पूनम शर्मा
4 तारीख ,यह तारीख बांग्लादेश के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ के रूप में दर्ज हो गई है। इसी दिन, दशकों तक बांग्लादेश की राजनीति पर छायी रहीं । प्रधानमंत्री शेख हसीना को राजधानी ढाका से सेना की मदद से बाहर निकाल कर एक विशेष विमान के जरिये भारत के हिंडन एयरबेस लाया गया। यह निर्णय उस समय लिया गया जब ढाका में छात्र संगठनों के नेतृत्व में उग्र प्रदर्शन हो रहे थे और सरकारी तंत्र चरमराने की कगार पर था।
आज, इस ऐतिहासिक घटना को एक वर्ष पूरा हो चुका है। लेकिन शेख हसीना की वापसी, उनके राजनीतिक भविष्य और भारत में उनकी मौजूदगी को लेकर रहस्य, कूटनीतिक तनाव और क्षेत्रीय अस्थिरता लगातार गहराती जा रही है।
भारत में हसीना की मौजूदगी: सुरक्षा या रणनीति?
शेख हसीना इस समय नई दिल्ली के एक सुरक्षित सरकारी परिसर में रह रही हैं, जहाँ भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा उन्हें विशेष सुरक्षा दी गई है। उनके साथ उनकी बेटी सायमा वाजेद भी हैं, जो हाल तक विश्व स्वास्थ्य संगठन की दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र की निदेशक थीं। पिछले महीने बांग्लादेश की अदालतों में शुरू हुए कई मामलों के बाद उन्हें अनिश्चितकालीन अवकाश पर भेज दिया गया है।
भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से शेख हसीना की मौजूदगी को ‘सुरक्षा कारणों’ से बताया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने अक्टूबर 2024 में कहा था, “शेख हसीना अल्पकालिक सुरक्षा कारणों से भारत आई थीं और वर्तमान में भी वही स्थिति बनी हुई है।”
हालांकि, हकीकत में मामला इतना सरल नहीं है। पिछले महीने जब दिल्ली प्रेस क्लब में अवामी लीग के कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा एक संवाददाता सम्मेलन किया जाना था, तो भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद वह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। यह संकेत था कि भारत शेख हसीना को किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधि की इजाजत नहीं देना चाहता, जिससे बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय संबंध प्रभावित हों।
आरोपों की लंबी फेहरिस्त
शेख हसीना पर इस समय कई गंभीर आरोप लंबित हैं, जिनमें भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन, और 1971 के युद्ध से संबंधित अपराध भी शामिल हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार, जिसके नेतृत्व में नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस हैं, ने फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनावों से पहले अवामी लीग और उसकी छात्र इकाई को प्रतिबंधित कर दिया है। यह फैसला हसीना के समर्थकों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
पिछले एक वर्ष के दौरान हसीना ने कई बार अपने समर्थकों को ऑडियो संदेश भेजे और एक बार लाइव डिजिटल रैली भी की। लेकिन उस रैली के बाद ढाका में उनके परिवार के घर और शेख मुजीबुर रहमान के स्मारक पर हिंसक हमले हुए, जिसमें भवन का अधिकांश हिस्सा जलकर खाक हो गया। इसके बाद भारत सरकार ने उनकी सार्वजनिक गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश लगा दिया।
ब्रिटेन से अस्थायी अस्वीकार, भारत से स्थायी मेहमाननवाजी?
बताया जाता है कि भारत आने से पहले शेख हसीना ने ब्रिटेन से शरण मांगी थी, लेकिन वहां की नई लेबर सरकार, जो पहले से ही घरेलू नस्लीय तनावों से जूझ रही थी, ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के हस्तक्षेप से हसीना को दिल्ली में शरण दी गई।
यह घटनाक्रम 1975 की याद दिलाता है, जब इंदिरा गांधी सरकार ने हसीना और उनकी बहन को उनके परिवार की हत्या के बाद भारत में शरण दी थी। तब हसीना छह वर्षों तक भारत में रहीं और 1981 में बांग्लादेश लौटकर अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया।
बांग्लादेश का भविष्य: लोकतंत्र या नया शासन मॉडल?
बांग्लादेश में वर्तमान अंतरिम सरकार ने राजनीतिक विपक्ष को कुचलने की रणनीति अपनाई है। प्रेस स्वतंत्रता पर लगातार हमले हो रहे हैं। एक मानवाधिकार संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद पत्रकारों पर हमलों में 230% की वृद्धि दर्ज की गई है। विपक्षी दलों को निष्क्रिय कर दिए जाने और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा चेतावनी के बावजूद, यूनुस सरकार ने चुनावी प्रक्रिया में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ को प्राथमिकता देने की बात कही है।
यह स्थिति बांग्लादेश को एक लोकतांत्रिक गणराज्य से एक नियंत्रित राष्ट्र में बदलने के संकेत देती है। हसीना की अनुपस्थिति और उनके खिलाफ मामलों की जटिलता यह स्पष्ट कर देती है कि निकट भविष्य में उनकी वापसी लगभग असंभव है।
भारत के लिए दुविधा
भारत के लिए शेख हसीना का निर्वासन एक कूटनीतिक दुविधा बन गया है। एक ओर वे दशकों तक भारत की भरोसेमंद सहयोगी रही हैं, तो दूसरी ओर, नई अंतरिम सरकार से संबंध बनाए रखना क्षेत्रीय स्थिरता और रणनीतिक संतुलन के लिए आवश्यक हो गया है।
भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि शेख हसीना की टिप्पणियां उनकी व्यक्तिगत राय हैं और भारत की आधिकारिक नीति से उनका कोई संबंध नहीं है। लेकिन फिर भी, बांग्लादेश सरकार की ओर से बार-बार भारत को हसीना की मौजूदगी के मुद्दे पर तगड़ी आपत्तियाँ मिल रही हैं।
निष्कर्ष
एक साल बीतने के बावजूद, शेख हसीना का भविष्य अनिश्चित है। उनकी वापसी पर कानूनी, राजनीतिक और कूटनीतिक बादल मंडरा रहे हैं। वहीं बांग्लादेश भी एक अस्थिरता भरे दौर से गुजर रहा है, जहां लोकतंत्र, नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक संतुलन, सभी कुछ पुनर्परिभाषित हो रहे हैं।
क्या हसीना दोबारा अपने देश लौट पाएंगी? क्या भारत अपने पुराने मित्र को चुपचाप निर्वासन में रहने देगा या कोई नई भूमिका तलाशेगा? आने वाला समय इन प्रश्नों का उत्तर देगा — लेकिन अभी के लिए, एक निर्वासित नेता और बदलते बांग्लादेश की कहानी जारी है।