दैनिक भास्कर ग्वालियर: रिपोर्टिंग टीम को करोड़ों जुटाने का टारगेट!
स्थापना दिवस के अवसर पर दैनिक भास्कर प्रबंधन का 5-6 करोड़ रुपये के कारोबार का लक्ष्य, पत्रकारों पर विज्ञापन लाने का भारी दबाव।
- दैनिक भास्कर, ग्वालियर के स्थापना दिवस को लेकर रिपोर्टिंग टीम को 1 से 1.5 करोड़ रुपये के विज्ञापन लाने का टारगेट दिया गया है।
- प्रत्येक पत्रकार को 15 लाख रुपये का विज्ञापन या पैकेज बेचने का दबाव डाला जा रहा है।
- इस दबाव के चलते पत्रकार खबरें जुटाने के बजाय ग्राहक तलाशने में लगे हुए हैं, जिससे पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
समग्र समाचार सेवा
ग्वालियर, 3 अगस्त, 2025 – मीडिया जगत में इन दिनों एक नई बहस छिड़ी हुई है कि क्या पत्रकारिता अब सिर्फ व्यापार बनकर रह गई है? इस सवाल को तब और बल मिला जब दैनिक भास्कर, ग्वालियर से जुड़ी एक खबर सामने आई। अगले महीने 6 अगस्त को दैनिक भास्कर ग्वालियर का स्थापना दिवस है, और इस मौके पर प्रबंधन ने एक महत्वाकांक्षी कारोबारी लक्ष्य रखा है। सूत्रों के मुताबिक, प्रबंधन 5-6 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कारोबार चाहता है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए, संपादकीय प्रभारी विपुल गुप्ता ने रिपोर्टिंग टीम को ही 1 से 1.5 करोड़ रुपये लाने का दबाव डाला है।
पत्रकारों पर 15 लाख रुपये का विज्ञापन टारगेट
यह खबर मीडिया गलियारों में तेजी से फैल रही है कि ग्वालियर के संपादकीय प्रभारी ने एक फरमान जारी कर दिया है कि प्रत्येक पत्रकार को कम से कम 15 लाख रुपये का विज्ञापन लाना होगा। जो पत्रकार विज्ञापन नहीं ला सकते, उन्हें विभिन्न आकर्षक पैकेज बेचने का दबाव दिया जा रहा है। इन पैकेजों में बागेश्वर धाम और कुबेरेश्वर धाम के महंतों से मुलाकात, आईआईएम इंदौर से कोर्स, दिल्ली में एक खास अवार्ड और कोलंबो में प्रदीप मिश्रा की कथा जैसे ऑफर शामिल हैं। इन पैकेजों की कीमत 4 लाख से 10 लाख रुपये तक है।
पत्रकारिता पीछे, व्यापार आगे
भड़ास4मीडिया को भेजे गए एक मेल में इस बात का जिक्र किया गया है कि इस दबाव के कारण पत्रकार अब खबरें कम और इन पैकेजों के ग्राहक ज्यादा तलाश रहे हैं। यह स्थिति पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, जहाँ पत्रकार का मुख्य काम खबर जुटाना और जनता तक पहुँचाना होता है। जब पत्रकार को राजस्व बढ़ाने का काम सौंपा जाता है, तो स्वाभाविक रूप से उसकी प्राथमिकता बदल जाती है, जिससे खबरों की गुणवत्ता और निष्पक्षता पर सीधा असर पड़ सकता है। यह आरोप भी लगाया गया है कि संपादक वरिष्ठ अधिकारियों और नेताओं को अपने केबिन में बिठाकर रिपोर्टर के साथ सीधे डील कर रहे हैं।
संपादक का पक्ष जानने की कोशिश
इस गंभीर मामले पर संपादक का पक्ष जानने के लिए फोन किया गया। हालांकि, खबर लिखे जाने तक उधर से फोन रिसीव नहीं हुआ। इस पूरे मामले को लेकर अभी तक दैनिक भास्कर प्रबंधन की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। मीडिया विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह का दबाव न केवल पत्रकारों के मनोबल को गिराता है, बल्कि पत्रकारिता की साख पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले पर प्रबंधन की क्या प्रतिक्रिया आती है। जवाब आने पर, दूसरा पक्ष भी प्रकाशित किया जाएगा।