दुर्ग रेलवे स्टेशन पर विवाद: मानव तस्करी के आरोप में दो नन गिरफ्तार, ईसाई समुदाय में रोष
छत्तीसगढ़ में गरमाया धर्मांतरण का मुद्दा: ननों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस और दक्षिणपंथी समूह निशाने पर
- छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन पर दो कैथोलिक ननों को गिरफ्तार किया गया।
- उन पर मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण का आरोप लगा है, जिसे चर्च ने नकारा है।
- मामले में बजरंग दल के हस्तक्षेप और कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल के पत्र से राजनीतिक विवाद गहराया।
समग्र समाचार सेवा
रायपुर, 30 जुलाई, 2025: छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण और मानव तस्करी का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। शनिवार, 26 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर दो कैथोलिक नन, सिस्टर प्रीति मैरी और सिस्टर वंदना फ्रांसिस, को एक युवक और तीन युवतियों के साथ गिरफ्तार किया गया। उन पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 143 और छत्तीसगढ़ धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 की धारा 4 के तहत मामला दर्ज किया गया है। यह गिरफ्तारी एक रेलवे टिकट परीक्षक की शिकायत के बाद हुई, जिसके बाद मौके पर बजरंग दल के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में पहुंच गए और पुलिस पर दबाव बनाया।
चर्च का दावा: नौकरी के लिए ले जाई जा रही थीं युवतियां
गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने दावा किया है कि ये नन तीन युवतियों को बहला-फुसलाकर ले जा रही थीं। हालांकि, चर्च और ईसाई समुदाय ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया है। चर्च के प्रतिनिधियों के अनुसार, नारायणपुर जिले की रहने वाली ये तीनों युवतियां (उम्र 18-19 वर्ष) आगरा के एक कॉन्वेंट में रसोई सहायक के तौर पर नौकरी के लिए जा रही थीं। उन्हें 8,000 से 10,000 रुपये मासिक वेतन की पेशकश की गई थी। चर्च ने यह भी दावा किया है कि उनके पास सभी युवतियों के अभिभावकों द्वारा हस्ताक्षरित लिखित सहमति पत्र मौजूद हैं, जो इस बात का सबूत हैं कि युवतियां अपनी मर्जी से जा रही थीं और किसी तरह का दबाव या धर्मांतरण का मामला नहीं था।
बजरंग दल के दबाव में कार्रवाई का आरोप
इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। शुरुआती जानकारी के अनुसार, रेलवे टिकट परीक्षक ने प्लेटफार्म पर इस समूह से पूछताछ की और संदेह होने पर स्थानीय बजरंग दल को सूचित किया। इसके बाद, बड़ी संख्या में बजरंग दल के कार्यकर्ता मौके पर पहुंच गए और पुलिस पर एफआईआर दर्ज करने का दबाव बनाया। पुलिस ने सभी को हिरासत में ले लिया और कार्यकर्ताओं के दबाव में आकर मानव तस्करी और धर्मांतरण की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया। चर्च के प्रतिनिधियों का आरोप है कि इस गिरफ्तारी में दक्षिणपंथी समूहों का बड़ा हाथ है, और पुलिस ने बिना उचित जांच के ही कार्रवाई की है।
गिरफ्तारी के बाद, तीनों युवतियों को एक सरकारी शेल्टर होम में भेज दिया गया है, जबकि ननों और उनके साथ यात्रा कर रहे युवक सुखमन मंडावी को 8 अगस्त तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।
ईसाई समुदाय और राजनेताओं की कड़ी निंदा
इन गिरफ्तारियों की देशभर के ईसाई समुदाय ने कड़ी निंदा की है। दिल्ली से सिस्टर आशा पॉल ने आरोप लगाया कि पुलिस ने चर्च के प्रतिनिधियों को गिरफ्तार ननों से मिलने तक नहीं दिया। उन्होंने आशंका जताई कि “लड़कियों को जबरन बयान बदलने के लिए मजबूर किया गया होगा।” सिस्टर पॉल ने कहा कि हमारे पास सभी आवश्यक कागजात हैं, जो यह साबित करते हैं कि कोई जबरन धर्मांतरण या मानव तस्करी नहीं हो रही थी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल ने इस घटना पर केंद्रीय गृह मंत्री और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा, “यह अत्यंत दुखद है कि स्वघोषित निगरानी समूह झूठे आरोपों के आधार पर सांप्रदायिक तनाव फैला सकते हैं और पुलिस पर दबाव डालकर गिरफ्तारी करवा सकते हैं।”
इस तरह की घटनाओं पर नजर रखने वाली संस्था यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (UCF) के आंकड़े भी इस चिंता को बल देते हैं। यूसीएफ के अनुसार, 2014 में ईसाइयों पर हमलों के 127 मामले दर्ज हुए थे, जो 2024 में बढ़कर 834 हो गए हैं। यह आंकड़े देश में अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ बढ़ते डर के माहौल को दर्शाते हैं।