पूनम शर्मा
बिहार में जैसे ही चुनाव आयोग ने मतदाता सूची को शुद्ध करने का काम शुरू किया, विपक्षी नेताओं में खलबली मच गई। आयोग ने स्पष्ट किया कि वह फर्जी नाम हटाकर असली वोटरों को सूची में शामिल करना चाहता है, ताकि पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव हो सकें। लेकिन यही कदम जैसे कुछ लोगों के लिए जले पर नमक बन गया।
राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, पप्पू यादव जैसे नेता तुरंत इस प्रक्रिया को “साजिश” बताकर चिल्लाने लगे। सवाल उठता है — अगर सब कुछ ठीक है, तो इतनी घबराहट क्यों? असल में, जिनका राजनीतिक आधार ही फर्जी वोटों पर टिका हो, उन्हें असली लोकतंत्र से डर तो लगेगा ही।
चुनाव आयोग ने करीब 2.88 करोड़ वोटरों का सत्यापन कर लिया है और 25 जुलाई तक दस्तावेज जमा करने का मौका भी दिया है। सब कुछ सार्वजनिक, कानूनी और पारदर्शी है। फिर भी एक पूरा “NGO नेटवर्क” और कथित समाजसेवी एक्टिविस्ट इस प्रक्रिया को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए हैं।
यह वही गैंग है जो NRC-CAA के वक्त भी मुसलमानों को डराकर सड़कों पर लाया, आगजनी करवाई और फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चिल्लाया कि “भारत में मुसलमान खतरे में हैं।” वही स्क्रिप्ट, वही किरदार — बस इस बार मुद्दा वोटर लिस्ट है।
इन सबके पीछे जो चेहरें हैं, वे भी अब छिपे नहीं हैं — योगेंद्र यादव, महुआ मोइत्रा, प्रशांत भूषण और सबसे खास ADR (Association for Democratic Reforms)। ये वही ADR है जिसे विदेशी फंडिंग मिलती है, खासकर जॉर्ज सोरोस जैसे भारत विरोधी साजिशकारों से।
जॉर्ज सोरोस — वही शख्स जिसने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले करवाए, भारत में दंगे फैलाने की योजनाएं बनाई और CAA, कृषि कानून जैसे मुद्दों पर भी भारत को अस्थिर करने की कोशिश की। आज यही सोरोस भारत में “लोकतंत्र बचाने” के नाम पर एक खास गिरोह को पैसा देकर लोकतंत्र को ही खोखला कर रहा है।
इन सबके पास एक ही तरीका है — पहले सिस्टम को बदनाम करो, फिर कोर्ट में घसीटो और जनता को गुमराह करो। और इस गैंग के नाम भी अब बदल गए हैं — “आंदोलनजीवी” और “चंदाजीवी”। ये वही लोग हैं जो जंतर-मंतर पर टेंट गाड़कर आंदोलनों का नाटक करते हैं और पीठ पीछे विदेशी संस्थानों से फंड लेते हैं।
ADR ने पहले चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर सवाल उठाए, अब वोटर लिस्ट की शुद्धता पर कोर्ट में चुनौती दी है। ये वही लोग हैं जो लोकतंत्र की दुहाई देकर भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बदनाम करने की साज़िशें रचते हैं।
वास्तव में, इन्हें डर है कि अगर चुनाव आयोग पारदर्शी व्यवस्था लागू कर दे, तो इनका पूरा राजनीतिक खेल खत्म हो जाएगा। फर्जी वोट हटेंगे, तो जाति, मजहब और झूठे आंकड़ों पर आधारित इनका एजेंडा ध्वस्त हो जाएगा। यही वजह है कि आज ये चुनाव आयोग पर हमला कर रहे हैं।
आज अगर भारत में कोई पार्टी चुनाव आयोग पर विश्वास जताती है, तो वो भाजपा है। भाजपा जानती है कि उसे विकास, राष्ट्रवाद और मजबूत नेतृत्व के नाम पर वोट मिलते हैं। जबकि विपक्षी दल बिना मुद्दों और जनाधार के अब चुनावी सिस्टम को ही शक के घेरे में डालने की कोशिश कर रहे हैं।
बिहार का चुनाव अब सिर्फ राज्य का नहीं रहा — इसका असर दिल्ली तक पड़ेगा। इसलिए राहुल गांधी को अब EVM का राग छोड़कर वोटर लिस्ट में धांधली का नया राग अलापना पड़ा। उन्हें डर है कि अगर बिहार में हार मिली, तो इसका राजनीतिक अस्तित्व पर सीधा असर पड़ेगा।
इस पूरे खेल का सबसे खतरनाक पहलू है — विदेशी हस्तक्षेप। चाहे वो फोर्ड फाउंडेशन हो, ओमिदयार नेटवर्क हो या फिर सोरोस की “Open Society Foundation” — सबका एक ही एजेंडा है: भारत को अंदर से कमजोर करना। और अफ़सोस की बात यह है कि इस एजेंडे को यहां के ही कुछ नेता, NGO और वकील आगे बढ़ा रहे हैं।
अब समय आ गया है कि देश इस गैंग को पहचानें। ये विचारधारा वाले लोग नहीं हैं, ये सत्ता के भूखे एजेंडा व्यापारी हैं। और इनका असली मालिक बैठा है विदेश में — जॉर्ज सोरोस जैसा वैश्विक षड्यंत्रकारी।
लेकिन भारत अब पहले जैसा नहीं रहा। जनता जाग चुकी है। और जो कोई भी देशद्रोह करेगा, उसकी राजनीति का अस्तित्व मिट जाएगा। लोकतंत्र को असली खतरा मोदी या भाजपा से नहीं — इन आंदोलनजीवियों और चंदाजीवियों से है।
बिहार में चुनावी प्रक्रिया की शुद्धता की जो कोशिश हो रही है, उसे साजिश बताना अपने आप में लोकतंत्र का अपमान है। यह साफ हो गया है कि जब भी भारत पारदर्शिता की ओर कदम बढ़ाता है, एक खास “गैंग” उसे रोकने में जुट जाता है — और इस बार उनका चेहरा, नेटवर्क और फंडिंग सब जनता के सामने है।