‘आतंकवाद कभी भगवा नहीं था’: फडणवीस ने मालेगांव फैसले पर विपक्ष को घेरा

मालेगांव फैसले के बाद गरमाई सियासत: सीएम फडणवीस ने कांग्रेस को लपेटा, 'हिंदू आतंकवाद' की थ्योरी पर साधा निशाना

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  • मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा, ‘आतंकवाद कभी भगवा नहीं था और न कभी होगा।’
  • यह टिप्पणी मालेगांव धमाके के सभी आरोपियों के बरी होने के बाद आई है।
  • उन्होंने विपक्ष पर ‘भगवा आतंकवाद’ का नैरेटिव गढ़ने का आरोप लगाया।

समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 31 जुलाई, 2025: 2008 के मालेगांव धमाका मामले में सभी आरोपियों के बरी होने के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक बड़ा राजनीतिक बयान दिया है। उन्होंने कहा, “आतंकवाद कभी भगवा नहीं था और न कभी होगा।” फडणवीस की यह टिप्पणी सीधे तौर पर उस ‘भगवा आतंकवाद’ के नैरेटिव पर हमला है, जिसे कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने पिछले कुछ सालों में गढ़ा था। फडणवीस के इस बयान के बाद महाराष्ट्र समेत देशभर की राजनीति में हलचल तेज हो गई है।

एनआईए कोर्ट का फैसला और फडणवीस की प्रतिक्रिया

विशेष एनआईए अदालत ने गुरुवार को अपने फैसले में 2008 के मालेगांव धमाके के सभी सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इन आरोपियों में बीजेपी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित जैसे प्रमुख नाम शामिल थे।

इस फैसले के तुरंत बाद प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि यह फैसला उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जिन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता और इसे किसी भी धर्म से जोड़ना गलत है। फडणवीस ने इस बात पर जोर दिया कि मालेगांव केस एक राजनीतिक साजिश थी, जिसका उद्देश्य एक विशेष समुदाय को बदनाम करना था।

शिवसेना और भाजपा ने भी साधा निशाना

फडणवीस के इस बयान का समर्थन करते हुए बीजेपी और शिवसेना के अन्य नेताओं ने भी विपक्ष पर निशाना साधा। शिवसेना के प्रवक्ता कृष्णा हेगड़े ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कांग्रेस ने राजनीतिक एजेंडा पूरा करने के लिए ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द गढ़ा था। वहीं, महाराष्ट्र के जल संसाधन मंत्री और भाजपा नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल ने कहा कि ‘हिंदुत्व’ को आतंकवादी लेबल देकर आध्यात्मिकता को चोट पहुंचाने की कोशिश की गई थी।

यह मामला वर्षों तक जांच एजेंसियों और अदालतों में चला, लेकिन कोर्ट के इस फैसले ने अब इस पर एक निर्णायक मुहर लगा दी है। भाजपा और उसके सहयोगी दल अब इस फैसले को विपक्ष पर हमला करने के लिए एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

‘भगवा आतंकवाद’ की बहस: कहां से हुई शुरुआत?

‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल पहली बार 2010 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने किया था। यह शब्द मालेगांव धमाके जैसे मामलों के संदर्भ में सामने आया था, जिसमें हिंदू संगठनों के कुछ लोगों पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा था। कांग्रेस ने इस शब्द का इस्तेमाल किया, जिसके बाद भाजपा ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी। भाजपा का कहना था कि आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़ना गलत है और इससे देश में एक गलत संदेश जाता है।

फडणवीस का यह बयान इसी पुरानी बहस को एक बार फिर से सामने ले आया है। मालेगांव धमाका केस के फैसले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि आतंकवाद को किसी रंग या धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता। यह फैसला न केवल कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके राजनीतिक निहितार्थ भी दूरगामी हैं, जो आने वाले समय में चुनावी बहस का एक बड़ा हिस्सा बन सकते हैं।

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