मस्जिद में बैठक और डिंपल यादव की ड्रेस पर बवाल: समाजवादी पार्टी पर उठे सवाल

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पूनम शर्मा
हाल ही में दिल्ली में संसद सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी की एक अंदरूनी बैठक को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। यह बैठक एक मस्जिद परिसर में आयोजित की गई, जो संसद भवन के बिल्कुल सामने स्थित है। इस बैठक में पार्टी के प्रमुख नेताओं समेत महिला सांसद डिंपल यादव और इकरा हसन भी मौजूद थीं। लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल हुई एक तस्वीर ने पूरे घटनाक्रम को विवादों के घेरे में ला दिया है।
घटना क्या थी?

बताया जा रहा है कि सोमवार को संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ, और अगले ही दिन समाजवादी पार्टी ने अपने सांसदों की एक बैठक बुलाई। पार्टी के सांसद मोलाना बुल्ला – जो रामपुर से सांसद हैं और एक मस्जिद के इमाम भी हैं – ने सुझाव दिया कि मस्जिद के एक कक्ष में ही बैठक कर ली जाए। इस प्रस्ताव पर बैठक मस्जिद परिसर के एक हॉल में की गई, जिसमें करीब 10-12 सांसद मौजूद थे, जिनमें दो महिला सांसद – इकरा हसन और डिंपल यादव – भी शामिल थीं।

तस्वीरों से उठा विवाद

इस बैठक की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, जिसमें डिंपल यादव सामान्य साड़ी-ब्लाउज़ में बैठक में बैठी हुई दिखाई दीं। तस्वीरों में उनका सिर ढका नहीं था और ब्लाउज़ का पीछे का हिस्सा (कमर का हिस्सा) कुछ हद तक दिखाई दे रहा था। इसके बाद इस पर धार्मिक मान्यताओं के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग ने आपत्ति जताई।

मौलाना साजिद रशीद का तीखा बयान

अखिल भारतीय इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीद ने टीवी डिबेट में तीखा बयान दिया। उन्होंने कहा कि “इस्लाम में मस्जिद में महिलाओं की उपस्थिति की अनुमति बहुत सीमित होती है, और यदि किसी कारणवश कोई महिला आती भी है तो उसे पूरी तरह से ढंका हुआ होना चाहिए।” उन्होंने स्पष्ट रूप से डिंपल यादव की ड्रेस पर आपत्ति जताई और कहा कि इस तरह के खुले वस्त्र पहनकर मस्जिद में बैठक करना इस्लामिक मर्यादाओं का उल्लंघन है।

राजनीति का तड़का

इस पूरे विवाद पर समाजवादी पार्टी की ओर से कोई ठोस बयान सामने नहीं आया। खुद अखिलेश यादव, जो पार्टी के प्रमुख हैं और डिंपल यादव के पति भी हैं, ने इस पर सीधे कुछ कहने से बचते हुए कहा कि उनकी पार्टी धर्म से ऊपर उठकर एकता और सामाजिक समरसता की बात करती है। उन्होंने इस विवाद को बीजेपी द्वारा भड़काया गया मुद्दा करार दिया।
वहीं दूसरी ओर, सोशल मीडिया पर मुस्लिम समुदाय के कई यूजर्स ने इस बैठक की निंदा की। उनका कहना है कि न सिर्फ मस्जिद में राजनीतिक बैठक करना अनुचित है, बल्कि महिलाओं की इस तरह की मौजूदगी और पोशाक धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली है।

विरोधाभास और दोहरापन

दिलचस्प बात यह है कि समाजवादी पार्टी लंबे समय से मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे राजनीति करती रही है। आजम खां जैसे नेता जिनकी रामपुर में एक मजबूत पकड़ थी, अब हाशिये पर दिख रहे हैं। वहीं, मौलाना बुल्ला को टिकट देकर जिस तरह उन्हें सांसद बनाया गया, उसे लेकर भी अंदरखाने सवाल उठते रहे हैं।

इस पूरे प्रकरण से स्पष्ट होता है कि धर्म और राजनीति का घालमेल अब एक संवेदनशील मुद्दा बनता जा रहा है। मस्जिद जैसे पवित्र स्थान का राजनीतिक बैठकों के लिए इस्तेमाल और धार्मिक मान्यताओं की अनदेखी न केवल सामाजिक असंतोष को जन्म देती है, बल्कि राजनीतिक दलों की दोहरी नीति को भी उजागर करती है।
समाजवादी पार्टी को चाहिए कि वह इस विवाद पर स्पष्ट रुख अपनाए और भविष्य में धार्मिक स्थलों का राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल करने से बचे। वरना यह न सिर्फ पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि उसके परंपरागत वोटबैंक को भी खिसका सकता है।

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