भविष्य की ओर संस्कृत: महर्षि विद्या मंदिर में शिक्षकों को प्रशिक्षण, 10 लाख सदस्यों को जोड़ने का लक्ष्य

भोपाल में संस्कृत प्रशिक्षण का महाकुंभ: महर्षि संस्थान की पहल से भाषा को मिलेगी नई पहचान

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  • भोपाल में महर्षि संस्थान में 18 शिक्षकों का संस्कृत प्रशिक्षण कोर्स सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
  • प्रशिक्षित शिक्षक अब हर साल 6000 छात्रों को संस्कृत सिखाने का काम करेंगे।
  • महर्षि संगठन का लक्ष्य अगले दो सालों में 10 लाख सदस्यों को संस्कृत से जोड़ना है।

समग्र समाचार सेवा
भोपाल, 30 जुलाई, 2025: महर्षि विद्या मंदिर समूह के शिक्षण संस्थानों में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार और शिक्षकों के कौशल विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। भोपाल में महर्षि सेंटर ऑफ एजुकेशनल एक्सीलेंस कैंपस में 15 से 29 जुलाई, 2025 तक एक आवासीय संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम (रेजिडेंशियल कोर्स) का सफल आयोजन किया गया। इस 15-दिवसीय गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश भर से आए 18 शिक्षकों ने भाग लिया, जिन्होंने अब अपनी शिक्षा पूरी कर ली है। यह पहल महर्षि संगठन के उस बड़े संकल्प का हिस्सा है, जिसके तहत संस्कृत को जन-जन तक पहुंचाना है।

प्रशिक्षण की गुणवत्ता और उद्देश्य

इस पाठ्यक्रम का संचालन डॉ. सत्यवाणी और श्रीमती देवकी, दोनों ही उच्च योग्य और अनुभवी संस्कृत शिक्षिकाओं द्वारा किया गया। उन्होंने प्रतिभागियों को संस्कृत बोलने, पढ़ाने और इसके व्याकरण के विभिन्न पहलुओं का गहन प्रशिक्षण दिया। इस प्रशिक्षण के बाद, ये सभी 18 शिक्षक अपने-अपने महर्षि विद्या मंदिर स्कूलों में वापस लौटेंगे, जहां वे हर साल करीब 6000 छात्रों को संस्कृत भाषा का ज्ञान देंगे। इस तरह यह कार्यक्रम केवल 18 शिक्षकों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर हजारों छात्रों के भविष्य पर पड़ेगा।

‘संस्कृत देव वाणी है’: दिग्गजों का मार्गदर्शन

पाठ्यक्रम के समापन सत्र को संबोधित करते हुए, वेद विद्या मार्तंड ब्रह्मचारी गिरीश जी ने संस्कृत शिक्षण को लेकर पारित किए गए संकल्प को याद दिलाया। उन्होंने घोषणा की कि महर्षि संगठन अगले दो वर्षों में अपने करीब 10 लाख सदस्यों को संस्कृत से जोड़ने के लिए बड़ी संख्या में शिक्षकों के साथ ऐसे कई और पाठ्यक्रमों का आयोजन करेगा। यह घोषणा महर्षि संगठन की संस्कृत भाषा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

कार्यक्रम में महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. भुवनेश शर्मा भी उपस्थित रहे। उन्होंने शिक्षकों को प्रेरित करते हुए कहा कि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि ‘देव वाणी’ है। उन्होंने कहा, “संस्कृत का अध्ययन व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व का विकास करता है और उसकी चेतना के स्तर को बढ़ाता है।”

सफल आयोजन और सम्मान समारोह

ब्रह्मचारी गिरीश जी ने इस सफल आयोजन के लिए महर्षि विद्या मंदिर समूह के निदेशक, संचार और जन संपर्क श्री वी. आर. खरे जी और संयुक्त निदेशिका श्रीमती आर्या नंदकुमार को विशेष रूप से धन्यवाद दिया। उन्होंने उनके कुशल प्रबंधन और व्यवस्थाओं की सराहना की। श्री खरे ने इस अवसर पर बताया कि महर्षि संगठन बहुत जल्द ही अगला ऑनलाइन और आवासीय पाठ्यक्रम भी शुरू करेगा, जिससे और अधिक लोगों को संस्कृत सीखने का मौका मिलेगा।

पाठ्यक्रम के अंत में, सभी 18 प्रतिभागियों के साथ-साथ प्रशिक्षक डॉ. सत्यवाणी और श्रीमती देवकी को भी उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया। उन्हें प्रमाण पत्र, मिष्ठान, पुष्प और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। यह सम्मान न केवल उनके प्रयासों को मान्यता देता है, बल्कि आने वाले समय में संस्कृत को एक जीवंत भाषा के रूप में स्थापित करने के उनके संकल्प को भी मजबूत करता है।

 

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