छत्तीसगढ़ की अदालत ने एनआईए क्षेत्राधिकार का हवाला देते हुए ननों को जमानत देने से किया इनकार

राजनीति से गरमाया मामला: मानव तस्करी और धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार ननों को कोर्ट से नहीं मिली राहत, संसद में भी उठा मुद्दा

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
  • छत्तीसगढ़ की एक सत्र अदालत ने दो ननों की जमानत याचिका खारिज की।
  • अदालत ने कहा, मानव तस्करी का मामला होने के कारण यह एनआईए के क्षेत्राधिकार में आता है।
  • आरोपियों को अब बिलासपुर स्थित विशेष एनआईए कोर्ट में जमानत के लिए याचिका दायर करनी होगी।

समग्र समाचार सेवा
दुर्ग, 30 जुलाई, 2025: छत्तीसगढ़ में कथित मानव तस्करी और धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार हुईं दो ननों को एक बड़ा कानूनी झटका लगा है। दुर्ग की एक सत्र अदालत ने उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह मामला उनके क्षेत्राधिकार में नहीं आता, क्योंकि इसमें मानव तस्करी का आरोप है, जो राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) अधिनियम के तहत आता है। अब इन दोनों ननों को जमानत के लिए बिलासपुर स्थित विशेष एनआईए अदालत का रुख करना होगा।

न्यायालय का फैसला और एनआईए क्षेत्राधिकार

सत्र न्यायालय के न्यायाधीश अनीश दुबे (एफटीएससी) ने बुधवार को नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस की जमानत याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि मानव तस्करी से जुड़े मामलों पर सुनवाई का अधिकार केवल एनआईए कोर्ट को है। उन्होंने ननों के वकीलों को सलाह दी कि वे आगे की कानूनी कार्रवाई के लिए एनआईए अदालत जा सकते हैं। इस फैसले से बजरंग दल और अन्य हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया, जिन्होंने ननों की जमानत का विरोध किया था।

न्यायाधीश ने थाना प्रभारी को यह भी निर्देश दिया कि जब तक एनआईए कोर्ट में मामले की सुनवाई नहीं होती, तब तक दोनों नन न्यायिक हिरासत में रहेंगी और मानव तस्करी से जुड़े सभी दस्तावेज केंद्रीय एजेंसी को सौंपे जाएं।

क्या हैं ननों पर आरोप?

यह मामला तब सामने आया जब बजरंग दल के सदस्यों ने 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर दोनों कैथोलिक ननों को छत्तीसगढ़ के युवक सूकमन मंडावी के साथ रोक लिया था। उन पर आरोप लगाया गया था कि वे नारायणपुर जिले की तीन आदिवासी लड़कियों को बहला-फुसलाकर धर्मांतरण के लिए आगरा ले जा रही थीं। बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने तीनों को राजकीय रेलवे पुलिस (GRP) को सौंप दिया, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया।

कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने इस गिरफ्तारी का कड़ा विरोध किया है। केरल कांग्रेस के दो विधायक रायपुर पहुंचे और दुर्ग जेल में बंद ननों से मुलाकात भी की। इस मुद्दे को लेकर केरल और छत्तीसगढ़ की राजनीति में खींचतान बढ़ गई है, और यह मामला संसद में भी उठाया गया है। कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने लोकसभा में इस मामले पर सवाल उठाते हुए छत्तीसगढ़ सरकार पर निशाना साधा था और ननों की तत्काल रिहाई की मांग की थी।

राजनीतिक और कानूनी निहितार्थ

सत्र अदालत के इस फैसले के बाद यह मामला और भी जटिल हो गया है। जमानत याचिका खारिज होने और मामले को एनआईए कोर्ट को सौंपे जाने से इस मुद्दे की गंभीरता बढ़ गई है। यह दर्शाता है कि अदालतें ऐसे मामलों को बेहद गंभीरता से ले रही हैं, खासकर जब आरोप मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण जैसे हों।

अब सभी की निगाहें बिलासपुर स्थित एनआईए कोर्ट पर टिकी हैं, जहां इन ननों की जमानत याचिका पर अगली सुनवाई होगी। इस बीच, राजनीतिक गलियारों में यह मुद्दा गरमाया हुआ है, जहां एक ओर सरकार इन आरोपों को गंभीरता से ले रही है, वहीं विपक्ष इसे धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बताकर विरोध कर रहा है।

 

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.