने।
सफेद ज़हर से सावधान हो जाइए
भारत में दूध और उससे बने उत्पाद केवल पोषण का साधन नहीं, जीवनदर्शन का हिस्सा हैं। लेकिन यही दूध जब लालच, लापरवाही और मिलावट की प्रयोगशाला बन जाए, तो वह जीवन नहीं, मृत्यु का कारण बनता है।
अब भी समय है। चेतिए, अपने भोजन की जांच कीजिए। यह जानना जरूरी है कि जो सफेद दिख रहा है, वह पवित्र है या ज़हर से लिपटा हुआ धोखा।